धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर मरुआ की खेती
अधिक पैदावार एवं हाईब्रिड फसलों पर अधिक ध्यान दिए जाने के कारण पुरानी बहुत सी फसलों की खेती धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
बेगूसराय। अधिक पैदावार एवं हाईब्रिड फसलों पर अधिक ध्यान दिए जाने के कारण पुरानी बहुत सी फसलों की खेती धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। जिसमें एक मरुआ की फसल भी शामिल है। लोगों का कहना है कि खेती में अधिक स्वास्थ्यवर्धक एवं कम लागत के अलावा मौसम के प्रतिकूल असर वाले फसलों की पैदावार वाली फसलों में मरुआ की खेती प्रमुख था। आज मरुआ की खेती किसान नहीं के बराबर कर रहे हैं। जिससे यह फसल अब विलुप्त होती जा रही है।
मरुआ की खेती में क्या-क्या थे फायदे
मरुआ एक पौष्टिक अनाज है। इसके खाने वाले को कभी एनीमिया की बीमारी नहीं होती है। आज मरुआ की रोटी खाना तो दूर उसका दर्शन भी दुर्लभ हो गया है। पुराने लोग बता रहे हैं कि पेट की बीमारी मरुआ की रोटी खाने वाले को कभी नहीं होती थी। मरुआ अनाज की तरह इसके चारे उतने ही ताकतवर होते हैं। मरुआ का चारा मवेशी बड़े चाव से खाता है।
फसल की पैदावार के मौसम एवं तरीके
मरुआ की खेती के बारे में लोग बताते हैं कि जेठ महीने में इसकी रोपाई की जाती है। धान के बिछड़े की तरह इसके भी बिछड़े तैयार करने पड़ते हैं। इसकी रोपाई में खेतों में पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। सिर्फ नमी वाली खेतों में बिचडे की रोपाई किए जाते हैं। जलजमाव वाले खेतों में यह फसल नहीं लगाई जाती है। इसकी खेती में अधिक पानी की आवश्यकता किसानों को नहीं पड़ती है। जिससे इस फसल पर किसानों को लागत कम और मुनाफा अधिक होता था।
लागत कम अधिक पैदावार
मरुआ की खेती किसानों के लिए बेहद फायदेमंद होता था। किसान पारंपरिक खेती के रूप में मरुआ की खेती प्रतिवर्ष किया करते थे। कम लागत के बाद भी 10 से 12 ¨क्वटल प्रति बीघा मरुआ किसान काट लेते थे। इस फसल से किसानों को अनाज के साथ-साथ मवेशी का चारा भी प्राप्त होता था। आज मरुआ की खेती विरले ही कोई किसान करते है।
मरुआ अनाज का उपयोग
मरुआ का दाना खासकर लोग खाने में उपयोग करते थे। जिसकी रोटी स्वादिष्ट और पौष्टिक होती थी। घर में खाने के उपयोग के बाद मरुआ का बिस्कुट बनाए जाने में बड़ी मात्रा में उपयोग होता था। मरुआ में प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है। गर्भवती महिलाएं के लिए यह काफी फायदेमंद है। वहीं मरुआ की रोटी जिउतिया पर्व में खाने का विशेष महत्व है। इसके पैदावार कम होने से मरुआ का आटा 60 से 80 रुपये किलो की दर से बिकता है।
मरुआ की खेती पर सरकार नहीं दे रही ध्यान
मरुवा की खेती फायदेमंद एवं कम लागत होने के बाद भी किसान इसकी खेती से विमुख हो गए हैं। लोगों का कहना है कि विकसित समाज में खाने-पीने के अनाज के उत्पादन पर भी असर पड़ा है। यही कारण है कि मरुआ का उत्पादन धीरे-धीरे किसान कम कर दिए। समाज के रहन-सहन खान-पान का व्यापक असर खेती पर भी पड़ा है।
कहते हैं कृषि अधिकारी
प्रखंड कृषि पदाधिकारी अर¨वद कुमार ने मरुआ की खेती के संबंध में बताया कि सरकार का इसके प्रोत्साहन में कोई दिलचस्पी नहीं है। पारंपरिक खेती में मरुआ की खेती बेहद फायदेमंद है। परंतु, फायदेमंद खेती होने के बावजूद भी किसान इसकी खेती अब नहीं कर रहे हैं।