Message by Swami Maithilisharan: अहं मुक्ति का अनंत सुख, पढ़ें स्वामी मैथिलीशरण द्वारा दिया गया यह खास संदेश
Swami Maithilisharan Message नए साल का स्वागत हर्षोल्लास के साथ किया गया है। श्रीरामकिंकर विचार मिशन के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी मैथिलीशरण से जानिए कि नए साल व्यक्ति को कैसे अपना जीवन यापन करना चाहिए। आइए जानते हैं नए साल के लिए स्वामी मैथिलीशरण क्या कह रहे हैं।
नई दिल्ली, स्वामी मैथिलीशरण | New Year 2023 Message by Swami Maithilisharan: भारत की सांकृतिक पूर्णता का आधार समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे विचार हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत अभिव्यक्ति और सामाजिक समरसता में वृद्धि का संदेश देती है। भारतीय संस्कृति में शांति, समर्पण, त्याग और अहिंसा जैसे विचारों का संचार होता है। यही मूल्यवान विचार मनुष्य के जीवन में वरदान का कार्य करते हैं। नए साल में संदेशों का पालन कर व्यक्ति अपने जीवन को सरल और सुखद बना सकता है। ऐसे ही कुछ खास संदेश दे रहे हैं श्रीरामकिंकर विचार मिशन के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी मैथिलीशरण।
संदेश
सृष्टि चक्र की तरह चल रही है। जो नया है, वही भूतकाल बनकर पुराना हो जाता है। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग और फिर वही सतयुग से कलियुग की कहानी शुरू हो जाती है। वही पुराना चक्राकार घूमकर पुन: नया होकर आ जाता है। हम पुराने नहीं कहलाना चाहते हैं, इसलिए वर्ष को भी हर वर्ष नया बोलते हैं। यदि नया कुछ करना है तो यह करें कि संकल्प लें कि हमने अब तक जो किया, उसमें जो नहीं करने योग्य है, वह अब नहीं करेंगे। हम हर दूसरे से कुछ न कुछ सीखेंगे। निंदा करने की तुलना में निंदनीय से प्रेरणा लेना अधिक श्रेयस्कर है। सृजन के सूत्र हैं- पंच महाभूत यानी पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। संसार में सारा सृजन इन्हीं से बना है। इन्हीं के रहते हम कर्ता हैं, अन्यथा कर्म और कर्ता की कोई स्थिति है ही नहीं।
हम गाड़ी को पहाड़ पर चढ़ाते हैं, तो टायर, पहिया, इंजन, पेट्रोल, बैटरी और हम सब मिलकर ऊपर चढ़ते हैं, पर हम कहते हैं कि गाड़ी हमने चढ़ाई, बाकी सबको विस्मृत कर देते हैं। जड़ की सत्ता को अस्वीकारना ही तो जड़ता है। विचित्र बात है कि जड़ कभी नहीं कहता कि मैंने किया और जो स्वयं को चैतन्य समझने वाला मनुष्य है, वह कहता है कि सब मैंने किया। वस्तुत: चैतन्य तो वह है, जो हर पदार्थ में पूर्ण चैतन्य ईश्वर की सत्ता देखे। हमारा सारा सृजन हजार गुना मूल्यवान हो जाएगा, यदि हम दिखाई देने वाली सत्ता के पीछे न दिखाई देने बाली अदृश्य शक्ति को स्वीकार लें।
नया कुछ नहीं है, भूत कुछ नहीं है, भविष्य कुछ नहीं है, यदि वर्तमान को हम न समझें। वर्तमान को समझने का तात्पर्य यह है कि पहले भी ईश्वर था, अब भी ईश्वर है और भविष्य में भी ईश्वर की ही सत्ता है। ऐसा विचार हमें अहं मुक्ति का अनंत सुख देगा। कर्ता के स्थान पर निमित्त को बैठाकर हमें त्रिकाल आनंद की अनुभूति करा देगा। तब हम अपनी स्व स्थिति में स्थित हो जाएंगे।