सिल्ट व कचरे के कारण छटपटा रही नागार्जुन की परमान
जागरण संवाददाता, अररिया: हजार हजार बांहों वाली! जी हां, मूर्धन्य कथाकार बाबा नागार्जुन ने अररिया जिल
जागरण संवाददाता, अररिया: हजार हजार बांहों वाली! जी हां, मूर्धन्य कथाकार बाबा नागार्जुन ने अररिया जिले की सबसे बड़ी नदी परमान को यहीं नाम दिया था। लेकिन आज वे होते तो नेपाली कल कारखानों के कचरे व पहाड़ों से आने वाली गाद के कारण परमान की छटपटाहट देखते थे तो निश्चय ही दुखी होते।
नेपाल के सुनसरी जिले की चकोसिया झाड़ जंगलों से निकल कर बहने वाली परमान नदी प्रदूषण के संकट से रूबरू है। प्रदूषण का यह कहर तीन तरफा है।
कैसे हो रहा परमान का प्रदूषण
-कोसी का सतुआ बालू वाला जल ला रहा सिल्ट
-परमान में गिर रहा नेपाली कल कारखानों का कचरा
- पहाड़ों में वृक्ष कटाई से बड़े पैमाने पर आ रही गाद
- सत्ता व शासन कर रहा नदी की अवहेलना
-सिल्ट के कारण घट रहा नदी का प्रवाह वेग
परमान नदी की चर्चा महाभारत में भी है और तब इसे प्रांग नदी कहा जाता था। बाबा नागार्जुन जब पूर्वाचल में आते थे तो अहले सुबह परमान तट पर मीलों पैदल चलते थे। उन्होंने स्वयं लिखा है कि इस नदी के किनारे घूमना उन्हें अच्छा लगता है। यहां महानगरों के कोलाहल से दूर परमान तट पर उगने वाले बाल रवि के भरपूर दर्शन होते हैं। यह प्रभाव कुछ ऐसा था कि बाबा के ही शब्दों में इस नदी तट के सौंदर्य ने उनके नास्तिक को पछाड़ दिया है। लेकिन ये सब परमान के गौरवशाली अतीत का हिस्सा है। अब तो शेष है सिल्ट व कचरे से छटपटा रही एक नदी जो अपने किनारे बसे गांवों में हर दिन कटाव का दंश छोड़ती है।
पहाड़ में वन विनाश के कारण इस नदी में हर साल करोड़ों टन गाद आ रही है। वहीं नदी के अपस्ट्रीम में कोसी का पानी छोड़ा जाता है जिससे बेकार माना जाने वाला सतुआ बालू परमान तट के खेतों में पसर रहा है। खेतों की उर्वरा शक्ति घट रही है। किसान गरीब होते जा रहे हैं। गांवों से पलायन चालू है और नदी एवं गांवों को उनके ही हाल पर छोड़ दिया गया है।