मॉर्निंग वॉक बनी डेथ वॉक और हिल गया बिहार, जानिए बरमेश्वर मुखिया हत्याकांड का सच
ठीक चार साल पहले एक जून 2012 की उस सुबह प्रतिबंधित संगठन रणवीर सेना के सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया की हत्या ने तब भोजपुर जिला ही नहीं, पूरे बिहार को हिला दिया था।
भोजपुर। वह सुबह भी हर सुबह की तरह अलसाते हुए उठने के लिए करवट बदल रही थी। लेकिन, अचानक एक धमाका हुआ और पूरा बिहार हिल उठा।
ठीक चार साल पहले एक जून 2012 की उस सुबह प्रतिबंधित संगठन रणवीर सेना के सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया की हत्या ने तब भोजपुर जिला ही नहीं, पूरे बिहार को हिला दिया था। घटना के विरोध में पटना शहर में जनाक्रोश के सामने पुलिस असहाय बनी दिखी। बाद में घटना की जांच सीबीआइ को दी गई, लेकिन उसने आज तक कुछ हासिल नहीं किया है।
सुबह-सुबह ही हुई थी हत्या
मूल रूप से पवना थाना क्षेत्र के खोपीरा गांव निवासी बरमेश्वर सिंह मुखिया आरा-नवादा थाना क्षेत्र अन्तर्गत कतीरा स्थित अपने आवास पर ही रहते थे। एक जून 2012 की सुबह कालोनी की गली में टहलते वक्त गोली मारकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था। उनके शरीर को भेदते हुए छह गोलियां आर-पार हो गई थीं। इस हत्या में 7.65 एमएम की देसी पिस्टल का इस्तेमाल किया गया था।
पूरे राज्य में भड़का था जनाक्रोश
इस घटना के बाद भोजपुर ही नहीं, पूरे बिहार में जनाक्रोश भड़क उठा था। राजधानी पटना, जहानाबाद, गया एवं औरंगाबाद में तो भारी हंगामा हुआ। प्राथमिकी अज्ञात के विरुद्ध दर्ज कराई गई थी। तब अभयानंद डीजीपी थे। उनके आदेश पर शाहाबाद रेंज के तत्कालीन डीआइजी अजिताभ कुमार के नेतृत्व में विशेष जांच दल का गठन किया गया था, जिसे 30 दिनों के अंदर रिपोर्ट देनी थी।
टीम ने रिपोर्ट दी और इसके बाद एसआइटी को भंग कर आगे के अनुसंधान की जिम्मेवारी तत्कालीन एसपी एमआर नायक को सौंपी गई। वैज्ञानिक अनुसंधान के जरिये पुलिस ने इस मामले के भंडाफोड़ का दावा किया।
सीबीआइ जांच को लेकर अनशन
लेकिन, बरमेश्वर मुखिया के पुत्र व अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदु भूषण सिंह ने बिहार सरकार की किसी भी जांच एजेंसी पर भरोसा नहीं होने की बात कहते हुए मामले की सीबीआइ जांच की मांग की। इसके लिए वे लेकर 21 जून 2013 से पटना के गांधी मैदान में महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष समर्थकों के साथ अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गए।
जुलार्ई 2013 से जांच में जुटी सीबीआइ
राज्य सरकार ने इस मामले का अनुसंधान सीबीआइ को सौंप दिया। जुलाई 2013 से सीबीआइ इसका अनुसंधान कर रही है। जांच एजेंसी ने मोबाइल के टावर डंप के साथ-साथ करीब 500 संदिग्ध मोबाइल नंबरों का सीडीआर निकाल कर उसकी छानबीन की। घटनास्थल से बरामद खाली खोखे, कारतूस मृतक के खून सने वस्त्रों की एफएसएल से जांच कराई। जांच में तीन साल से भी अधिक समय गुजर चुका है, लेकिन हासिल शून्य है।