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Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी पर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, खुल जाएंगे किस्मत के द्वार

शास्त्रों में एकादशी व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस व्रत के पुण्य से साधक को ब्रह्म वध दोष से भी मुक्ति मिलती है। साथ ही व्यक्ति द्वारा किए गए सारे पाप कट जाते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से आराध्य भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही मनचाहा वर पाने हेतु एकादशी व्रत भी रखते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Thu, 02 May 2024 07:59 PM (IST)Updated: Thu, 02 May 2024 07:59 PM (IST)
Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी पर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, खुल जाएंगे किस्मत के द्वार

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Varuthini Ekadashi 2024: एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु संग धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस वर्ष 04 मई को वरुथिनी एकादशी है। यह पर्व हर वर्ष वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में एकादशी व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक को ब्रह्म वध दोष से भी मुक्ति मिलती है। साथ ही व्यक्ति द्वारा जन्म-जन्मांतर में किए गए सारे पाप कट जाते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से आराध्य भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही मनचाहा वर पाने हेतु एकादशी व्रत भी रखते हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो वरुथिनी एकादशी पर विधि-विधान से भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से सोया हुआ भाग्य भी चमक उठता है। 

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लक्ष्मी नारायण स्तोत्र

ध्यानम्

चक्रं विद्या वर घट गदा दर्पणम् पद्मयुग्मं दोर्भिर्बिभ्रत्सुरुचिरतनुं मेघविद्युन्निभाभम् ।

गाढोत्कण्ठं विवशमनिशं पुण्डरीकाक्षलक्ष्म्यो-रेकीभूतं वपुरवतु वः पीतकौशेयकान्तम् ॥

शंखचक्रगदापद्मकुंभाऽऽदर्शाब्जपुस्तकम्।

बिभ्रतं मेघचपलवर्णं लक्ष्मीहरिं भजे ॥

विद्युत्प्रभाश्लिष्टघनोपमानौ शुद्धाशयेबिंबितसुप्रकाशौ।

चित्ते चिदाभौ कलयामि लक्ष्मी- नारायणौ सत्त्वगुणप्रधानौ ॥

लोकोद्भवस्थेमलयेश्वराभ्यां शोकोरुदीनस्थितिनाशकाभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

सम्पत्सुखानन्दविधायकाभ्यां भक्तावनाऽनारतदीक्षिताभ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

दृष्ट्वोपकारे गुरुतां च पञ्च-विंशावतारान् सरसं दधत्भ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

क्षीरांबुराश्यादिविराट्भवाभ्यां नारं सदा पालयितुं पराभ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

दारिद्र्यदुःखस्थितिदारकाभ्यां दयैवदूरीकृतदुर्गतिभ्याम्

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

भक्तव्रजाघौघविदारकाभ्यां स्वीयाशयोद्धूतरजस्तमोभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

रक्तोत्पलाभ्राभवपुर्धराभ्यां पद्मारिशंखाब्जगदाधराभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

अङ्घ्रिद्वयाभ्यर्चककल्पकाभ्यां मोक्षप्रदप्राक्तनदंपतीभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

इदं तु यः पठेत् स्तोत्रं लक्ष्मीनारयणाष्टकम्।

ऐहिकामुष्मिकसुखं भुक्त्वा स लभतेऽमृतम् ॥

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डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेंगी।


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