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उड़ानों की ऊंचाई बदलकर घटा सकते हैं 59 फीसद प्रदूषण, वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

वैज्ञानिकों ने अपने अध्‍ययन में पाया है कि उड़ानों की ऊंचाई बदलकर 59 फीसद प्रदूषण कम किया जा सकता है। ऐसा कैसे संभव हो सकता है जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 14 Feb 2020 07:24 PM (IST)Updated: Fri, 14 Feb 2020 07:31 PM (IST)
उड़ानों की ऊंचाई बदलकर घटा सकते हैं 59 फीसद प्रदूषण, वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा
उड़ानों की ऊंचाई बदलकर घटा सकते हैं 59 फीसद प्रदूषण, वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

लंदन, पीटीआइ। वायु प्रदूषण वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के लिए अहम कारण बना हुआ है। यह प्रदूषण जीवाश्म ईंधनों को जलाने और अन्य कारणों से भी होता है। इनमें से एक कारण विमानों से होने वाला उत्सर्जन भी है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि अगर दो फीसद से भी कम उड़ानों की ऊंचाई में थोड़ा सा बदलाव किया जाए तो विमानों से होने वाले प्रदूषण में 59 फीसद की कमी आ सकती है। अक्सर आसमान में विमानों के पीछे सफेद धुंआ की लकीरें देखी जा सकती हैं। इसमें अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड होता है और यह पर्यावरण के लिए नुकसान दायक होती है।

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90 फीसद तक कम किया जा सकता है प्रदूषण

ब्रिटेन के इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों ने बताया कि विमानों की उड़ान के पथ में 2000 फीट का परिवर्तन करके वातावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सकता है। एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ऊंचाई में परिवर्तन करने के साथ ही एयरक्राफ्ट के इंजन को हमेशा क्लीन रखा जाए तो होने वाले प्रदूषण को 90 फीसद तक कम किया जा सकता है।

कम किया जा सकता है प्रभाव

इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन मार्क स्टैटलर ने कहा कि यह नई विधि विमानन उद्योग से होने वाले जलवायु प्रभाव को बहुत जल्द कम कर सकती है। उन्होंने बताया कि उत्सर्जन के रूप में जब विमान से निकली गर्म गैस वायुमंडल की ठंडी और कम दबाव वाली गैस से मिलती है तो उसका संघनन होता है, जिससे आकाश में विमान के पीछे सफेद लकीरें दिखाई देती हैं। इसमें ब्लैक कार्बन के कण भी शामिल होते हैं।

ग्लोबल वार्मिग में होता है इजाफा

शोधकर्ताओं ने बताया कि कुछ सफेद लकीरें तो कुछ समय बाद ही खत्म हो जाती हैं। कुछ बादलों के साथ मिलकर 18 घंटे तक रहती हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि विमानों से निकले वाले उत्सर्जन 'रेडियोएक्टिव फोर्सिग' का भी प्रभाव होता है। इसका मतलब यह है कि उत्सर्जन की वजह से बादलों में धुंध छा जाती है, जिसकी वजह से सूर्य से पृथ्वी पर आने वाले विकिरण की तुलना में पृथ्वी की सतह से निकलने वाली गर्मी स्पेस में नहीं पहुंच पाती है। इसकी वजह से ग्लोबल वार्मिग में इजाफा होता है।

इस तरह किया अध्ययन

शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग किया। इसके माध्यम से उन्होंने जाना की विमान ऊंचाई में कितना परिवर्तन करने से उसके उत्सर्जन का प्रभाव कितना कम होता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि विमान से निकलने वाली सफेद लकीरें वायुमंडल की पतली परतों में ही बनती हैं। क्योंकि इनमें बहुत अधिक नमी होती है। ऐसे में इन परतों में विमान की उड़ान नहीं होनी चाहिए। शोधकर्ताओं ने बताया कि विमान की ऊंचाई में मात्र 2000 फीट को घटा या बढ़ाकर उसे पतली परतों में जाने से रोका जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन जापान के एयर स्पेस से जुटाए गए डाटा के आधार पर किया है। 


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