योजनाओं के बावजूद आर्सेनिकयुक्त पानी पीने की विवशता
शाहपुर (भोजपुर), दिलीप : भू-गर्भीय जल में आर्सेनिक जैसे जहरीले तत्व की अधिकता के कारण प्रखंड के कई गांवों के हजारों की जनसंख्या वर्षो से प्रभावित है। शुद्ध पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण लोग आर्सेनिकयुक्त पानी पीने को विवश हैं। दूषित जल के उपयोग करने के कारण विभिन्न गांवों के कई लोग कई प्रकार के बीमारियों की चपेट में आकर आक्रांत भी रहे। प्रभावित गांवों के लोगों के लिए शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के उद्देश्य से कई योजनाएं बनी। परंतु आज तक इन योजनाओं से लोगों को किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल सका। लिहाजा आज भी लोग आर्सेनिकयुक्त पेयजल से निजात दिलाने वाली योजना की ओर टकटकी लगाये है।
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कौन से गांव है प्रभावित:
पानी के लिये गये नमूनों के आधार पर प्रखंड के ओझापट्टी, सेमरिया, दूधघाट, हरिहरपुर, अबटना, बेमारी, बरीसवन, विशुपुर, महुआर, कास्टोलिया, पहरपुर, चारघाट, चनउर, राजपुर, चक्की, नौरंगा, करनामेपुर, सारंगपुर, सुरेमनपुर, लक्षुटोला, लालू डेरा, माधोपुर, सइया, मरचइया सहित गंगा एवं धर्मावती नदी के तटीय इलाकों में अवस्थित कई गांव प्रभावित है।
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कौन से संस्थाओं द्वारा किया गया सर्वे:
भू-गर्भीय जल में आर्सेनिक की मात्रा पता लगाने के उद्देश्य से सबसे पहले 2002 में कोलकता के जादोपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता द्वारा कई गांवों के जल स्रोतों के पानी का संग्रह किया गया। उसके पश्चात महावीर कैंसर संस्थान पटना के चिकित्सकों एवं शोधकर्ताओं द्वारा पेयजल स्रोतों के नमूनों को लेकर शोध किया गया।
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संग्रहित जल नमूनों में क्या मिला:
विभिन्न जलस्रोतों से संग्रहित पेयजल के नमूनों के शोध एवं विभिन्न परीक्षणों के बाद शोधकर्ताओं के समक्ष जो रिपोर्ट आया उससे लोग सहम गये। शोध के दौरान नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा 1861 पीपीबी रिकार्ड की गयी। जबकि 50 पीपीबी से ज्यादा आर्सेनिक की मात्रा सामान्य मनुष्य के लिए घातक माना जाता है।
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आर्सेनिक से कौन से रोग होते हैं:
आर्सेनिकयुक्त पानी पीने से लोगों को कई प्रकार की घातक एवं जानलेवा बीमारियों के चपेट में आने की आशंका बनी रहती है। जिसमें त्वचा, यकृत, पेट संबंधित रोग ज्यादातर होता है। साथ ही कैसर होने की एवं आंखों की ज्योति जाने की संभावनाएं होती है। पीठ, पैरों के तलबे एवं पेट पर लाल धब्बे के निशान उभर जाते हैं।
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क्या हुए उपाय:
भू-गर्भीय आर्सेनिकयुक्त पानी से मुक्ति दिलाने के लिए पिछले एक दशक में कई योजनाओं पर कार्य हुआ। जिसमें से कुछ योजनाएं आज तक अधर में है। करनामेपुर, बरीसवन, भरौली, पहरपुर, झौवा, नरगदा गांव में सरकार द्वारा ग्रामीण जलापूर्ति के लिए बोरिंग कराया गया। ओझा पट्टी सेमरिया में पानी टंकी 2002 में ही बना पर लोगों को इससे कुछ लाभ नहीं मिल सका। इसके बाद सरकार द्वारा मिनि पाइप ग्रामीण जलापूर्ति योजना के लिए पांच पंचायतों का चयन किया गया पर यह योजना अधर में लटककर रह गयी। वही पूरे प्रखंड को आर्सेनिक से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से लगभग 1 अरब 55 करोड़ की लागत से बहु ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजना का शिलान्यास पिछले वर्ष किया गया। लेकिन यह योजना शिलान्यास के बावजूद फाइलों से आगे नहीं निकल सकी।
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