दूसरों के घर को रोशन करने वाले कुम्हकारों की जिंदगी अंधकारमय
संवाद सहयोगी, लाखो : 'प्राण की काली वर्तिका बनाकर ओढ़ तिमिर की काली चादर, जलने वाला दीपक ही तो जग का
संवाद सहयोगी, लाखो : 'प्राण की काली वर्तिका बनाकर ओढ़ तिमिर की काली चादर, जलने वाला दीपक ही तो जग का तिमिर मिटाता है..' राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की उक्त पंक्ति दूसरों के घरों में दीपक की रोशनी फैलाने वाले कुम्हारों पर सटीक बैठती है। बता दें कि आजादी के बाद भी कुम्हारों के दशा व दिशा में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। पुश्तैनी कारोबार को संभाले कुम्हार जाति आज भी आर्थिक संकट का दंश झेल रहा है। प्रत्येक पर्व त्योहारों एवं शादी उपनयन संस्कार के मौके पर उनके द्वारा बनाए गए विभिन्न प्रकार के मिट्टी के सामानों की जरूरत लोगों को पड़ती है। इधर, सदर प्रखंड के श्रेणियां गांव निवासी जगदीश पंडित, मोहन पंडित एवं दशरथ पंडित ने बताया कि दीपावली को लेकर दो माह पूर्व से मिट्टी के बर्तन, दीप एवं बच्चों के खिलौना आदि बनाने की तैयारी करते हैं। मिट्टी खरीदने के लिए महाजनों से कर्ज लेना पड़ता है। वहीं अयोध्याबाड़ी के राम प्रवेश पंडित, कुंदन पंडित, राम टहल पंडित कहते हैं कि परंपरागत हस्तकलाएं अब गुमनामी में खोती जा रही है। जबकि शाहपुर के देवलाल पंडित ने बताया कि जब दीपावली का पर्व आता है तो हमलोगों को रोजगार मिलता है। उसके बाद बेरोजगार हो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि मजदूरी के लिए दूसरे राज्य में पलायन करने को विवश होना पड़ता है। कारीगरों ने बताया कि पहले इस धंधे में उपयोग होने वाली मिट्टी मुफ्त में मिलती थी, परंतु अब मिट्टी, बालू भी खरीदना पड़ता है। ऐसे में कभी कभी यह रोजगार घाटे का सौदा भी साबित हो जाता है।
जरा इनकी सुनिए
इस मामले में सदर बीडीओ रविशंकर कुमार ने कहा कि कुम्हारों के विकास के लिए कोई विशेष योजना नहीं है। सामूहिक योजना से ही हस्तकला को गुमानमी से बचाया जा सकता है।