गृहमंत्री अमित शाह के फर्जी वीडियो के सहारे उनके खिलाफ दुष्प्रचार करने और गलत नैरेटिव फैलाने की कोशिश कोई नई बात नहीं। इस तरह की हरकतें होती ही रहती हैं। चूंकि इस समय चुनाव चल रहे हैं, इसलिए फर्जी, संदर्भ से काटकर और अर्थ का अनर्थ करने वाले गलत तरीके से संपादित किए गए वीडियो आने का सिलसिला शायद ही थमे।

किसी को बदनाम करने के लिए फर्जी वीडियो प्रचारित-प्रसारित करने का सिलसिला इसीलिए तेज होता जा रहा है, क्योंकि यह काम करने वाला पूरा एक तंत्र खड़ा हो चुका है। इसी कारण दुनिया भर में फेक न्यूज एक बड़ी समस्या बन गई है। इसका कारण तकनीक का दुरुपयोग रोकने के लिए पर्याप्त उपाय न करना और दोषी लोगों को कठोर दंड न दिया जाना है।

आम तौर पर जब किसी नेता के फर्जी वीडियो पर कोई कार्रवाई होती है तो विरोधी दल के लोग यह शोर मचाने लगते हैं कि विरोधियों का दमन किया जा रहा है। कुछ तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ लेने लगते हैं। हालांकि समय-समय पर सभी दलों के नेता फर्जी खबरों, फोटो, वीडियो का शिकार बनते रहते हैं, लेकिन जब उन्हें प्रचारित-प्रसारित करने वालों के खिलाफ पुलिस कोई कदम उठाती है तो राजनीतिक कारणों से आरोपित का बचाव किया जाने लगता है।

कभी-कभी तो ऐसे तत्वों के प्रति अदालतें भी नरम रवैया अपना लेती हैं। इसका परिणाम यह है कि फोटो, वीडियो में छेड़छाड़ कर भ्रम फैलाने वालों के दुस्साहस पर लगाम नहीं लग पा रही है। यह इसलिए चिंता की बात है, क्योंकि अब एआइ का सहारा लेकर ऐसे वीडियो बनाए जाने लगे हैं, जिनके साथ की गई छेड़छाड़ का पता लगाना कठिन होता है।

इस तरह के वीडियो बनाकर कलाकारों और नेताओं को बदनाम करने के मामले बढ़ रहे हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि तकनीक का दुरुपयोग करके जनमत और साथ ही चुनावों को प्रभावित करने का काम सुनियोजित तरीके से होने लगा है। कैंब्रिज एनालिटिका का मामला ऐसा ही था। ऐसे मामले इसीलिए सामने आते हैं, क्योंकि सोशल नेटवर्क प्लेटफार्म संचालित करने वाली कंपनियां उनका दुरुपयोग रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने से इन्कार कर रही हैं।

कई बार तो वे शिकायत के बाद भी मानहानिकारक या फिर कानून एवं व्यवस्था के लिए खतरा बनने वाले फर्जी वीडियो प्रसारित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करतीं। फर्जी खबरें राजनीति और सामाजिक सद्भाव के साथ शासन तंत्र के लिए भी खतरा हैं। यह खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

अच्छा हो कि राजनीतिक दलों में इस खतरे से निपटने के उपायों को लेकर सहमति बने। यह समझा जाना चाहिए कि लोकतंत्र के समक्ष जो नए खतरे उभरे हैं, उनमें फर्जी खबरें, फोटो और वीडियो भी हैं। आधुनिक तकनीक एक वरदान है, लेकिन यदि उसका दुरुपयोग नहीं थमा तो वह अभिशाप भी बन सकती है।