जूट के धागों से गुन रही महिलाओं का भविष्य
राहुल भारती, भागलपुर
'दुख हो कि शोक हो, धैर्य पूर्वक सब सहो। सफलता क्यों नहीं मिलेगी, संघर्ष पथ पर दृढ़ रहो।'
मशहूर शायर वसीम बरेलवी का उक्त कथन भागलपुर की संगीता पर सटीक बैठता है। आज संगीता के संघर्ष और संकल्प से हजारों परिवारों के घर जगमगा रहा है। कड़ी परिश्रम की वजह से वह फर्श से अर्श तक पहुंच गई है। उन्होंने बाजार से प्लास्टिक बैग खत्म करने की ठानी है। इस दिशा में वह दिन-रात मेहनत कर रही है। संगीता ने जीवन के अंधेरे पक्ष को देखा। उससे विचलित नहीं हुई। इतनी ताकत से लड़ी कि अंधेरा छंट गया। संगीता से जूट का प्रशिक्षण लेकर आज लगभग दस हजार महिलाएं स्वरोजगार कर रही हैं।
उनकी शादी पूर्णिया में एक व्याख्याता से बड़े धूमधाम से हुई। ससुराल वालों के व्यवहार ने संगीता को काफी विचलित कर दिया। वह वापस मायके लौट आई। मायके में मां व भाइयों ने उसे सहारा दिया। कहती हैं, भाइयों का काफी प्रोत्साहन मिला। शुरू में जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए उसने पास ही के एक आवासीय विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी कर ली। यहीं पर वह नेहरू युवा केंद्र के संपर्क में आई। किशनगंज में ट्रेनिंग के दौरान उसने जूट उद्योग को करीब से देखा। जूट उत्पाद को देखकर वह इतनी प्रभावित हुई कि इसे ही अपना जीवन लक्ष्य बना लिया। वह अपने घर में गीता हैंडीक्राफ्ट केंद्र पर महिलाओं को निश्शुल्क प्रशिक्षण तो देती हीं हैं साथ ही माउंट कार्मेल स्कूल में भी हर रविवार को प्रशिक्षण देती हैं। अपने केंद्र पर संगीता जूट से फैंसी बैग, बोतल बैग, नाश्ता बैग आदि का निर्माण कर रही हैं। कड़ी मेहनत की वजह से उसके कारोबार ने आज लघु उद्योग का रूप ले लिया है। वे कोलकाता से जूट का चादर मंगाकर उस पर लेमिनेशन करवा रही हैं। इस सैंपल को जर्मनी व इटली भेजा गया है। चेरी शू ने संगीता से टाई अप किया है। प्रतिष्ठान अपने जूते व चप्पल की डिलीवरी के लिए जूट बैग का ही इस्तेमाल करती है। कई अन्य प्रतिष्ठानों से भी बात अंतिम दौर में है। वह कहती हैं कि उनका सपना उस दिन पूरा होगा जब शहर से प्लास्टिक बैग का चलन समाप्त हो जाएगा और हर हाथ में जूट का बैग होगा। संगीता को नेहरू युवा केंद्र द्वारा जिला स्तरीय पुरस्कार तथा नाबार्ड द्वारा कला संस्कृति युवा अवार्ड राज्य स्तर पर प्राप्त हुआ है।