भारत के नेतृत्व में जी-20 का नई दिल्ली सम्मेलन सफलतम आयोजन तो रहा ही, इसे कई बड़ी उपलब्धियों के लिए भी याद किया जाएगा। पहली बड़ी उपलब्धि तो शिखर सम्मेलन के पहले दिन मिली जब तमाम विसंगतियों के बावजूद भारत घोषणापत्र पर अलग-अलग खेमे में बंटे देशों को साथ लाने में कामयाब रहा। भारत के नेतृत्व में जी-20 अधिक समावेशी बना और इसमें 55 देशों वाली अफ्रीकन यूनियन को शामिल किया गया। इससे समूह में विश्व के हर हिस्से का प्रतिनिधित्व हो गया है। भारत को मध्य-पूर्व और यूरोप से जोड़ने वाला 6 हजार किमी लंबा आर्थिक कॉरिडोर और ग्लोबल बायोफ्यूल्स अलायंस अन्य बड़ी उपलब्धियां हैं। सम्मेलन बदलती विश्व व्यवस्था में बदलाव का भी गवाह बना। मसलन, अमेरिका में चुनावों को देखते हुए राष्ट्रपति बाइडेन की प्राथमिकता में यूक्रेन नीचे और चीन ऊपर आ गया है। इस समूह में ग्लोबल साउथ के बढ़ते महत्व का भी एहसास हुआ।

जी-20 ने भारत के लिए कई अवसर भी खोले। सबसे बड़ा अवसर तो आर्थिक कॉरिडोर है। इससे मध्य पूर्व और यूरोप को निर्यात आसान होगा, कॉरिडोर निर्माण में भी भारत अपने अनुभवों से महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। चीन के कर्जजाल वाले बीआरआई के जवाब में अमेरिका विश्व के अन्य हिस्सों में भी ऐसे प्रोजेक्ट लागू करना चाहता है। सवाल है कि विश्व मंचों पर की गई ऐसी घोषणाओं की अहमियत क्या है? खाद्य सुरक्षा के लिए सभी देश कृषि निर्यात पर रोक न लगाने पर सहमत हुए, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता 2015 में हुआ, पर तमाम देश अभी तक इसे लागू करने की प्रतिबद्धता ही जता रहे हैं। लक्ष्य के विपरीत 2022 में कोयले से बिजली उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लिए 2030 तक हर साल क्लीन टेक्नोलॉजी पर चार लाख करोड़ डॉलर खर्च करने होंगे, पर यह पैसा आएगा कहां से? विकसित देशों ने हर साल 100 अरब डॉलर देने का वादा एक दशक में एक बार भी पूरा नहीं किया है।

सम्मेलन में भारत-कनाडा रिश्तों में तल्खी भी दिखी, जिसकी गूंज संयुक्त राष्ट्र महासभा तक पहुंच गई। कनाडा ने खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत के शामिल होने का आरोप लगाया, जिसका भारत ने यह कहकर करारा जवाब दिया कि “राजनीतिक सहूलियत से आतंकवाद, उग्रवाद और हिंसा का जवाब नहीं दिया जा सकता।” कनाडा दशकों से खालिस्तानी आतंकियों की पनाहगाह बना हुआ है और उसका आरोप उसके दोहरे मानदंड को ही प्रदर्शित करता है। आतंकवाद, आखिरकार आतंकवाद ही है, कोई देश अपनी सहूलियत या राजनीतिक फायदे के लिए इसकी अलग परिभाषा नहीं तय कर सकता।

(यह लेख जागरण प्राइम के सितंबर अंक की मैगजीन में प्रकाशित है)