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हौसले को सलाम: हाथ नहीं, पैर से लिखकर प्रथम श्रेणी से पास किया मैट्रिक परीक्षा

बिहार के मुंगेर जिले के नंदलाल के दोनों हाथ नहीं है। इसके बावजूद उसने अपने पैरों से लिखकर मैट्रिक की परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी से पास किया।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 22 Jun 2017 07:04 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jun 2017 10:22 PM (IST)
हौसले को सलाम: हाथ नहीं, पैर से लिखकर प्रथम श्रेणी से पास किया मैट्रिक परीक्षा
हौसले को सलाम: हाथ नहीं, पैर से लिखकर प्रथम श्रेणी से पास किया मैट्रिक परीक्षा

मुंगेर [जेएनएन]। किसी ने ठीक ही कहा है, यदि हमारी उड़ान देखनी हो, तो आसमां से कह दो कि वो अपना कद और उंचा कर ले। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है कि बिहार के दिव्यांग नंदलाल ने। नंदलाल के हाथ कट चुके हैं। लेकिन हौंसलों में कमी नहीं आयी। लोगों के ताने सुनकर भी अपनी पढा़ई जारी रखी। पैरों से लिखकर मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से पास किया। 

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मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर के संतलालपुर निवासी अजय साह और बेबी देवी के दिव्यांग पुत्र नंदलाल नजीर बन गए हैं। मात्र तीन वर्ष की उम्र में हाइ वोल्टेज तार की चपेट में आने के कारण नंदलाल के दोनों हाथ चिकित्सक ने काट दिए। दोनों हाथ गवां देने के बाद भी कभी नंदलाल का हौसला कम नहीं हुआ।

नंदलाल ने अपने पैरों से अपनी किस्मत लिखना शुरू किया। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा वर्ष 2017 की मैट्रिक परीक्षा के दौरान नंदलाल ने सभी विषयों की कांपी अपने पैरों से ही लिखी। गुरुवार को जब परीक्षा परिणाम आया, तो परीक्षा परिणाम सुनने के बाद लोग दंग रह गए। 66.4 प्रतिशत अंक ला कर नंदलाल ने खड़गपुर का मान बढ़ा दिया।   

सड़क किनारे गुमटी में किराना का दुकान चलाने वाले अजय साह भी अपने बेटे की सफलता से गदगद हैं। अजय ने कहा कि जब खेलने-कूदने की उम्र में नंदलाल के दोनों हाथ कट गया, तो हमलोगों ने हिम्मत ही हार दी। हाइ वोल्टेज तार की चपेट में आने के बाद भी बेटे की जान बच जाने की खुशी थी।

वहीं, यह गम भी सता रहा था कि अब इसका पूरा जीवन कैसे कटेगा। लेकिन, पांच वर्ष की उम्र से ही वह आसपास के बच्चों को पढ़ते जाते देख पढ़ने की जिद करने लगा। पैर से ही सिलेट पर वह लिखने लगा। तब हमलोगों ने भी उसका उत्साह बढ़ाना शुरू कर दिया।

अतिसाधारण परिवार में पैदा हुए नंदलाल के लिए संसाधन कभी उसके राह का रोड़ा नही बना और अभावों के बीच में भी वह लगातार कुंदन की तरह निखरता चला गया। इन्हीं अभावों के बीच नंदलाल ने नवोदय की प्रवेश परीक्षा भी उत्तीण कर ली, लेकिन दोनों हाथ गंवा चुके नंदलाल को नवोदय विद्यालय प्रशासन ने यह कह कर नामांकन नहीं दिया कि दोनों हाथ से दिव्यांग होने के कारण उनके देखभाल में परेशानी होगी। इसके बाद भी नंदलाल के उत्साह पर कोई असर नहीं पड़ा।

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शहर के आरएसके विद्यालय में नामांकन कराने के बाद उसने पढ़ाई जारी रखी। इधर, नंदलाल ने कहा कि बेहतर परीक्षा परिणाम की उम्मीद पहले से थी। नंदलाल ने कहा कि परीक्षा परिणाम से मेरा हौसला बढ़ा है। मैं और मेहनत करूंगा और आइएएस बन कर देश समाज का नाम रौशन करूंगा।

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