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24वें वर्ष मिला दुखनी को एक लाख अनुग्रह अनुदान

By Edited By: Published: Sat, 12 Apr 2014 11:45 PM (IST)Updated: Sat, 12 Apr 2014 11:45 PM (IST)

अमरेन्द्र कुमार तिवारी , भागलपुर : सिंचाई प्रमंडल, भागलपुर के पूर्व अधीनस्थ पदचर गोहाली यादव की बेवा दुखनी देवी। दर्द का प्रतीक। दर्द नसीब ने भी दिया और व्यवस्था ने भी। नसीब ने दर्द दिया लोकसभा मध्यावधि चुनाव 1991 में, जब चुनाव ड्यूटी के दौरान पति गोहाली की मौत हो गई, और व्यवस्था का दर्द यह पति की मौत के बाद मिलने वाले अनुग्रह अनुदान राशि के एक लाख रुपये सरकारी तंत्र ने इतना दौड़ाया कि वह बूढ़ी हो गई। आखिरकार इस वर्ष उन्हें यह एक लाख रुपये मिले हैं, पर अब दर्द यह कि इन रुपयों ने उनके 24 वर्ष पुराने घाव को ताजा कर दिया है।

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दुखनी को नसीब से अब कोई शिकायत नहीं, पर इस चुनावी वर्ष में वो नेताओं, प्रतिनिधियों से अपने गम का हिसाब मांगेंगी। वे अपने पति का ड्यूटी चार्ट और अब जाकर मिले अनुग्रह अनुदान का चेक दिखाती हैं। पति की मौत 12 जून 1991 को नवगछिया में चुनाव ड्यूटी के दौरान हुई थी और अनुदान का चेक इसी महीने की 4 तारीख का है। लड़खड़ाती जुबान वे कहती हैं कि पति की मौत के बाद घर पर तो दुखों का पहाड़ टूट गया। दो छोटे बेटों का लालन-पालन भी मुश्किल हो गया था। दोनों शाम की रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी। तब अगर यह पैसा मिला होता तो बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाते। पर देखिए, सरकारी कुव्यवस्था। अनुदान की राशि लेने के लिए पटना तक के कार्यालय में दर-दर की ठोकर खानी पड़ी और अब उम्मीद छोड़ दी थी तो उतना ही पैसा मिला जो 91 में मिलता। दुखनी कहती हैं भगवान न करें चुनाव के दौरान किसी की मौत हो।

उल्लेखनीय है कि गोहाली यादव धौरेया थाना क्षेत्र अंगतर्गत बांका जिला के बबुरा गांव का रहने वाला था। 9 जून को उनकी चुनाव ड्यूटी नवगछिया में लगाई गई थी। डियूटी के दौरान बारिश में भींग जाने के बाद वे लकवा के शिकार हो गए। अनुमंडल प्रशासन ने उन्हें इलाज के लिए मायागंज अस्पताल में भर्ती कराया जहां इलाज के क्रम में उनकी मौत हो गई थी।

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सरकारी व्यवस्था का सबसे हास्यास्पद सच

एक लाख रुपये का अनुदान 24 वर्ष बाद भी एक लाख ही मिले, यह सरकारी व्यवस्था का सबसे हास्यास्पद सच है। ग्रामीण अमरेंद्र आदि कहते हैं कि तब के एक लाख रुपये की कीमत आज 20 लाख रुपये हो गई होती। इधर, दुखनी का बड़ा बेटा सुबोध कुमार यादव ने बताया कि वह अपनी मां को न्याय दिलाने के लिए कोर्ट की शरण में जाएगा। उल्लेखनीय है कि पिता की मौत के वक्त सुबोध सातवीं कक्षा का छात्र था और वयस्क होने पर सिंचाई विभाग में उसे पिता के पद पर ही अनुकंपा पर नौकरी मिल गई है, जबकि उसका छोटा भाई अभी पढ़ाई कर रहा है।


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