Srinagar News: प्रदेश के बदलते हालात में उमर के हाथ में नहीं सौंपी गई नेशनल कांफ्रेंस की कमान
Srinagar News पांच वर्ष बाद सोमवार को पहली बार नेकां के डेलीगेट्स की बैठक हुई। बैठक नेकां संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती पर हजरतबल नसीमबाग स्थित उनके मजार पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह के बाद हुई। इस दौरान फारूक को निर्विरोध अध्यक्ष घोषित किया गया।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ने का एलान कर चुके डा. फारूक अब्दुल्ला सोमवार को फिर निर्विरोध पार्टी प्रधान चुने गए। करीब 22 दिन पहले फारूक ने पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में कहा था कि मैं अब और ज्यादा समय तक पार्टी का अध्यक्ष नहीं रहना चाहता।
इसलिए अब नया अध्यक्ष बनाओ। उनके इस एलान के साथ ही पार्टी उपाध्यक्ष व फारूक के पुत्र उमर अब्दुल्ला का अध्यक्ष बनना लगभग तय मान लिया गया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कारण-अनुच्छेद 370 के बाद जम्मू कश्मीर के बदले हालात में नेकां नेताओं के मुताबिक फारूक का अनुभव भाजपा विरोधी दलों को नेकां के साथ जोड़ने में काम आएगा, जो विधानसभा चुनाव में उन्हें जीत दिलाएगा। दूसरी तरफ उमर भी अब यह मानने लगे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव अहम हैं, अगर नेकां का प्रदर्शन कमजोर रहा तो पार्टी की कमान हमेशा के लिए उनके हाथ से जा सकती है, उनकी नेतृत्व कार्यकुशलता पर भी सवाल खड़े होंगे।
पांच वर्ष बाद पहली बार नेकां के डेलीगेट्स की हुई बैठक
पांच वर्ष बाद सोमवार को पहली बार नेकां के डेलीगेट्स की बैठक हुई। बैठक नेकां संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती पर हजरतबल नसीमबाग स्थित उनके मजार पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह के बाद हुई। इस दौरान फारूक को निर्विरोध अध्यक्ष घोषित किया गया। उमर ने उन्हें बधाई देते हुए कहा, ‘फारूक साहब ने हम सबको झटका दे दिया था जब एक बैठक के दौरान उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा की थी, लेकिन पार्टी उन्हें नेतृत्व छोड़ने की अनुमति नहीं दे सकती है। मैंने उन्हें इस पद को स्वीकार करने के लिए राजी किया, अन्यथा कोई पार्टी अध्यक्ष नहीं होगा। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि अब आपके दोबारा चुने जाने के बाद हम आपके मिशन को आगे बढ़ाएंगे।’
दोनों में आती रही हैं मतभेद की खबरें
फारूक और उमर के बीच पार्टी के नीतिगत मामलों को लेकर मतभेद की खबरें अक्सर आती रही हैं। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव से ही पिता-पुत्र में टिकटों के बंटवारे से लेकर पार्टी के पदाधिकारियों की नियुक्ति और कांग्रेस के साथ गठजोड़ तक बहस की खबरें आती रही हैं।
उमर को समझाकर मनाया गया
आगा सैयद रुहुल्ला सहित पार्टी के कुछ युवा नेता उमर की नीतियों ने नाखुश हैं। उन्होंने कई बार उमर की नीतियों की आलोचना की है। कई नेताओं ने उमर को समझाया कि मौजूदा परिस्थितियों में हमारे पास सिवाय फारूक के अलावा कोई ऐसा नेता नहीं है जो कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों के दिग्गजों की बराबरी करे। वह चुनाव के पूर्व ही नहीं बाद में भी नेकां के पक्ष में समर्थन जुटा सकते हैं। इसके अलावा अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव होना है, अगर इन चुनाव में नेकां का प्रदर्शन कमजोर रहता है तो हमेशा के लिए उमर के नेतृत्व पर सवालिया चिन्ह लग जाएगा।
वहीं, कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि आज जो हुआ मैं उससे ज्यादा हैरान नहीं हूं। नेकां में कोई दूसरा अध्यक्ष नहीं बन सकता। अगर उमर को अध्यक्ष बनाया जाता तो पार्टी में विभाजन जरूर होता। यह भी समझें: वर्ष 2018 में हुए पंचायत व नगर निकाय चुनाव में भाग न लेने का फैसला भी कथित तौर पर उमर के दबाव का नतीजा था। नेकां के चुनावी मैदान से हटने के बाद ही उमर के करीबी रहे जुनैद अजीम मट्टू ने नेकां छोड़ चुनाव लड़ा था और आज वह श्रीनगर के मेयर हैं। इन चुनाव के बहिष्कार का नेकां के कैडर पर नकारात्मक असर हुआ।
प्रभारी घोषित करने के मामले पर भी फारूक नाखुश थे
नेकां से जुड़े एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, दो वर्ष पूर्व जिला विकास परिषद (डीडीसी) का चुनाव बेशक नेकां ने पीपुल्स एलायंस फार गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) के बैनर तले लड़ा है, लेकिन अधिंकाश सीटें नेकां के हाथ ही आई थीं। इससे उमर और उनके करीबियों को लगता है कि वह विधानसभा चुनाव अकेले अपने दम पर जीत सकते हैं।
इसी के आधार पर दो नवंबर को कश्मीर में उमर की अध्यक्षता में पार्टी की संभागीय इकाई ने एक प्रस्ताव पारित कर घाटी के सभी विधानसभा क्षेत्रों के लिए अपने प्रभारी घोषित कर संकेत दिया था कि वह अकेले ही चुनाव लड़ेंगे। इस सूची के एलान के बाद फारूक ने कथित तौर पर उमर के साथ अपना एतराज जताया था। उमर के फैसले से नाराज होकर ही फारूक ने पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने का एलान किया था।
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