Uttarakhand Tourism: रोमांच और आस्था का संगम है धारचूला में व्यास घाटी की यात्रा
uttarakhand tourism व्यास घाटी में ही ओम पर्वत व आदि कैलास है। ओम पर्वत के मार्ग पर व्यास गुफा व्यास पर्वत भी देखे जा सकते हैं। लोक मान्यता है कि महर्षि व्यास ने इस जगह पर तपस्या की थी।
गणेश जोशी, हल्द्वानी: uttarakhand tourism पहाड़ों पर रोमांच और प्राकृतिक सौंदर्य का मिश्रण तो मिलता ही है। साथ में यदि आस्था का भी संगम हो और 150 वर्ष पुराने नक्काशीदार घरों से नैसर्गिक सुंदरता को निहारने का अवसर मिले तो यात्रा अलौकिक सी हो जाती है। भीड़-भाड़ से दूर अध्यात्मकिता संग परंपरा और रोमांच की अनुभूति करना चाहते हैं तो आपके लिए बेहतरीन और खूबसूरत स्थल हैं ओम पर्वत व आदि कैलास।
यह उत्तराखंड के सीमांत जिला पिथौरागढ़ के धारचूला की व्यास घाटी पर स्थित है। जहां आप शीतलता के साथ शांति महसूस करेंगे। भोले के इस निवास स्थल पर आपको अलग ही एहसास होगा। यहां की पौराणिक मान्यताएं आपके भीतर जिज्ञासा का भाव जगाएंगी। साहसिक पर्यटन के लिहाज से भी यह स्थल और भी अद्भुत है। एक तरफ पथरीली सड़क, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूसरी तरफ काली नदी की ऊफान मारती लहरें। जगह-जगह हिमखंडों के बीच से गुजरना रोमांच पैदा कर देता है।
गांव की अनुभूति कराता नाबी का होम स्टे: इस पूरी यात्रा के दौरान अगर आप गांव की जीवन को निकट से महसूस करना चाहते हैं तो नाबी आपके स्वागत के लिए तैयार है। लगभग 150 वर्ष पहले बने खूबसूरत नक्काशी वाले घरों में आप रह सकते हैं। अब इन्हें बतौर होम स्टे तैयार किया गया है। पांरपरिक स्थानीय व्यंजनों का स्वाद यहां मिलेगा। विपरीत परिस्थितयों में सदियों से गुजर-बसर करने वाले व्यास घाटी के रं समुदाय के लोगों का आतिथ्य सत्कार आप कभी नहीं भूल पाएंगे। नाबी गांव के प्रधान मदन नबियाल बताते हैं कि हमारा प्रयास रहता है कि धार्मिक व साहसिक यात्रा पर आने वाले हर व्यक्ति का उत्साह दोगुना हो जाए। इसके लिए हम सभी ग्रामवासी हरसंभव प्रयास करते हैं। यात्रा पर गए हल्द्वानी निवासी रेड क्रास सोसाइटी के चेयरमैन नवनीत राणा बताते हैं कि गांव में दो दिन रुके। वहां के लोगों का आतित्थ्य सत्कार मन को छू गया।
काली मंदिर के दर्शन करें: ओम पर्वत के मार्ग पर काली मंदिर है। इसी जगह से काली नदी का उद्गम होता है। इस नदी का जौलजीवी में गोरी नदी से संगम होता है। आगे पंचेश्वर में शारदा व पूर्वीगंगा, फिर उत्तर प्रदेश में शारदा व घाघरा बनने के बाद बलिया में यह गंगा नदी में समा जाती है। मान्यता है कि महर्षि व्यास जी ने इस जगह पर काली मंदिर बनाया था। इसके बाद वर्ष 1970 में इस मंदिर को स्पेशल टास्क फोर्स की ओर से भव्य स्वरूप दिया गया। मान्यता है कि जो कैलास मानसरोवर की यात्रा पर जाएगा, पहले काली माता के दर्शन करेगा। इसलिए कैलास यात्री इस मंदिर का दर्शन जरूर करते हैं। इस मंदिर पर स्थानीय लोगों की भी विशेष आस्था है।
