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पिघलते हिमालय के ग्लेशियरों से पूरी हो रही 2 करोड़ लोगों की जरूरतें

सूखे के दौरान ग्लेशियर एशिया की कुछ बड़ी नदी घाटियों में पानी की आपूर्ति करने के सबसे बड़े स्रोत बन जाते हैं। इस पानी से लगभग 22.10 करोड़ लोगों की जरूरतें हो रही पूरी

By Vinay TiwariEdited By: Published: Tue, 04 Jun 2019 01:27 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jun 2019 01:27 PM (IST)
पिघलते हिमालय के ग्लेशियरों से पूरी हो रही 2 करोड़ लोगों की जरूरतें
पिघलते हिमालय के ग्लेशियरों से पूरी हो रही 2 करोड़ लोगों की जरूरतें

लंदन, एजेंसी। सूखे के दौरान ग्लेशियर एशिया की कुछ बड़ी नदी घाटियों में पानी की आपूर्ति करने के सबसे बड़े स्रोत बन जाते हैं। यहां से निकलने वाले पानी से लगभग 22.10 करोड़ लोगों की मूलभूत जरूरतें पूरी हो जाती है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। यह अध्ययन उन क्षेत्रों के लिए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से मायने रखता है जिनके सूखे की चपेट में आने की आशंका रहती है। जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र के ज्यादातर ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

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ब्रिटेन के ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण (बीएएस) के ग्लेशियर विज्ञानी हैमिश प्रिटचार्ड ने कहा कि पिघली बर्फ का पानी निचले इलाकों में रह रहे लोगों के लिए आवश्यक हो जाता है जब बारिश नहीं होती या पानी की अत्याधिक कमी हो जाती है। इस तरह का एक अध्ययन ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। विज्ञानियों के अनुसार गर्मी के मौसम में ग्लेशियर 36 क्यूबिक किलोमीटर पानी छोड़ते हैं जो एक करोड़ 40 लाख ओलंपिक स्वीमिंग पूल के पानी के बराबर है। इतना पानी दो करोड़ 21 लाख लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी है।

एशिया क्षेत्र में उच्च हिमालयी क्षेत्रों को(हिमालय) तीसरे ध्रुव के रूप में जाना जाता है यहां कुछ 95 हजार ग्लेशियर मौजूद है और इनसे निकलने वाले पानी पर लगभग 80 करोड़ लोग आंशिक रूप से निर्भर है। हर साल बर्फबारी के बाद ग्लेशियरों का 1.6 गुना पानी पिघल जाता है। शोध करने वालों ने सामान्य दिनों और सूखे के वर्षों में बारिश की मात्रा के साथ ग्लेशियर योगदान के अनुमानों का विश्लेषण किया। इसके लिए उन्होंने जलवायु के डाटा सेट और हाइड्रोलिक मॉडलिंग का उपयोग कर ग्लेशियर से निकलने वाले पानी की मात्रा और क्षेत्र के प्रमुख नदी बेसिनों का अध्ययन किया।

ग्लेशियर विज्ञानी हामिश ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण हालात ये हैं कि एशिया के उच्च हिमालय भी खतरे में है। अध्ययन में ये भी पता चला है कि पानी के प्राकृतिक भंडार के रूप में ये समाज के लिए काफी मूल्यवान है। ये चीजें गर्मियों में नदियों को लंबे समय तक सूखने से रोकता है। उनका कहना है कि यदि इसी तरह से चलता रहा तो सूखे के कारण पानी और भोजन की आने वाले समय में कमी हो जाएगी। अगले कुछ दशकों में होने वाली इस तरह की समस्या से इंकार नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि एशिया के ग्लेशियर पानी की कमी और सूखाग्रस्त आबादी को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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