100 से अधिक प्रजातियों के लिए ध्वनि प्रदूषण बना काल, मानसिक और शारीरिक रूप से बना रहा बीमार
ध्वनि प्रदूषण की वजह से कुछ जानवर शिकार नहीं कर पाते तो कुछ अपने शिकार से बच नहीं पाते हैं।
लंदन, प्रेट्र। मानव निर्मित ध्वनि प्रदूषण से विभिन्न जानवरों की 100 से अधिक प्रजातियों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। इनमें उभयचर, पक्षी, जलचर, स्तनधारी और सरीसृप सभी शामिल हैं। हाल ही में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि मानव निर्मित शोध को 'वैश्विक प्रदूषक' माना जाना चाहिए। यह अध्ययन बायोलॉजी लेटर्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि शोर प्रदूषण का एक खतरनाक रूप है। अध्ययन में पाया गया कि ध्वनि प्रदूषण केवल मनुष्यों पर ही प्रभाव नहीं डालता, यह सभी तरह के जानवरों को मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार बना रहा है।
100 से अधिक प्रजातियों पर किया अध्ययन
ब्रिटेन की क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफास्ट के शोधकर्ताओं ने शोर के प्रभावों का 100 से अधिक प्रजातियों पर अध्ययन किया और इन जानवरों को सात समहूों- उभयचर, पक्षी, जलचर, स्तनधारी, सरीसृप, मोलस्कघोंघे व सीप आदि), सन्धिपाद (सितारा मछली, सूत्रकृमि आदि) में विभाजित किया। क्वीन्स यूनिवर्सिटी के हंसजार्ग कुंक ने कहा कि अध्ययन से स्पष्ट प्रमाण मिला कि ध्वनि प्रदूषण प्रजातियों के सभी सातों समूहों को प्रभावित करता है। ध्वनि प्रदूषण को हर हाल में वैश्विक प्रदूषक माना जाना चाहिए और जानवरों को इस प्रदूषण से बचाने के लिए रणनीति विकसित करनी चाहिए।
इस तरह प्रभावित होती हैं प्रजातियां
शोधकर्ताओं ने बताया कि उभयचर, पक्षी, कीट और स्तनधारियों की कई प्रजातियां एक दूसरे से संपर्क के लिए ध्वनिक संकेतों का उत्पादन करती हैं। इन संकेतों से वे आपस में महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करते हैं। जैसे- संभावित खतरे के प्रति आगाह करना, परिवार बढ़ाने के लिए नर या मादा का चुनाव करना इत्यादि।
ध्वनि प्रदूषण से प्रजातियों में आ सकती है गिरावट
अगर ध्वनि प्रदूषण उनके संकेतों पर प्रभाव डालेगा तो इससे उनके अस्तित्व पर खतरा पड़ेगा। ध्वनि प्रदूषण की वजह से कुछ जानवर शिकार नहीं कर पाते तो कुछ अपने शिकार से बच नहीं पाते। चमगादड़ और उल्लू जैसे पक्षी अपना अधिकतर काम आवाज के भरोषे ही करते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण से इन प्रजातियों में गिरावट आ सकती है। वहीं, जलीय जीवन में मछली का लार्वा अपने घर को शैल-भित्तियों के द्वारा उत्सर्जित ध्वनि के आधार पर पाते हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया कि जहाजों में हुई बेतहाशा वृद्धि से समुद्र में ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि हुई है। इससे मछली के लार्वा को अपना घर ढूंढना मुश्किल हो जाता है। इसका मतलब है कि मछलियां कम उपयुक्त भित्तियों का चयन करेंगी, जो उनके जीवनकाल को कम कर सकती है।