व्यास घाटी की ये है मान्यता: व्यास घाटी में ही ओम पर्वत व आदि कैलास है। ओम पर्वत के मार्ग पर व्यास गुफा, व्यास पर्वत भी देखे जा सकते हैं। लोक मान्यता है कि महर्षि व्यास ने इस जगह पर तपस्या की थी। इसके चलते इस पूरी घाटी का नाम व्यास घाटी हो गया। भगवान शिव का स्थल होने की वजह से ओम पर्वत व आदि कैलास पवित्र धार्मिक व आध्यात्मिक स्थल है। इस पर्वत पर साक्षात ओम लिखा हुआ नजर आता है, जिसे देख दिव्य अनुभूति होती है।
कुटी यानी कुंती का गांव: गाथाओं के अनुसार आदि कैलास मार्ग पर स्थित कुटी गांव का नाम कुंती के नाम पर पड़ा। पांडव जब स्वर्ग को जा रहे थे, तब इस गांव में ठहरे थे। अगर पर्याप्त समय लेकर जाएंगे तो आप इन सभी का आनंद उठा पाएंगे। इस गांव में भी होम स्टे की व्यवस्था है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2016 में आइएएस धीराज सिंह गब्याल (वर्तमान में डीएम नैनीताल) ने की थी।
धारचूला में इनर लाइन परमिट बनाना न भूलें: आदि कैलास व ओम पर्वत की यात्रा के लिए आपको धारचूला में इनर लाइन परमिट बनवाना होगा। इस परमिट के बिना आप यात्रा नहीं कर सकेंगे। इस बनाने के लिए पहले धारचूला के सरकारी अस्पताल से मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र और फिर तहसील से शपथ पत्र बनाना होगा। पुलिस सत्यापन के बाद एसडीएम परमिट जारी करते हैं। पहचान के लिए आधार कार्ड व तीन फोटो अनिवार्य रूप से रखें। यह सब काम धारचूला में ही हो जाता है।
ऐसे पहुंचे ओम पर्वत व आदि कैलास: पंतनगर तक हवाई जहाज या फिर हल्द्वानी-काठगोदाम तक ट्रेन से पहुंचने के बाद यहां से ओम पर्वत लगभग 500 किलोमीटर दूर है। पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तक बस व टैक्सी से जा सकते हैं। वहां से फोर बाइ फोर वाहनों से ही यात्रा सुगम हो सकती है। धारचूला से टैक्सियां उपलब्ध हैं। यहां से सीधे नाबी या गुंजी तक की यात्रा कर सकते हैं। वहां से आगे 50 किमी दूर कुटी, जौलिंगकांग होते हुए आदि कैलास की यात्रा की जा सकती है। जौलिंगकांग तक वाहन जाने लगे हैं। वहां से पैदल तीन किलोमीटर आदि कैलास मंदिर व पार्वती सरोवर है और फिर दूसरे रास्ते पर करीब दो किलोमीटर पर गौरीकुंड के दर्शन किए जा सकते हैं। वहां से वापसी में कुटी, नाबी या फिर गुंजी में रूक सकते हैं। दूसरे दिन नावीढांग में ओम पर्वत के दर्शन कर वापस सीधे धारचूला भी पहुंचा जा सकता है। नैसर्गिक सुंदरता का भरपूर आनंद लेना हो तो फिर से नाबी या गुंजी में होम स्टे में ठहर सकते हैं। अगले दिन वहां से धारलूचा, पिथौरागढ़ पहुंच जाएंगे।
इन बातों का रखें खास ध्यान: आप 14 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर जा रहे होते हैं। कई जगह पर तापमान माइनस में रहता है। इसिलए जरूरी है कि आप रुक-रुक कर जाएं। स्टापेज बढ़ा लें। अपने साथ गर्म कपड़े, जरूरी दवाइयां व भोजन सामग्री भी अवश्य रख लें। बारिश की वजह से कई बार सड़क मार्ग कुछ समय के लिए बंद हो जाता है।