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Volcanic Rocks: आइए जानें कैसे ज्वालामुखी की चट्टानें भी बढ़ाती हैं ग्लोबल वार्मिंग

Volcanic Rocks शोधकर्ताओं ने एक मॉडल बनाकर लगभग 5.5 करोड़ साल के अंतराल में कार्बन उत्सर्जन के कारण तापमान में आए बदलावों का आंकलन किया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 09:56 AM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 09:56 AM (IST)
Volcanic Rocks: आइए जानें कैसे ज्वालामुखी की चट्टानें भी बढ़ाती हैं ग्लोबल वार्मिंग
Volcanic Rocks: आइए जानें कैसे ज्वालामुखी की चट्टानें भी बढ़ाती हैं ग्लोबल वार्मिंग

लंदन, प्रेट्र। Volcanic Rocks: ज्वालामुखी की चट्टानों के सक्रिय होने के बाद इनसे उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों के कारण ग्लोबल वार्मिंग अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि हमारे वायुमंडल पर इसका प्रभाव पुराने अनुमानों से कहीं ज्यादा पड़ रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष सामने आने के बाद वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन का अनुमान लगाने के अपने पुराने तरीकों में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है।

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नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि पृथ्वी के भूगर्भ में बदलावों के कारण पिछले 6.5 करोड़ साल में सबसे ज्यादा अस्थायी ग्लोबल वार्मिंग हुई है। अब वैज्ञानिक यह पता लगा रहे हैं कि मैग्मा के पृथ्वी की सतह पर आने और ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के बीच क्या संबंध हैं।

ब्रिटेन की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ी भूमिका लार्ज इगनिस प्रोविंसेज (एलआइपी)भी निभाते हैं। एलआइपी उन क्षेत्रों को कहते हैं, जहां आग्नेय चट्टानें सर्वाधिक पाई जाती हैं। भूगर्भिक बदलावों के चलते समय-समय पर इसके क्रस्ट से मैग्मा सतह की ओर निकलते रहता है। जागृत ज्वालामुखी को एलआइपी का सबसे अच्छा उदाहरण माना जा सकता है।

ऐसे किया अध्ययन: इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने एक मॉडल बनाकर लगभग 5.5 करोड़ साल के अंतराल में कार्बन उत्सर्जन के कारण तापमान में आए बदलावों का आंकलन किया। इस दौरान शोधकर्ताओं ने उत्तरी अटलांटिक के आग्नेय चट्टानों वाले हिस्सों में ग्रीनहाउस गैसों के प्रवाह की भी गणना की। पृथ्वी पर ब्रिटेन, आयरलैंड, नॉर्वे और ग्रीनलैंड में सबसे ज्यादा आग्नेय चट्टानें पाई जाती हैं।

आग्नेय चट्टानें भी करती हैं कार्बन उत्सर्जन: यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के लेक्चरर और इस अध्ययन के सह-लेखक स्टीफन जोन्स ने कहा, ‘हमने आग्नेय चट्टानों से प्रवाहित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों का पता लगाने के साथ मैग्मा बनने की प्रक्रिया का अध्ययन कर यह पता लगाया कि कार्बन उत्सर्जन के लिए ये चट्टानें कितनी जिम्मेदार होती हैं।’ जोन्स ने कहा, ‘अध्ययन के दौरान हमाने पाया कि पिछले 6.5 करोड़ साल में इन चट्टानों में ज्वालामुखी सक्रिय होने से ग्रीनहाउस गैसों का सर्वाधिक उत्सजर्न हुआ है।’

जलवायु परितर्वन के लिए हैं जिम्मेदार :

उन्होंने कहा, ‘इसलिए कहा जाता सकता है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जितने अन्य कारक जिम्मेदार हैं, उतनी ही ये आग्नेय चट्टानें भी जिम्मेदार हैं। इन चट्टानों से जब मैग्मा बाहर निकलता है तो आसपास के वातावरण में ऑक्सीजन की भी कमी हो जाती है।

दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी

ज्वालामुखी किसी दानव से कम नहीं है। जब तक ये सुप्तावस्था में पड़े हैं तब तक सब ठीक है लेकिन जैसे ही ये जागृत होते हैं तो एक बड़े क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लेते हैं। दुनियाभर में ऐसे कई ज्वालामुखी हैं। अकेले लैटिन अमरीका में दर्जनों सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इनमें से कई बेहद खतरनाक भी हैं। आइए एक नजर डालते हैं विनाशकारी ज्वालामुखियों पर...

कोलिमा, मैक्सिको

यह सबसे खतरनाक ज्वालामुखियों में से एक है। यह समय-समय पर राख और धुआं छोड़ता रहता है। इसकी ऊंचाई 3280 मीटर है। वर्ष 2015 और 2016 में इसके राख उगलने के कारण आसपास के इलाके खाली करा दिए गए थे।

पोपोकटेपेटल, मैक्सिको

यह ज्वालामुखी 5,452 मीटर ऊंचा है और सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है। यह मैक्सिको सिटी से दक्षिण-पूर्व में लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर है। वर्ष 1994 के बाद यह ज्वालामुखी सक्रिय है। इससे राख और लावा निकलता रहता है।

ग्लैरस, कोलंबिया

कोलंबिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है। 1993 में हुए एक विस्फोट में वैज्ञानिकों के एक समूह और पर्यटकों की यहां मौत हो गई थी, क्योंकि वे सभी लोग ज्वावालामुखी के क्रेटर के भीतर गए थे।

तुरीआलबा, कोस्टा रिका

यह कैलिफोर्निया के सैन जोंस शहर के करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित है। 2016 में इसमें विस्फोट हुआ था।


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