भक्ति और प्रेम के संगम का प्रतीक है महाशिवरात्रि
अररिया। भगवान शिव का नाम लेते ही मन में प्रेम और भक्ति का स्पंदन होने लगता है। संसार के कल्याण के लि
अररिया। भगवान शिव का नाम लेते ही मन में प्रेम और भक्ति का स्पंदन होने लगता है। संसार के कल्याण के लिए भगवान शिव ने अमृत बांटे और विष स्वयं पी लिए। भगवान शिव को औढरदानी कहा गया है। जो भी भक्त मन से शिव को भज ले शिवजी उन पर प्रसन्न हो जाते हैं। समुद्र मंथन से जब विष निकला तो ऐसा लगा कि ये सृष्टि का नाश कर देगा। नीलकंठ महादेव ने विष पीकर सृष्टि को नाश होने से बचा लिए। पूरे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया।
क्या कहते हैं विद्वान
पंडित बालकृष्ण झा कहते हैं कि मनुष्य को भगवान शंकर की तरह समाज में फैले विश का पान कर लेना चाहिए और यथाशक्ति मन, वचन व कर्म के अमृत से प्रेम, सच्चाई, बंधुत्व का संदेश बांटना चाहिए। भक्तगण शिवरात्रि के पावन अवसर पर शिव चतुर्दशी का व्रत रखते हैं। भक्तों का मानना है जो भी भक्त शिव चतुर्दशी का व्रत कर शिव व पार्वती के मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है। शिव के कई महारूप हैं। भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप से दुनिया को संदेश जाता है कि बगैर नारी के सम्मान से पृथ्वी का कल्याण नही हो सकता। इसलिए नारी का आदर ¨हदू धर्म की खास विशेषता रही है। शिव व पार्वती का मिलन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर ही द्वादश ज्योतिर्लिगों के प्रकट होने का पुनीत अवसर माना जाता है। विद्वानों का कहना है कि शिवरात्रि एक ऐसा अवसर है जिसमें सांसारिक बंधनों से उपर उठकर भक्त शिव तत्व की सर्वोच्च महिमा को आत्मसात कर लेते हैं।