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संस्कारशाला

औरंगाबाद। 'उठो जागो, और अपने कंधे पर लो उत्तरदायित्व' फोटो फाइल - 27 एयूआर 04 व्यक्ति

By Edited By: Published: Fri, 28 Oct 2016 02:51 AM (IST)Updated: Fri, 28 Oct 2016 02:51 AM (IST)
संस्कारशाला

औरंगाबाद।

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'उठो जागो, और अपने कंधे पर लो उत्तरदायित्व'

फोटो फाइल - 27 एयूआर 04

व्यक्तियों की समष्टि से सृजित विविधता भारत राष्ट्र की विशिष्टता है। विशिष्टता को अक्षुण्ण रखते हुए प्रकृति की अनुपम छटाओं से खेलता, पलता, बढ़ता, फलता-फूलता प्रगति की टेढ़ी-मेढ़ी, कंटीली-पथरीली पगडंडियों पर संघर्ष करता यह महान राष्ट्र विश्वमंच पर अपने बसुधैव कुटुंबकम और त्याग एवं सेवा के आदर्श के साथ खड़ा है। स्वाधीनता प्राप्ति के लगभग सात दशक के सफर में हमने असंख्य उपलब्धियां अर्जित की है। विज्ञान, कृषि, ज्ञानार्जन, जीवंत लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ शासन संचालन और अंतरिक्ष क्रियाशीलता के क्षेत्र में हमने यथेष्ट प्रगति की है परंतु वहीं हम हिंसा, मूल्यहीनता, भ्रष्टाचार, कदाचार, पापाचार, जातीयता, धार्मिक असहिष्णुता, सांप्रदायिकता, शैक्षिक अवमूल्यन जैसे भयंकर रोगों के शिकार हुए हैं। एक ओर हम अन्न के उत्पादन में आत्मनिर्भर हुए हैं तो दूसरी ओर वितरण की दोषपूर्ण प्रणाली के कारण प्रतिवर्ष गरीबी और असमानता बढ़ी है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं - उठो, जागो! सारा उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले लो। याद रखो! तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। मनुष्य के भाग्य निर्माण का यह गुरूत्तर दायित्व मैन मेकिंग मिशन के द्वारा ही संभव होगा। सच्चे मनुष्य का निर्माण हर घर के दरवाजे से आरंभ करने का यह उत्तरदायित्व शिक्षा की उत्कृष्टता के द्वारा निभाना होगा। उत्कृष्ट शिक्षा के द्वारा संस्कार सम्मत परिवेश उपलब्ध कराना हर नागरिक का उत्तरदायित्व है। यदि हम अपने घर से यह कार्य आरंभ करें तो एक सचरित्र बच्चे के निर्माण के द्वारा हम राष्ट्र निर्माण का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व निभा सकते हैं और इसके लिए समुचित माहौल निर्माण की जिम्मेवारी राष्ट्र के उन सभी जनों की है क्योंकि लोकतात्रिक शासन के गठन और संचालन का उत्तरदायित्व भी इनके हाथों में है। कवि मुकुंदन कहते हैं - मार्ग सभ्यता का अब भी अवरुद्ध नहीं है, शिष्ट समाज और राज्य के बीच संतुलन अगर हो, मानवता का है भविष्य अब भी संरक्षित, उद्योग, राज्य, बाजार सभी उत्तरदायी हो। राष्ट्र के निर्माण के लिए आमजन के समष्टि स्वरूप को आगे आना होगा। यदि हम तकनीकी योग्यता के सहारे बांधों को मजबूत बनाएं, अंतरिक्ष में अपनी योग्यता और कुशलता का प्रदर्शन करें, विधि प्रदत्त चुनाव प्रणाली का हिस्सा बन अयोग्य प्रतिनिधि का चुनाव करें, स्वस्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और अन्य दैनिक जरूरतों के लिए शासन को कोसते रहें, आदमी को कमजोर बनाएं तो क्या यह धन, बल और बुद्धि का सही उपयोग होगा? यदि हम किसी सिद्धांत को बनाए रखने के लिए राष्ट्र को ही डूबों दें तो फिर जरा सोचिए राजनीति ने मनुष्य को क्या बना दिया है? समृद्धि को समाज के सभी वर्गो में न लाकर यदि केवल एक ही वर्ग द्वारा भावित उपायों से केवल उन्हीं के बीच आने दें तो हमने प्रगति के रुप पागलपन के अतिरिक्त और क्या पाया? यदि हमारी सारी शक्तियां, कुशलता, निष्ठा, एकाग्रता अपने ही भाईयों को इनकी स्वाभाविक स्थिति से नीचे गिराने के काम में लगती हैं तो क्या यही हमारा उत्तरदायित्व है? यदि हम तकनीकी दृष्टि से अंतरिक्षयान में सवार होकर चंद्रमा और मंगल तक पहुंचने में सक्षम हो गए हैं और पृथ्वी पर, गली-गली, घर-घर में एक दूसरे की टांग खिंचाई में अपना जीवन बिताएं तो क्या हम वैज्ञानिकता की अपेक्षा, उत्तरदायी नागरिक की अपेक्षा पागलपन के प्रभाव में नहीं हैं? यदि प्रगति के साथ हम स्वयं पतित हो रहे हैं तो फिर हम आगे कहां बढ़े हैं? कवि मुकुंदन फिर कहते है - संसद, निसर्ग, जनमत, भविष्य के प्रति सर्वदा, स्वशासन के तंत्र बनें प्रतिस्तर पर ही, सभा उदित हो राष्ट्र, राज्य, मंडल में सारे देहधर्म हो अनुशासित आत्मा के स्वर से, वर्तमान के निर्धारक हो भूत भविष्यत। अत: यह समय की मांग है कि आज एक व्यक्ति से संसद तक को अपने दायित्वों के प्रति सचेत होना पड़ेगा और इसके लिए बौद्धिक जगत को जन-जन तक जागरूकता और बौद्धिकता पहुंचाने का महत्ती उत्तरदायित्व निभाना होगा तथा जनमानस को भी सुसंस्कृत परिवार गठन के साथ अपने कंधों पर मूल्य आधारित समाज गठन के उत्तरदायित्व का निर्वहन करना होगा।

