लाल इलाके की जर्जर सड़क पर खतरे का संकेत
नक्सल इलाके की अधिकांश सड़कें जर्जर है।
औरंगाबाद। नक्सल इलाके की अधिकांश सड़कें जर्जर है। जर्जर सड़कों पर नक्सल विरोधी अभियान में जाने वाले जवानों को खतरे का भय बना रहता है। सड़कें नहीं बनने से लाल इलाके के ग्रामीणों का जीवन रफ्तार नहीं पकड़ सकी है। वाहन तो दूर बाइक और साइकिल से चलना मुश्किल हो गया है। देव से बालूगंज जाने वाली सड़क की स्थिति अत्यंत जर्जर है। इस सड़क से ढिबरा थाना एवं भलुआही सीआरपीएफ कैंप के जवानों के अलावा सैकड़ों गांवों के ग्रामीणों का आवागमन होता है। यही हालात देव केताकी एवं देव कंचनपुर पथ की है। जर्जर सड़कों पर वाहन तो दूर पैदल चलना मुश्किल हो गया है। देव बालूगंज रोड के बरंडा मोड़ से भलुआही कैंप जाने वाली सड़क सीआरपीएफ जवानों के तमाम प्रयास के बावजूद नहीं बन सकी। चर्चा है की नक्सलियों के भय के कारण सड़क का निर्माण नहीं हो रही है। सड़क नहीं बनने से कैंप के जवानों कचे कच्ची सड़क पर गुजरने से बारूदी सुरंग लगे होने का भय बना रहता है। बरंडा मोड़ पर पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कैंप जाने वाली कच्ची सड़क में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आइडी विस्फोट में सीआरपीएफ के उपकमांडेंट समेत तीन जवानों की मौत हो गई थी। ढिबरा थानाध्यक्ष अमर चौधरी समेत 12 पुलिसकर्मी गंभीर रुप से घायल हो गए थे जिनकी हालत आजतक ठीक नहीं है। घटना के बाद यहां जांच में पहुंचे सीआरपीएफ के वरीय अधिकारी से लेकर जिला एवं पुलिस प्रशासन के वरीय अधिकारी जर्जर सड़क को पक्की बनाने की वकालत की पर आज तक नहीं बन सकी। बालूबंज के दक्षिणी इलाके में बनुआ, दुलारे, छुछिया समेत अन्य गांवों को जोड़ने वाच्ी कच्ची सड़क कालीकरण नहीं हो सकी है। जर्जर सड़कों से ही जवान नक्सल विरोधी अभियान चलाते हैं। सीआरपीएफ एवं कोबरा अधिकारियों की माने तो नक्सल इलाके की सड़कें प्राथमिकता के आधार पर बननी चाहिए पर क्यों नहीं बनती है यह समझ से परे है। आरइओ के कार्यपालक अभियंता की मौत के बाद किसी का पदस्थापन नहीं होने के कारण सड़कों के निर्माण अथवा स्वीकृति की कोई जानकारी नहीं मिल सकी है।