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जब सिकंदर की पत्नी ने शत्रु को बाधी राखी

औरंगाबाद । राखी का त्योहार है। भाई-बहन के प्यार का प्रतीक पर्व। इतिहास और पुराण में ऐसे उ

By Edited By: Published: Fri, 28 Aug 2015 08:48 PM (IST)Updated: Fri, 28 Aug 2015 08:48 PM (IST)
जब सिकंदर की पत्नी ने शत्रु को बाधी राखी

औरंगाबाद । राखी का त्योहार है। भाई-बहन के प्यार का प्रतीक पर्व। इतिहास और पुराण में ऐसे उदाहरण दर्जनों दर्ज हैं, जब भाई-बहन के अलावा भी राखी या रक्षा सूत्र बांधे जाने की घटना दर्ज है। पहले यह जान लें यह त्योहार कब शुरू हुआ। भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ और दानव हावी होने लगे तो भगवान इंद्र घबरा कर वृहस्पति के पास गये। वहा बैठी इंद्र की पत्‍‌नी इंद्राणी ने सब सुनने के बाद रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। विश्वास किया जाता है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए। उसी दिन से धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। इतिहास में दर्ज है योद्धा सिकंदर की पत्‍‌नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाधकर अपना भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने राखी और इस बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवन दान दिया था। एक प्रसंग बताता है कि मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने इसकी लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्ध लड़ते हुए कर्मावती एवं उसके राज्य की रक्षा की।


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