हमारे देश में हमारी जातियों, संप्रदायों और मतों की अनेकता सबसे बड़ी समस्या है। राजनीति ने अपने स्वाभाविक स्तर से नीचे आकर इसमें घी डालने का कार्य किया है। तीन दशकों में हमारे राष्ट्र को सामाजिक विद्वेष और आंतरिक कलह की वजह से उपजे इस गंभीर संकट की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। इस कलह का दोष किसी पर मढ़ने, दूसरों को कोसने, निंदा करने या गालियों की बौछार करने से कोई भला उद्देश्य पूर्ण नहीं होने वाला। केवल आपसी प्रेम और सदभाव के द्वारा ही अच्छे परिणाम की आशा की जा सकती है। हर नागरिक का दायित्व है कि वह यत्न करें कि हर व्यक्ति के जीवन में उच्च आदर्श और उत्कृष्ट व्यवहारिकता का सुंदर सामंजस्य हो। सारे कार्य, सारी शिक्षा, सारी व्यवस्था संचालन, नीति निर्धारण एक व्यक्ति नहीं कर सकता। सामाजिक जीवन में एक विशेष कार्य मैं कर सकता हूं तो दूसरा कार्य कोई दूसरा कर सकता है। हम कुछ उससे सीख सकते हैं तो दूसरा कुछ हमसे सीख सकता है। मनुष्य के जीवन की सार्थकता मानव समाज को रचनात्मक एवं सृजनशीलता के साथ जीवन मूल्यों के समुचित संरक्षण और प्रोत्साहन के उत्तरदायित्व निर्वहन में सन्निहित है। श्रीमदभगवदगीता में कहा गया है - योगस्थ: कुरू: कर्मणि सड्डं व्यक्तवा धनंजय। सिद्धयसिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योगउच्यते।।

