क्रोध से मनुष्य खो बैठता अपना विवेक
जागरण संवाददाता,आरा : दशलक्षण पर्व के दूसरे दिन माधर्व धर्म की पूजा की जाती है। माधर्व का अर्थ होता है अभिमान अर्थात अपने कुल-जाति-विद्या प्रतिमाएं, पुण्य, धन-धान्य जो कुछ भी आप के पास है उसका अभिमान कभी नहीं करना।' यह उद्गार श्री मैना सुंदर भवन धर्म शास्त्र ट्रस्ट के स्वामित्व वाले पाश्र्र्वनाथ जिनालय में महाभिषेक एवं 24 तीर्थकर पूजा विधान के अवसर पर आरा में विराजमान क्षुल्लक रत्न 105 श्री ध्यान सागर जी महाराज ने उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए व्यक्त किया। क्षुल्लक श्री ने आगे कहा कि गृहस्थों के लिए दान एवं पूजा का महत्व बताया गया है। वही साधु व्रतियों के लिए ध्यान स्वाध्याय महत्वपूर्ण है। उन्होंने गृहस्थों के लिए बताया कि अभिमान करने से कभी-कभी मन खराब हो जाता है, क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से मनुष्य अपना विवेक खो बैठता है। आयोजन ट्रस्ट के सचिव पद्मराज कुमार जैन ने क्षुल्लकश्री के पदार्पण एवं सद् उपदेश के लिए उनके चरणों में नमन करते हुए आभार व्यक्त किया। इस आयोजन में ट्रस्ट के अध्यक्ष शैलेन्द्र कुमार जैन अपनी धर्मपत्नी शशि जैन के साथ पूरा अनुष्ठान संपन्न किया। वही कोषाध्यक्ष धीरेन्द्र चन्द्र जैन, संयुक्त सचिव सरत कुमार जैन, ट्रस्टी रणजीत सुंदर दास सहित समाज के सैकड़ों नर-नारी व बच्चों ने उत्साहपूर्वक अनुष्ठान को सफल बनाया।