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Surya Ashtak Stotram: करियर और कारोबार को देना चाहते हैं नया आयाम, तो पूजा के समय करें सूर्य अष्टक का पाठ

Surya Ashtak Stotram धार्मिक मान्यता है कि सूर्य देव की पूजा उपासना करने से घर में सुख समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Sun, 04 Jun 2023 10:39 AM (IST)Updated: Sun, 04 Jun 2023 10:39 AM (IST)
Surya Ashtak Stotram: करियर और कारोबार को देना चाहते हैं नया आयाम, तो पूजा के समय करें सूर्य अष्टक का पाठ
Surya Ashtak Stotram: करियर और कारोबार को देना चाहते हैं नया आयाम, तो करें सूर्य अष्टक का पाठ

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Surya Ashtak Stotram: सनातन धर्म में रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान भास्कर की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि सूर्य देव की पूजा उपासना करने से घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होता है। अतः रविवार के दिन श्रद्धा भाव से सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए। ज्योतिषियों की मानें तो जिन जातकों की कुंडली में सूर्य मजबूत रहता है। उनको करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। अगर आप भी अपने करियर और कारोबार को नया आयाम देना चाहते हैं, तो रोजाना सूर्य देव की पूजा करें। पूजा के समय जल का अर्घ्य दें और सूर्य चालीसा एवं सूर्य अष्टक का पाठ करें। आइए, सूर्य अष्टक का पाठ करें-

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सूर्यमंडल अष्टक स्तोत्रम् Surya Ashtak Stotram

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।

त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शंकरात्मने ॥ १ ॥

यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।

दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ २ ॥

यन्मण्डलं देवगणै: सुपूजितं विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम् ।

तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ३ ॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम् ।

समस्ततेजोमयदिव्यरुपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ४ ॥

यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।

यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ५ ॥

यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम् ।

प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व: पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ६ ॥

यन्मडलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यद्योगितो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ७ ॥

यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।

यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ८ ॥

यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।

यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ९ ॥

यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।

सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १० ॥

यन्मडलं वेदविदि वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ११ ॥

यन्मडलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।

तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १२ ॥

मण्डलात्मकमिदं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ।

सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥ १३ ॥

डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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