मानव जीवन की सार्थकता योग पूर्वक राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों के सार्थक निर्वहन में निहित है। यदि हम यथेष्ट उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं करेंगे तो हमारा आत्मविश्वास खोता जाएगा और हम पर दुर्बलताओं का प्रभाव हावी होगा, सौभाग्य की तुलना में दुर्भाग्य का प्राबल्य होगा, जीवन में सुख-शाति की जगह शोक-विषाद की बहुतायता होगी और हमारे भविष्य की तुलना में अतीत ही अधिक गौरवशाली होगा। रेलगाड़ियां समय से नहीं चलेंगी, कारखाने अपनी क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं करेंगे, उद्योग चौपट हो जाएंगे और खेतों में आशानुरूप उत्पादन नहीं होगी। यदि हमने उत्तरदायित्व भूमिका नहीं अदा की तो मंदिर व्यवसायिक केंद्र बन जाएंगे और शिक्षा केंद्र कारखाने बनकर रह जाएंगे। उत्तरदायित्व का ध्यान यदि हमने नहीं रखा तो हम आत्मसंतुष्टि और मानवीयता वाले कायों को टालेंगे और बर्बादी वाले कायों में समय नष्ट करेंगे। उत्तरदायित्व बोध के अभाव में हमारे बांध बाढ़ की धार नहीं रोक पाएंगे, पुल-पुलिया बह जाएंगे और राजमार्ग नष्ट हो जीवन का विनाश करेंगे, कार्यालय में गुटबंदी और कामचोरी का साम्राज्य होगा, नेतृत्व की खरीद-फरोख्त होगी, सेवा का स्थान अपराध लेंगे। हम गंभीर अध्ययन के बजाय ऐसी गतिविधियों में अधिक रूचि लेंगे जो हमारे जीवन को गलत आकार देंगे और इसके फलस्वरूप हम खिलने से पहले ही मुरझा जाएंगे। बाद में जब हमें अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ेगा तो पता चलेगा कि हम कहीं के नहीं रहे और तब हम निर्लजतापूर्वक दूसरों द्वारा उपार्जित रोटियों पर पलते हुए आने वाली क्रांतियों का स्वप्न देखेंगे। उत्तरदायित्व बोध के अभाव में हमारी शक्तियां आत्मसुधार या सामाजिक हित के लिए साहसपूर्ण संघर्ष के स्थान पर निरंतर जगत के दोषों की शिकायत करते हुए अतीव नकारात्मक ढंग से खर्च होंगी। इसलिए समय रहते अपने उत्तरदायित्वों का सही निर्वहन का ज्ञान होना अति आवश्यक है। मनुष्य जगत की किसी भी उपलब्धि से बढ़कर मूल्यवान है। अत: एक मनुष्य के रूप में अपने उत्तरदायित्वों के सही निर्वहन के द्वारा सुंदर, स्वस्थ, स्वच्छ, समरस, गौरवशाली राष्ट्र का निर्माण करना होगा।

सुनील कुमार सिंह, सचिव - विवेकानंद वीआईपीएफ इस्टिच्यूट आफ एजुकेशन, बिगनानिकानगर यारी, औरंगाबाद।

उत्तरदायित्व नैतिक जिम्मेदारी

फोटो फाइल - 27 एयूआर 05

राष्ट्र यानि स्वदेश, अपना मुल्क, वतन जहां हम बड़े होते हैं यह हमें प्राणों से भी प्रिय है। राष्ट्र की अखंडता और संप्रभुता के लिए हमें तन-मन एवं धन को समर्पित कर देना चाहिए। इसके लिए हमें अपने राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व को जानना एवं समझना होगा। उत्तरदायित्व किसी भी व्यक्ति के लिए नैतिक या वैधानिक जिम्मेदारी है, जिनका पालन सभी को अपने देश के लिए नौकरी या पेशा की तरह करना चाहिए। अपने राष्ट्र के प्रति दायित्वों का बोध होना एवं पालन करना एक नागरिक का अपने राष्ट्र के प्रति सम्मान को प्रदर्शित करता है। भारतीय सैनिकों द्वारा देश के सीमाओं की सुरक्षा के लिए निभाई जाने वाली वफादारी ड्यूटी सबसे अच्छे उत्तरदायित्व के पालन का उदाहरण है। इन्हें हमें और हमारे देश को विरोधियों से बचाने के लिए अपने प्रियजनों से अलग रहना होता है और आरामदायक जीवन से कोसों दूर हो जाते हैं।

नरेंद्र कुमार सिंह, प्राचार्य, विवेकानंद विजन आईडियल पब्लिक स्कूल, औरंगाबाद

हमेशा दायित्व का बोध

फोटो फाइल - 27 एयूआर 06

दायित्व बोध जीवन का मूलमंत्र है। जैसे ही यह ज्ञानी मानव इस धराधाम पर जन्म लेता है वैसे ही संसार के दायित्वों का बोध होने लगता है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत स्वयं, परिवार, समाज एवं राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व का बोध होता रहता है परंतु कुछ एक लोग इन दायित्वों को मूर्तरूप में जीवंत बना देते है जबकि अधिकाश लोग इसे ढाक के तीन पात की भांति सामान्य रुप से लापरवाही के साथ निर्वहन करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि ऐसे लोग जीवन संग्राम में विफल हो जाते हैं और अंतत: पश्चाताप करने लगते हैं। उन्हें यह बोध नहीं होता कि राष्ट्र की बलिवेदी पर आत्मोत्सर्ग करने वाले यह संदेश देते हैं कि - हमें निजदेश प्यारा है। भारत मां दुलारा है। निकलती सांस बोलेगी, हमारी लाश बोलेगी, हमारे देश की जय हो, हमारे त्याग की जय हो। ऐसे उत्तरदायी लोगों से हमारा राष्ट्र धन्य होता रहा है।

