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प्रधानमंत्री की रैली पर टिकीं भाजपा की उम्मीदें

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्र]। चुनावी अधिसूचना के पूर्व रैलियों की राजनीति का प्रथम चरण पूरा होने को है।

By Edited By: Published: Tue, 01 Sep 2015 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2015 01:00 AM (IST)
प्रधानमंत्री की रैली पर टिकीं भाजपा की उम्मीदें

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्र]। चुनावी अधिसूचना के पूर्व रैलियों की राजनीति का प्रथम चरण पूरा होने को है। महागठबंधन के पूरे बिहार की रैली रविवार को पूर्ण हो चुकी है और अब एनडीए की पूर्व बिहार की रैली साथ मंगलवार को इस चरण का समापन होगा। महागठबंधन की पटना में हुई स्वाभिमान रैली के बाद अब सबकी निगाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागलपुर रैली पर हैं। क्योंकि, पूर्व बिहार जहां भाजपा और एनडीए की स्थिति बेहद कमजोर है।

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यह रैली पूर्व और पूर्वोत्तर बिहार एवं सीमांचल के 13 जिलों की है। बीते लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद यहां भाजपा को तकरीबन सभी सीटों पर मुंह की खानी पड़ी थी। हालांकि, गठबंधन के तौर पर एनडीए के अन्य घटक दलों को जीत मिली। मुंगेर, जमुई, खगड़िया से लोजपा के प्रत्याशी जीते। पर, इसका सीधा फायदा पूर्व बिहार के आगामी चुनावों में न तो भाजपा को हुआ न ही गठबंधन को। लोकसभा चुनाव के बाद भागलपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने अपनी यह प्रतिष्ठित और परंपरागत सीट तक गंवा दी। इसके बाद हुए विधान परिषद चुनाव में सीमांचल में भाजपा ने जीत दर्ज कर लोकसभा चुनाव के हार की पीड़ा कम की, पर पूर्व बिहार में हार का सिलसिला गठबंधन के घटक दलों तक पहुंच गया। भागलपुर और मुंगेर स्थानीय निकाय प्राधिकार में एनडीए की ओर से रालोसपा को सीट मिली थी। दोनों जगहों पर रालोसपा को भाजपा ने अपने मजबूत कार्यकर्ता को बतौर उम्मीदवार गिफ्ट भी किया और उसकी जीत दिलाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत भी झोंकी, पर नतीजे में मिली पराजय ने निराशा को बढ़ा दिया है। ऐसे में पार्टी और गठबंधन की सारी उम्मीदें प्रधानमंत्री की इसी रैली पर टिकी है।

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पूर्व बिहार में टॉनिक का काम करेगी रैली

कैडर के लिहाज से बात करें तो भाजपा को किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है। जबकि, विधानसभा की सीटों की लिहाज से बात करें तो पूर्व बिहार में भाजपा की स्थिति औसत मानी सकती है। भागलपुर जिले की सात में से दो, बांका के पांच में से दो, लखीसराय के दो में दो सीटों पर भाजपा के विधायक हैं। मुंगेर के तीन में से तीनों सीटें पिछले चुनाव में गठबंधन के साथी जदयू के जिम्मे थी। ऐसे में प्रधानमंत्री की रैली जीते हुए सीटों पर पार्टी के लिए टॉनिक का काम करेगी। जबकि, अन्य सीटों पर दावेदारों को अतिरिक्त उर्जा देगी।

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भागलपुर में पुनर्वापसी होगी चुनौती

सूबे के प्रतिष्ठित सीटों में शुमार भागलपुर में पुनर्वापसी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। आपसी गुटबाजी के कारण यहां तकरीबन नौ माह पूर्व हुए उपचुनाव में पार्टी ने अपने तत्कालीन जिलाध्यक्ष नभय चौधरी को उम्मीदवार बनाया। पर वे इस सीट को बचा नहीं सके। इसके कई कारण गढ़े गए। हालांकि खुद चौधरी इस बात से संतोष करते हैं कि उन्होंने 2010 में हुए चुनाव के मुकाबले भाजपा प्रत्याशी को आए वोट से अधिक वोट पाया। इसे अब भाजपा अपने कैडर और कार्यकर्ता की शक्ति के रूप में प्रदर्शित कर रही है कि विपरीत परिस्थिति में हमें 45 हजार के करीब वोट आया तो अब प्रधानमंत्री की रैली के बाद सभी उत्साह के साथ कूदेंगे और रण जीत लेंगे।

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टिकट के दावेदार दिखाएंगे दम

रैली में भाजपा की ओर चाहे जो इंतजाम किए जा रहे हों, पर असली दम टिकटों के दावेदार ही दिखाएंगे। यह पार्टी के लिए अच्छी खबर है कि हर इलाके से टिकट की लाइन में खड़े एक-दो दावेदार अपने दम पर भीड़ उतारने को व्याकुल हैं। कोई साढ़े तीन सौ गाड़ी लाने का दावा कर रहा है तो कोई पांच सौ। टिकट मिलना न मिलना सीट बंटवारे के बाद की प्रक्रिया है, फिलहाल दावेदारों का उत्साहवर्धन पार्टी का हर नेता यही कहते हुए कर रहा है कि उसके द्वारा लाई गई भीड़ ही टिकट का पैमाना बनेगी। यह कवायद उन सीटों के संदर्भ में जो सीटें जदयू के हटने के बाद खाली हुई हैं।

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जातीय समीकरणों की साधने की कोशिश

प्रधानमंत्री की रैली से इतर यहां भाजपा ने इलाके में जातीय समीकरण को अच्छे से साधने की कोशिश कर रखी है। यादव और गंगोता वोटरों को साधने के लिए मजबूत नेता की तलाश की जा रही थी। हालांकि, पूर्व सांसद सांसद अनिल यादव गंगा पार में थे जबकि इस पार में युवा नेता के तौर पर उभर रहे पवन यादव भी प्रभाव डाल रहे हैं। इस बीच लालू मंत्रिमंडल में सशक्त रहे डॉ. आरके राणा के पुत्र अमित कुमार राणा को पार्टी ने अपना बना लिया। जबकि, सीमांचल और पूर्व बिहार में गंगोता चेहरे के रूप में भागलपुर जिला परिषद उपाध्यक्ष गौरी शंकर सिंह उर्फ कन्हाय मंडल को ले आई है। दलित, महादलित, पिछड़े वोटरों को साधने के लिए गठबंधन के साथी जीतनराम मांझी, रामविलास पासवान जैसे नाम ही प्रभावी हैं। मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए पार्टी ने अपने राष्ट्रीय प्रवक्ता और भागलपुर के पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन को प्रधानमंत्री की रैली का संयोजक बनाया। जबकि, अगड़े वोटर विकल्पहीनता के कारण कहीं जा नहीं सकते। ऊपर, से महागठबंधन की स्वाभिमान रैली के बाद भाजपा की यह सोच और पुख्ता हो गई है कि अगड़ों के पास कोई 'चारा' भी नहीं है। हालांकि, भाजपा में शामिल कराए गए यादव चेहरों के संदर्भ में राजद के नेताओं की टिप्पणी पार्टी के बड़े नेताओं की तरह ही है कि हमारे यहां से रिजेक्ट किए गए लोगों के दम पर भाजपा हमारे माई समीकरण में सेंध नहीं लगा सकती और रैली संयोजक शाहनवाज भाजपा के मुस्लिम चेहरा भले हों, पर मुसलमानों के नहीं।

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