I.N.D.I गठबंधन के लिए जो राज्य थे सबसे सरल, वहीं फंसा पेंच; संयम की रणनीति कांग्रेस पर पड़ रही भारी
बिहार और महाराष्ट्र में कांग्रेस को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। बिहार में लालू यादव और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के तेवरों से दोनों प्रदेशों के कांग्रेस नेता हैरान-परेशान हैं। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे चार सीटों सांगली भिवंडी मुंबई-उत्तर पश्चिम और मुंबई-दक्षिण मध्य में कांग्रेस को रत्तीभर गुंजाइश नहीं दे रहे और अपने 17 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के नामांकन की अंतिम तारीख भी बीत गई है मगर विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए के सहयोगी दलों के साथ कांग्रेस को सीट बंटवारे के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। दिलचस्प यह है कि तमिलनाडु से इतर जिन दो राज्यों बिहार ओर महाराष्ट्र में आइएनडीआइए खेमे के दलों के बीच गठबंधन की राह सबसे सहज मानी जा रही थी वहीं कांग्रेस को सबसे ज्यादा चुनौती से रूबरू होना पड़ रहा है।
बिहार-महाराष्ट्र में क्यों फंसा पेंच?
बिहार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद अब दोनों दलों के बीच नाक का सवाल बन चुके पूर्णिया सीट समेत कांग्रेस को उसकी मांग के हिसाब से सीटें देने को तैयार नहीं हो रहे। वहीं महाराष्ट्र की सत्ता के खेल में शिवसेना के दो फाड़ होने के बाद शिवसेना यूबीटी के साथ मजबूती से खड़ी रही कांग्रेस को उद्धव ठाकरे उन चार सीटों पर रत्ती भर गुंजाइश देने को राजी नहीं हो रहे जिसको लेकर दोनों पार्टियों के बीच खींचतान खुले तौर पर चल रही है। बिहार के संदर्भ में कांग्रेस का शीर्षस्थ नेतृत्व लालू प्रसाद पर लगभग आंखें बंद कर भरोसा करता रहा है मगर सीट बंटवारे में राजद ने ऐसा कोई लचीलापन नहीं दिखाया है।
राजद-भाजपा में कहीं अंदरूनी सियासी खेल तो नहीं?
पूर्णिया सीट से कांग्रेस नेतृत्व हाल में पार्टी में शामिल हुए पप्पू यादव को लड़ाना चाहता है पर तमाम प्रयासों के बावजूद खबर लिखे जाने तक राजद इसके लिए तैयार नहीं और बीमा भारती को उसने पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं कांग्रेस की 10 सीटों की मांग पर नौ सीटें देने के लिए लालू ने सहमति दी भी है तो उसके बदले झारखंड की दो सीटें चतरा और पलामू छोड़ने की शर्त रखी है। राजद के इस रुख को लेकर बिहार के कांग्रेस नेताओं में जबरदस्त आक्रोश का माहौल है और कई नेता दिल्ली पहुंचकर इसे पार्टी का अपमान ही नहीं बता रहे बल्कि पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने तो एआइसीसी पहुंचकर ऐसे सवाल भी उठाए कि कहीं राजद-भाजपा में अंदरूनी सियासी खेल तो नहीं चल रहा।
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खासकर यह देखते हुए कि बाल्मिकीनगर जैसी कांग्रेस की मजबूत सीट जिस पर उपचुनाव में पार्टी महज 22 हजार मतों से हारी थी उसे राजद ने हथिया लिया है। इतना ही नहीं मिथिलांचल के ब्राहमणों के प्रभाव वाले दरभंगा, मधुबनी, झंझारपुर, सीतामढ़ी आदि में एक भी सीट कांग्रेस को नहीं दी है।
महाराष्ट्र में हालात और बिगड़ी
बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा ने राजद के इस रूख पर बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल अभी की बात नहीं इतिहास गवाह है कि हर चुनाव के वक्त लालू आखिरी वक्त तक सीट बंटवारे का मामला खींचते हैं और अंत में कांग्रेस को कुछ ऐसी-वैसी सीटें स्वीकार्य करने को बाध्य करते हैं। जबकि लालू परिवार के संकट के समय कांग्रेस नेतृत्व ने सदैव उनका पूरा समर्थन किया है।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे चार सीटों सांगली, भिवंडी, मुंबई-उत्तर पश्चिम और मुंबई-दक्षिण मध्य में कांग्रेस को रत्तीभर गुंजाइश नहीं दे रहे और अपने 17 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके। महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बाला साहब थोराट इसे गठबंधन धर्म के खिलाफ बता रहे मगर आइएनडीआइए की एकता की खातिर कांग्रेस दबाव बनाने के अतिरिक्त कोई निर्णायक कदम उठाती नहीं दिख रही।
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इसका ही नतीजा है कि सूबे के कई नेता दूसरे राजनीतिक विकल्पों की ओर देख रहे हैं और वरिष्ठ कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने तो नेतृत्व को एक हफ्ते का अल्टीमेटम तक दे दिया है। सूबे के विधायक विश्वजीत कदम जो कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं में हैं उन्होंने तो बकायदा दिल्ली आकर दो दिन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष खरगे और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से सांगली सीट के लिए हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई मगर उद्धव का रूख अभी तक बदला नहीं है।