सबसे मुकद्दस महीना है रमजानुल मुबारक
यूं तो सभी महीने अल्लाह के ही बनाए हुए हैं। बावजूद इसके इस्लामी कैलेंडर में रमजानुल मुबारक के महीने को सबसे मुकद्दस महीना माना गया है।
यूं तो सभी महीने अल्लाह के ही बनाए हुए हैं। बावजूद इसके इस्लामी कैलेंडर में रमजानुल मुबारक के महीने को सबसे मुकद्दस महीना माना गया है। इस महीने रखे जाने वाले रोजे को फर्ज करार दिया गया है। इबादत व बरकत के इस महीने में अल्लाह अपने ईमान वाले बंदों के गुनाहों को भी माफ कर देता है। रमजान के महीने को तीन भागों में बांटा गया है। पहला, दूसरा और तीसरा अशरा। रमजानुल मुबारक का पहला अशरा रहमत है। दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का।
अशरा अरबी भाषा का शब्द है। इसका मतलब 10 होता है। इस तरह रमजान में तीन अशरा होता है। तीनों के अलग-अलग नाम भी हैं। पहला अशरा रहमत का होता है। इस अशरा में जब बंदा अपने आप को रहमते इलाही का हकदार बना लेता है तो दूसरे अशरा में इस बंदा-ए-मोमिन को मगफिरत का परवाना मिल जाता है। जब बंदा परवानाए मगफिरत को हासिल करने के बाद तीसरे अशरा में दाखिल होता है तब ईमान के साथ रोजा रखने वाले उस बंदे के लिए जहन्नुम से आजादी लिख दी जाती है। फिर अल्लाह का वैसा बंदा मुकम्मल तौर पर ईनाम ए खुदावंदी का हकदार हो जाता है।
-सैयद शाह शाहकार आलम शहबाजी
खानकाह शहबाजिया भागलपुर