बोतलबंद पानी के नाम पर जहर पी रहे तीन लाख लोग
भागलपुर। पैन इंडिया द्वारा बदबूदार व गंदा पानी सप्लाई किए जाने के कारण शहर में बोतलबंद पानी का व्यवस
भागलपुर। पैन इंडिया द्वारा बदबूदार व गंदा पानी सप्लाई किए जाने के कारण शहर में बोतलबंद पानी का व्यवसाय तेजी से फल-फूल रहा है। पर शुद्ध व आरओ के नाम पर बोतलबंद पानी के विक्रेता भी प्रतिदिन तकरीबन तीन लाख लोगों को जहर ही पिला रहे हैं। यही नहीं शहर में चल रहे 30 से भी अधिक मिनी वाटर प्लांट अवैध हैं। किसी ने भी निगम में अपना रजिस्ट्रेशन तक नहीं कराया है। बावजूद इसके वे मानक के विपरीत व नियम-कानून को ताक पर रख खुलेआम व्यवसाय कर रहे हैं।
उन्हें कोई रोकने टोकने वाला नहीं है।
जानकार बताते हैं कि मिनी वाटर प्लांटों में
बोतलों (जार) की भी ठीक तरीके से सफाई नहीं की जाती है। एक ही बोतल के बार-बार इस्तेमाल से उसमें जीवाणु पनपने लगते हैं।
लिहाजा ऐसे बोतल में बंद पानी का सेवन लोगों की सेहत पर प्रतिकूल असर डाल रहा है।
भूमिगत जल का भरपूर दोहन
शहर में चल रहे मिनी वाटर प्लांट प्रतिदिन 10 करोड़ लीटर भूमिगत जल का दोहन कर रहे हैं। इसमें से 70 फीसद पानी शोधन के दौरान बर्बाद हो जाता है। 30 फीसद पानी का ही इस्तेमाल किया जाता है।
भरपूर मात्रा में हो रहे जल के दोहन से शहरी इलाके का जलस्तर तेजी से गिर रहा है। यह खतरे की घंटी है।
इसकी जानकारी संबंधित अधिकारियों को भी है पर वह इसपर लगाम कसने की जगह पल्ला झाड़ने में लगे हुए हैं।
नहीं होती पानी की जांच
मिनी वाटर प्लांट में न तो पानी और न ही डिब्बों की जांच होती है। ऐसे में कैसे पता चलेगा कि शहरवासी जो पानी पी रहे हैं उसमें
कौन सा तत्व कितनी मात्रा में है। दरअसल, पानी में मौजूद तत्वों के मानक से अधिक या कम होने पर वह स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन बुरा प्रभाव डालता है। निगम के गंदे पानी से बचने के लिए लोग बोतलबंद पानी व आरो मशीन से निकले पानी का उपयोग तो कर रहे हैं पर वह उसमें भी ठगे जा रहे हैं।
मिनिरल वाटर के नाम पर सामान्य पानी की बिक्री
शहर में कई जगह मिनिरल वाटर में नाम पर सामान्य पानी को बोतलों व जारों में भरकर बेचा जा रहा है। ऐसा बोतल को शील करने के तरीके पर सरकार का नियंत्रण नहीं होने के कारण हो रहा है। यही नहीं जारों पर पानी के पैकिंग की तारीख भी अंकित नहीं रहती है। कई दिनों के पानी के इस्तेमाल से लोग संक्रमण के शिकार हो रहे हैं।
विभाग नहीं है सक्रिय
पानी की बर्बादी रोकने के लिए कोई भी विभाग सक्रिय नहीं है। अत्यधिक दोहन से शहर का भू-जल स्तर तेजी से गिर रहा है। मिनी वाटर प्लांटों द्वारा 140 से 150 मीटर तक गहराई से पानी निकाला जाता है। इसकी वजह से पानी का स्तर शहर में 90 फीट तक पहुंच गया है।
मई-जून में तो यह 120 से 130 फीट तक चला जाता है।
खजाना भर रहे व्यवसाई
लोगों के स्वास्थ्य की चिंता किए बिना व्यवसाई बोतलबंद पानी बेचकर अपना खजाना भर रहे हैं। पांच रुपये की मार्जिन पर वेंडरों को घर व दफ्तर तक पहुंचाने का जिम्मा दे दिया जाता है। शहर की 60 फीसद आबादी जार बंद पानी पीने के आदि हो चुके हैं।
निगम की भूमिका पर सवाल
शहर में पानी कनेक्शन लेने के लिए होल्डिंग धारकों को चार्ज देना पड़ता है। यहां तक की बोरिंग सप्लाई के लिए भी निगम से आदेश लेना पड़ता है। लेकिन वाटर प्लांट में बोरिंग के लिए निगम कोई चार्ज नहीं लेता है। जबकि बोरिंग के लिए निगम से अनुमति लेना आवश्यक है। जलकल शाखा प्रभारी मु. रेहान ने बताया कि वाटर प्लांट में बोरिंग के लिए अभी तक कोई भी आवेदन नहीं आया है। शहर में कितने वाटर प्लांट हैं इसका भी आंकड़ा नगर निगम के पास नहीं है।
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पानी की गुणवत्ता के आदर्श मानक आर्सेनिक : .01 मिलीग्राम प्रति लीटर
फ्लोराइड : 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर
आयरन: 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर
नाइट्रेट: 45 मिलाग्राम प्रति लीटर
पीएच: 6.5 से 8.5 मिलीग्राम प्रति लीटर
टीडीएस: 500 से 2000 मिलीग्राम प्रति लीटर
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कोट ..
1. ऐसे पानी के इस्तेमाल से जल जनित बीमारी हो सकती है। टायफायड, जोंडिस, डायरिया, पेट की बीमारी होने की संभावना बढ़ जाएगी। अगर पानी की जांच का प्रमाण पत्र नहीं मिलता है तो शुद्धता की गारंटी नहीं रहती है।
डॉ. संदीप लाल, चिकित्सक
कोट ..
शहर में अवैध तरीके से चल रहे वाटर प्लांट का सर्वे कराया जाएगा। इसके बाद कार्रवाई के लिए अभियान चलाया जाएगा।
- अवनीश कुमार सिंह, नगर आयुक्त।
कोट.
बाजार में बेचे जा रहे शील्ड पैक बोतल वाली पानी के जांच का अधिकार है। वाटर प्लांट की जांच नहीं कर सकते हैं।
जितेंद्र प्रसाद, फूड इंस्पेक्टर
कोट.
वर्ष 2014 से उद्योग विभाग द्वारा किसी भी प्रकार का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा रहा है।
निर्मल कुमार झा, जिला उद्योग महाप्रबंधक