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सरसों की खेती से किसान हुए दूर, तेल मिलों में लगे ताले

तीन दशक पूर्व कोसी व सीमांचल में तेलहन फसल के रूप में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी।

By Edited By: Published: Mon, 12 Feb 2018 10:32 AM (IST)Updated: Tue, 13 Feb 2018 05:30 PM (IST)
सरसों की खेती से किसान हुए दूर, तेल मिलों में लगे ताले
सरसों की खेती से किसान हुए दूर, तेल मिलों में लगे ताले
शैलेश कुमार, मधेपुरा। कोसी एवं सीमांचल में सरसों के पीले-पीले फूलों की खुशबू अब गुम होती जा रही है। तीन दशक पूर्व कोसी व सीमांचल में तेलहन फसल के रूप में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी। बेहतर पैदावार होने के कारण इस इलाके में किसान भी सरसों की खेती को अपना आधार मानते थे। लेकिन, कुछ वर्षो से सरसों फसल की पैदावार कम होने और लागत अधिक लगने के कारण किसानों का मोह अब इस फसल से भंग होने लगा है। किसान रबी सरसों की खेती छोड़ अन्य फसल लगाने में दिलचस्पी दिखा रहें है। सरसों की उपज कम होने कारण क्षेत्र के दर्जनो तेल मिल (कोल्हू, स्पेलर, बड़ी स्पेलर) में ताला लग गया है। बिहारीगंज बाजार कभी तेलहन व्यवसाय का मुख्य मंडी था : तीन दशक पूर्व तक सरसों की अत्यधिक खेती होने के कारण बिहारीगंज बाजार सरसों फसल व तेल का मुख्य व्यावसायिक मंडी बन चुका था। वर्ष 1986 में तेलहन और दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा चलाई गई पीली क्रांति धरातल पर नही उतर सकी। इसमें विभागीय अधिकारियों की उदासीनता किसान मान रहे है। इससे सरसों की खेती का लगातार रकवा और उत्पादन घटने लगा। बड़े पैमाने पर होता था कारोबार : 1980 के दशक में बिहारीगंज बाजार सरसों मंडी के रूप में चर्चित था। इस बाजार में कोसी प्रमंडल सहित आसपास के इलाकों से प्रति दिन दर्जनों किसान बैलगाड़ी और ट्रैक्टर से सरसों की बिक्री करने आते थे। सरसों की अच्छी पैदावार होने की वजह से बाजार में कई सरसों मिल खुले हुए थे। जिसमें रामेश्वर ऑयल मिल की एक अलग पहचान थी। यहां के सरसों तेल कोसी के अलावे आसपास के कई जिले खगडि़या, पूर्णिया, सहरसा, सुपौल, कटिहार, भागलपुर(सुदुरवर्ती क्षेत्र) एवं अन्य बाजारों में सप्लाई की जाती थी। सरसों फसल के कारण मधुपालन व्यवसाय में हुई थी वृद्धि : सरसों फसल की खेती कम होने के कारण इसका असर अब मधुपालन व्यवसाय पर भी पड़ने लगा है। पूर्व में सरसों की अत्यधिक खेती होने के कारण यहां मधु पालन का व्यवसाय बड़े पैमाने पर होने लगा था। किसानों की माने तो एक एकड़ भूमि में लगभग एक ¨क्वटल सरसों की पैदावार होती है। वही एक एकड़ में हाईब्रीड मक्का 40 ¨क्वटल, धान 20 ¨क्वटल एवं गेहूं 10 ¨क्वटल के अनुपात में उपज होती है। जो किसान के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। इस संबंध मे प्रखंड कृषि पदाधिकारी शमीम अहमद अंसारी ने कहा कि बिहारीगंज प्रखंड क्षेत्र में सरसों के फसल की खेती में काफी कमी हुई है। सरसों खेती के लिए कुछ वर्षो से मौसम अनुकूल नही रहने के कारण फसल प्रभावित होने की वजह किसान सरसों खेती से दूर हो गए है। जिस वजह से तेलहन फसल की खेती में कमी हुई है। सरकारी लक्ष्य वर्ष 2015-16 में 212 हेक्टेयर, 2016-17 में 210 हेक्टेयर के अनुरूप सरसों का अच्छादन किया गया था। वर्ष 2017-18 में सरसों खेती के लिए मौसम अनुकूल रहने की वजह से उपज बढ़ने का अनुमान है। पूरे क्षेत्र में 654 हेक्टेयर में तेलहन अच्छादन करने का लक्ष्य है।

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