बचपन में ही परदेशी हो जाते हैं बच्चे
मनीष कुमार, औरंगाबाद :
जागरण संवाददाता, औरंगाबाद :
यह बच्चों का नसीब कहें या गरीबी जो बचपन में ही परदेशी बना देता है। घरों में पाले गए पशु की जान बचाने के लिए दो से तीन माह तक घर को छोड़ देते हैं। घर से बच्चे करीब तीस से पैतीस किमी पैदल चलकर अपने पशु को लेकर मैदानी इलाके में डेरा जमाते हैं। घर से इतनी दूरी तय करने में उन्हें कई पहाड़ों पर चढ़ना पड़ता है। घने जंगलों को पार करना होता है। इतना संकट झेलने के बाद बच्चे पानी के स्रोत वाले इलाके तक पहुंचते हैं। गर्मी शुरु हो गई है। देव के दक्षिणी इलाके के पहड़तल्ली व जंगली इलाके में नदी, आहर, पोखर के अलावा पानी का सभी स्रोत सूख गया है। प्रखंड के दक्षिण इलाके में स्थित जंगल गया जिले के डुमरिया प्रखंड की सीमा से लगता है। इस प्रखंड के पहाड़ों की तराई वाले इलाकों रेगिस्तान जैसा हालात हो गया है। लूटीटांड़ गांव से पशु लेकर पशुपालक देव प्रखंड मुख्यालय के आसपास गावों में डेरा जमा लिया है। पशुपालकों में अधिकांश छोटे बच्चे हैं। प्रखंड कार्यालय के पास डेरा जमाए बच्चों की बात सुन रूह कांप जाती है। खेलने, कूदने और पढ़ने की उम्र में बच्चे पशु के साथ घर छोड़ यहां जीवन बीता रहे हैं। जिन किसानों के खेत में जानवर को ठहराते हैं उन्हीं किसानों के द्वारा बच्चों को सुबह और शाम का भोजन मिलता है। अनुज कुमार, सत्येंद्र कुमार एवं पप्पू कुमार ने बताया कि उनके गांव लूटीटांड के अलावा इमलीचक, पानडीह, तारचुआं के आस पास इलाके में पानी के अलावा चारा का संकट उत्पन्न हो गया है। पशु का जान बचाना मुश्किल हो गया है। बच्चों ने बताया कि पानी और चारा बिना पशु मर रहा हैं। जान बचाने के लिए यहां तक आया हूं। मां और पिता की याद आती है पर याद को गम में डूबा देता हूं।
कहते हैं पीएचइडी के कार्यपालक अभियंता
कार्यपालक अभियंता रामचंद्र प्रसाद ने बताया कि पहड़तली एवं जंगली इलाके में पानी के लिए रिंग बोरिंग चापाकल लगाया गया है। जमीन के नीचे पहाड़ होने के कारण पानी निकलने में थोड़ी परेशानी होती है। कहा कि इस जिले में पेयजल का संकट उत्पन्न नहीं हुआ है। सूचना के अनुसार जो पशुपालक देव प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचे हैं वे गया जिले के डुमरिया प्रखंड से आए हैं।