गिरीश्वर मिश्र। आजादी के सात दशक बाद देश ने अमृतकाल की अवधि में एक आत्मनिर्भर और सशक्त भारत के निर्माण के लिए संकल्प लिया है। इस कार्य के लिए पूरे भारतीय समाज की संलग्नता जरूरी है। इस लक्ष्य के प्रति एकल समर्पण के साथ ही देश आगे बढ़ सकेगा। इसके लिए गणतंत्र की परिधि में कार्य करना होगा, जिसे संसदीय प्रणाली के अनुसार होना है। इस दृष्टि से लोकसभा का चुनाव एक महत्वपूर्ण अवसर है।

अगली लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव की बढ़ती सरगर्मियों के बीच सभी दल घोषणा पत्रों के जरिये जनता को लुभाने के लिए किस्म-किस्म के वादे करने में जुट रहे हैं। सबका एक ही लक्ष्य है जनसमर्थन हासिल करना, ताकि अपनी पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल किए जा सकें। हालांकि विभिन्न पार्टियों के परस्पर विरोधी दावे अक्सर दिग्भ्रमित भी करते हैं।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य कुछ ऐसा है कि पीएम मोदी की उपस्थिति, छवि और संवादपटुता ने उनको राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया है। उनकी गतिशीलता ने भारत की छवि को भरोसेमंद बनाया है। उनकी रीति-नीति में समावेश की प्रवृत्ति झलकती है। उनके नेतृत्व में डिजिटलीकरण, संसाधनों एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार, आर्थिक मोर्चे पर मजबूती, प्रतिरक्षा तंत्र का स्वदेशीकरण, अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश के बढ़ते कदम आश्वस्ति का संकेत देते हैं, लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं।

चूंकि राजनीति में भरोसा बड़ा अहम होता है। ऐसे में पार्टी हाईकमान राज-काज में भागीदारी के लिए योग्यता या अनुभव की जगह उम्मीदवार के रूप में अपने विश्वासपात्रों को तलाश रहे हैं, जो अविचल भाव से पार्टी नेतृत्व के प्रति ‘वफादार’ बने रहें। दूसरी ओर जनता को विश्वास में लेने के लिए ‘न्याय’ और ‘गारंटी’ जैसे जुमले तैरने लगे हैं। राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में युवा, स्त्री, मजदूर, किसान, गरीब आदि समुदायों के लिए तरह-तरह की मुफ्त की खैरात बांटने का प्रलोभन देने वाली घोषणा दर घोषणा की भरमार दिख रही है।

इस तरह वादों को जनता की भलाई का नुस्खा बनाकर पेश किया जा रहा है। मसलन नौकरी के अवसर देने, कर्ज की व्यवस्था एवं कर्जमाफी करने, महिला एवं किसान जैसे विभिन्न वर्गों के लिए अनुग्रह राशि देने और जातिगत जनगणना कराने के द्वारा सबको संतुष्ट करने की कोशिश की जा रही है। कुछ दल परिवार-प्रथम की युक्ति भी आजमा रहे हैं। वे जातिवाद और तुष्टीकरण की नीति पर काम करते भी दिख रहे हैं।

भ्रष्टाचार में संलिप्तता के मामले नेताओं की साख के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। विपक्ष का एक मोर्चा आइएनडीआइए संकल्पहीन प्रतीत हो रहा है। सबसे पुराना दल कांग्रेस जिस तरह अस्तित्व के लिए संघर्षरत है, वह चिंता की बात है। उसके लिए गहरे आत्ममंथन की जरूरत है, क्योंकि मोदी के चेहरे पर जनता का भरोसा भाजपा को आश्वस्ति देता है।

आज जाति, क्षेत्र और मजहब जैसे समाज विभाजक आधारों का आसरा लेकर चुनाव की तैयारी की जा रही है। इस तरह के तुष्टीकरण की राजनीति खतरनाक है। फिर भी इसे अंजाम देने की मुहिम जारी है। कई नेता गैर-जिम्मेदार होकर प्रलोभनों की इस तरह से बौछार कर रहे हैं, मानों वे देवताओं के खजांची कुबेर हैं और उनके खजाने पर उन्हीं का कब्जा है।

इस तरह मतदाताओं को बहकावे में लाने की हर कोशिश चल रही है। सुरा, सुविधा और रुपया-पैसा बांटकर जनता से वोट की सौदेबाजी राजनीति को घृणित आधार दे रही है। नए माहौल में अब संसदीय प्रत्याशी को भी करोड़पति होना जरूरी हो रहा है। वह बाहुबली या संदिग्ध अपराधी हो तो भी चलता है।

भारत की जनता में सहनशीलता है और वह उदारतापूर्वक सबको अवसर देती है। चुनावी सफलता पाने के बाद नेता अक्सर सत्ता सुख भोगने में लग जाते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आम जनता के सुख-दुख पर उनका ध्यान कम ही जा पाता है। कटु सत्य यह भी है कि सत्तासीन सरकार के नुमाइंदे और जनता के बीच का बड़ा अंतराल आता गया है। यह एक तथ्य है कि आम जन और नेताओं के बीच का संवाद क्रमश: घटता गया है।

संवाद का अभाव राजनीतिक प्रतिनिधियों और उनके दलों के प्रभाव क्षेत्र को प्रभावित करता है और उसी के अनुसार नेताओं की साख भी घटती-बढ़ती है। महंगाई, बेरोजगारी और सरकारी कामकाज की धीमी गति और उबाने वाली नौकरशाही पूरी व्यवस्था की प्रामाणिकता पर प्रश्न खड़ा कर देती है। आमजन अक्सर इनसे उद्धार पाने के लिए व्याकुल रहता है। नारों और वादों से उकता चुकी जनता को अब जमीनी हकीकत में बदलाव की चाहत है। इस आम चुनाव की भी यही कसौटी रहेगी।

इसके लिए देश की जनता के मन में भी एजेंडा है। एक जनघोषणा पत्र चाहिए, जिसमें किसी एक की संतुष्टि नहीं, बल्कि लोककल्याण सर्वोपरि हो। लुंज-पुंज हो रही संस्थाओं का पुनर्जीवन, भ्रष्टाचार का उन्मूलन और सदाचार का पोषण, आत्मनिर्भर भारत का निर्माण, वंचितों की मौलिक सामर्थ्य बढ़ाना आवश्यक है, न कि उन्हें परोपजीवी बनाए रखना। इसके साथ ही पारदर्शिता के साथ सुशासन की व्यवस्था हो, न्याय प्रणाली को सुधारा जाए और शिक्षा का महत्व समझ कर उसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जाए।

युवा भारत के कर्णधार सरीखे लोगों जैसे महिलाएं, किसान, मजदूर और युवा वर्ग को सार्थक जीवन का अवसर उपलब्ध कराया जाए। भविष्य का भारत इन्हीं पर टिका है। फौरी प्रलोभन देकर वोट बटोरने की कुप्रथा अंतत: नुकसान ही देती है और इससे बचने की जरूरत है। देश एक ऐसे सशक्त भारत का स्वप्न देख रहा है, जिसमें ऐसी पारदर्शी व्यवस्था हो, जो लोक कल्याण से प्रतिबद्ध हो और सबकी सहभागिता हो।

(लेखक शिक्षाविद् हैं)