इसी स्थान से मां का पूजन कर शुरू हुआ था नमक आंदोलन
संवाद सूत्र, गढ़पुरा : क्षेत्र का सबसे सिद्ध व प्राचीन बड़ी माई दुर्गा मंदिर गढ़पुरा में है। यहां लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और उनकी मुरादें पूरी होती हैं। इस मंदिर के पुजारी पंडित पितांबर सिंह ने कहा कि यहां एक बड़ा बगीचा उलाव स्टेट का था। इसी बगीचे में 1885 को उलाव स्टेट ने माता दुर्गा की स्थापना पिण्डी के रूप में की थी। तब से यहां मां दुर्गा की पूजा पिण्डी के रूप में शुरू हुई। 1900 ई. में इस दुर्गा गाछी की जमीन गढ़पुरा के स्वतंत्रता सेनानी बाबू बनारसी सिंह ने उलाव स्टेट से खरीद कर ली। जिसका 1901 के सर्वे में इस भूखंड में माता दुर्गा के पिण्डी का भी वर्णन है। आगे चलकर 1937 में यहां माता का मंदिर झोपड़ी से पक्का का बनारसी बाबू ने बनवाया। कहा जाता है कि माता की महिमा के बारे में जानकर अभीभूत हुए डा. श्रीकृष्ण सिंह ने नमक आंदोलन इसी दुर्गा गाछी के समीप दुर्गा मां का पूजन कर शुरू किए थे तथा नमक आंदोलन सफल हुआ था।
मंदिर में पूजा व व्यवस्था आज भी पौराणिक रीति रिवाज से होती आ रही है। कलश स्थापना के दिन से ढोल और सहनाई दस दिन तक मंदिर में बजती रहती है। माता की महिमा काफी दूर-दूर तक फैली है। बहुत से परिवार दिल्ली, मुंबई, बंगलूर में रहने वाले शारदीय नवरात्र में जरूर इनके दर्शन पूजन के लिए आते हैं। सबसे खासियत इनके विसर्जन का है जो देखने लायक होता है। जब दर्जनों लोग माता दुर्गा एवं अन्य देवी देवताओं को कंधे पर उठाकर उनके नाम का जयकारा लगाते विसर्जन के लिए तालाब तक ले जाते हैं तथा पीछे-पीछे सैकड़ों की संख्या में महिलाएं बेटी की विदाई गीत गाते चल रही होती है। यह क्षण बड़ा ही दर्शनीय होता है।