बीत गए 11 साल, नहीं चल सकी रेलगाड़ी
सुपौल : महानगरों में बुलेट ट्रेन दौड़ेगी, हाई स्पीड ट्रेन दौड़गी। मगर इसी मुल्क के नक्शे में एक हिस्सा कोसी का भी है, जहां 1934 के भूकंप के बाद अभी तक रेलगाड़ी नहीं दौड़ सकी है। 6 जून 2003 को निर्मली कॉलेज निर्मली से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं रेल मंत्री नीतीश कुमार ने 365 करोड़ की लागत से कोसी रेल महासेतु का शिलान्यास कर इस इलाके के लोगों को सपना दिखाया था कि यहां से भी रेलगाड़ी दौड़ेगी। शिलान्यास को 11 साल बीत गए मगर रेल नहीं दौड़ सकी। मोदी के अच्छे दिन वाली सरकार में भी कोसी को कोई बड़ी सौगात नहीं मिली है। मोदी सरकार के रेल बजट में कोसी महासेतु के मद में इतनी कम राशि मिली है कि यह उम्मीद करना बेमानी है कि 2015 तक कोसी रेल महासेतु पर गाड़ियां दौड़ने लगेंगी। एक तरफ जहां एप्रोच का काम धीमी गति से चल रहा है, वहीं सरायगढ़-भपटियाही के पास महासेतु के कुछ हिस्से का काम मुआवजे के कारण बाधित है।
इस महत्वपूर्ण परियोजना का काम पूरा नही होने से विभिन्न प्रकार की अटकलें भी सामने आने लगी हैं। केंद्र में सरकार बदलने के बाद से यह परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई थी। हालांकि तत्कालीन यूपीए सरकार के कार्यकाल में भी घोषणा की गई थी कि 2009 तक सभी छोटी लाइनों को बड़ी लाइन में परिवर्तित कर दिया जाएगा। लेकिन स्थिति जस की तस है। 21 जनवरी 2012 को इसके कुछ हिस्से राघोपुर से फारबिसगंज तक मेगा ब्लॉक किया गया, जबकि शेष हिस्सों में आज भी अंग्रेज जमाने के ट्रैक पर ही रेलगाड़ी चल रही है। शुरुआती दौर में कोसी नदी ने भी कार्य में व्यवधान उत्पन्न किया था। समय बीतता गया और कार्य की प्रगति धीमी हो गई। वर्ष 2009 में तातिया नामक कंपनी ने 39 पाया ढालकर एक फेज का काम पूरा कर दिया। पाया पर गार्टर डालने का काम जीपीटी इन्फ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड नामक कंपनी द्वारा 56 करोड़ रुपये में किया गया। रेलवे ट्रैक के लिए मिट्टी का काम 32 करोड़ की लागत से पुल से पाच किमी पूरब की ओर किया जा रहा है। उसमें मिट्टी की जगह एप्रोच कार्य में अधिकाश बालू का ही प्रयोग किया गया है। कार्य को पूर्ण होते ही उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक का रेलमार्ग से सफर करना पूरी तरह सुलभ हो जाएगा।
केंद्र सरकार व रेल मंत्रालय द्वारा इस महत्वपूर्ण कार्य को ससमय पूरा कराने के प्रति विभिन्न स्तरों पर लापरवाही देखी जा रही है। एक ओर जहा रेल पुल का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है, वहीं रेल बाध के निर्माण में ग्रहण लगा दिख रहा है, ऐसा लग रहा है कि 2015 तक इस परियोजना का पूरा होना संभव नहीं है, जबकि कार्य को वर्ष 2009 में ही पूरा किए जाने की घोषणा की गई थी। पुन: जब यह परियोजना 2009 में पूर्ण नहीं हुई तो 2012 तक पूरा किए जाने का लक्ष्य रखा गया था। इलाके के अधिकाश लोग कहते हैं कि 11 साल बीत गए लेकिन आजतक कोसी में रेलगाड़ी नहीं चल सकी है।