द्वारिकानाथ पाठक, शिक्षक, विवेकानंद विजन आईडियल पब्लिक स्कूल।

अस्मिता हो रही धूमिल

फोटो फाइल - 27 एयूआर 07

हमारा भारतवर्ष आज आक्रमणकारियों, शत्रुओं तथा व्यापारियों के निगाह में है। इसकी अस्मिता को धूमिल करने के लिए स्वदेशी वस्तुओं की जगह विदेशी वस्तुओं को बाजार देकर धूमिल करने की कोशिश कर रहे हैं। धर्म, संप्रदाय, जाति, ऊंच-नीच, बोल-चाल के आधार पर तोड़ने की कोशिश की जा रही है। ऐसी विकट स्थिति में पुन: आदिकाल की भावनाएं जगाकर इसकी प्रतिष्ठा कायम रखने की जरूरत है। पुन: कृष्ण की वह उक्ति याद दिलानी होगी - धर्म संस्थापनार्याय विनाशाय युगे-युगे। पुन: कृष्णावसार की तरह राष्ट्र की सुरक्षा हेतु, शत्रुओं का दमन कर ग्राहत्व की भावना को जागृत करवाना होगा। एक बार पुन: विवेकानंद, राजाराम मोहन राय, महात्मा गांधी के कदमों का अनुसरण करते हुए देश के नागरिकों में जीवन संचार कर जागृति लानी होगी।

अनिल कुमार पांडेय, शिक्षक - विवेकानंद विजन आईडियल पब्लिक स्कूल, औरंगाबाद।

बर्बाद न करें वोट

फोटो फाइल - 27 एयूआर 08

राष्ट्र के सभी व्यक्ति को देश की जवाबदेही जरूरी है। एक आम नागरिक के रूप में हमें किसी भी अपराध के प्रति सहानुभूति नही दिखानी चाहिए और इसके खिलाफ आवाज भी उठानी चाहिए। भारत के लोग मतदान के द्वारा मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और अन्य राजनीतिक नेताओं को चुनने का अधिकार रखते है। इसलिए हमें गलत नेता का चुनाव कर अपना वोट को बरबाद नही करना चाहिए, जो देश को भ्रष्ट करे। हमें अपने नेता को अच्छे से जानकर और समझकर अपना मत देना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि हमारा देश स्वच्छ और सुंदर बने। हमें अपने देश की ऐतिहासिक विरासत और पर्यटन स्थलों को नष्ट और गंदा नहीं करना चाहिए। लोगो को दैनिक समाचारों और अन्य दैनिक गतिविधियों में देश में चल रही अच्छी और बुरी खबरों के बारे में जानने के लिए दिलचस्पी लेनी चाहिए।

सिमरन सिंह, दशम, विवेकानंद विजन आईडियल पब्लिक स्कूल- औरंगाबाद ।

नागरिकों पर काफी निर्भर

फोटो फाइल - 27 एयूआर 09

एक समाज, समुदाय या देश के नागरिक होने के नाते कुछ उत्तरदायित्व का पालन हर व्यक्ति द्वारा निश्चित रुप से किए जाने की आवश्यकता है। देश में उज्जवल भविष्य प्रदान करने के लिए सभी को नागरिकता के उत्तरदायित्व का पालन करना चाहिए। एक देश पिछड़ा, गरीब या विकासशील है तो सब कुछ उसके नागरिकों पर निर्भर करता है। तब तो और भी विशेष रूप से जब वो देश एक प्रजातात्रिक देश हो। प्रत्येक को देश के अच्छे नागरिक होने के साथ ही देश के प्रति वफादार भी होना चाहिए। लोगों को सभी नियमों, अधिनियमों और सरकार द्वारा सुरक्षा और बेहतर जीवन के लिए बनाये गए कानूनों का पालन करना चाहिए।

शाइस्ता प्रवीण, नवम-विवेकानंद विजन आईडियल पब्लिक स्कूल, औरंगाबाद।

सबकुछ राष्ट्र से प्राप्त

फोटो फाइल - 27 एयूआर 10

हर व्यक्ति को अपना राष्ट्र अत्याधिक प्रिय होता है क्योंकि हर व्यक्ति को सबकुछ उसे अपने राष्ट्र से ही प्राप्त होता है। जीना, मरना सबकुछ राष्ट्र में ही होता है। तो आखिर हर व्यक्ति राष्ट्र के लिए क्यों न मरे। हर व्यक्ति का अपने राष्ट्र के प्रति अपना कुछ दायित्व होता है। संकट के समय में व्यक्तियों को अपने प्राण भी न्यौछावर करने पड़ते हैं। हर राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है और उसे बनाए रखना हमारा कर्तव्य बनता है। विश्व में कोई भी राष्ट्र अपने देशवासियों के कर्म और राष्ट्र के प्रति आत्मसमर्पण के आधार से सर्वोच्च स्थान प्राप्त करता है।

आदित्य प्रकाश, नवम - विवेकानंद विजन आईडियल पब्लिक स्कूल, औरंगाबाद।


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