..टूटी है तलवार किसके हाथ देखना
अररिया। विधानसभा चुनाव के परिणाम मिले एक पखवाड़ा जरूर बीत गया है, लेकिन त्यौहारों के इंटरवल ने नेताओं
अररिया। विधानसभा चुनाव के परिणाम मिले एक पखवाड़ा जरूर बीत गया है, लेकिन त्यौहारों के इंटरवल ने नेताओं को आत्ममंथन व समीक्षा का वक्त दिया ही नहीं। अब चूंकि पर्वों की आधिकारिक क्लो¨जग हो गयी है तो हार जीत की चर्चा का अध्याय एक बार फिर शुरू हो गया है। ..अगर वो दगाबाजी नहीं करता तो हार नहीं होती। ..इह, इस बार तो उसको खूब फंसाए। लेकिन एक चाय दुकान पर चल रही चर्चा में सुनाई दिया ये शे़र चुनावी उपसंहार में बेहद माकूल लगा। ..मैदान की जीत हार तो किस्मत की बात है, टूटी है तलवार किसके हाथ देखना।
सच भी है कि चुनाव के ठीक बाद नेता व जनता दोनों दीवाली व छठ की तैयारी में जुट गए थे। अब पर्व त्यौहार भी संपन्न हो गए हैं। मधेश आंदोलन की वजह से कार्तिक पूर्णिमा मेले पर वराह क्षेत्र भी नहीं जा सकते। लिहाजा नेता लोग जब भी अपने सर्मथकों के साथ कहीं बैठते हें तो चर्चा के सेंटर में चुनाव ही रहता है। नेताओं की बैठकी में पंचायत स्तर के नेता भी जुटे नजर आते हैं। इसीलिए जाहिर है कि चुनावी चर्चा से अब भी निजात नहीं मिल पायी है।
इस बार के चुनाव में यहां से राजग को करारी शिकस्त मिली, जबकि महागठबंधन ने शानदार जीत हासिल कर अपने मुरझा गए संगठन में नयी ताकत डाल दी। इसीलिए एमजीबी खेमे में जहां खुशी की धारा प्रवाहित हो रही है, वहीं राजग नेताओं के बीच निराशा व्याप्त है। एनडीए के नेता इस बात की पड़ताल में लगे हैं कि चूक आखिर क्या हुई। राजग खेमा भितरघातियों की पहचान में भी जुटा है, नाम तो सार्वजनिक नहीं किए जा रहे, लेकिन चर्चा के दौरान लोग आरोप लगाने से बाज नहीें आते। संगठन से जुड़े लोग टूटी तलवार हाथ में लिए नेताओं की पहचान में जुटे हैं। एक राजग नेता का कथन: ..हम लोग तो हार से नहीं घबराते, लेकिन हार का आर्कीटेक्ट अगर साथ हो तो बात जरूर गंभीर है।
बहरहाल, विधानसभा चुनाव के नतीजों ने यह जरूर साबित कर दिया है कि अररिया की रहनुमाई अब नए हाथों में दे दी गई है। जनता ने तो अपना आदेश दे दिया, लेकिन नेता इस आदेश के पीछे व्याप्त मंशा को समझ पाने में कहीं न कहीं अब भी पिछड़ रहे हैं।