शोधकर्ताओं ने डिजिटल मॉडल बनाकर समझाया कैसे आदतें सीखीं व बनाईं जाती हैं
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक के शोधकर्ताओं ने बताया कि आदतें कैसे सीखीं और बनाईं जाती हैं।
लंदन, प्रेट्र। विज्ञान में कहा जाता है कि कार्य तभी होता है जब विस्थापन होता है, प्रतिक्रिया तभी होती है जब कोई क्रिया होती है। इसी तरह अच्छी आदतें तभी बनती हैं जब आप कोई कार्य बार-बार करते हैं और हम कोई कार्य बार-बार तभी करते हैं जब उसका कोई फल मिलता है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक के शोधकर्ताओं ने बताया कि हम जो कार्य करते हैं उसमें से अधिकांश आदतों से प्रेरित होते हैं, फिर भी आदतें कैसे सीखीं और बनाईं जाती हैं यह अभी कुछ हद तक रहस्यमय है।
अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर अमिताई शेनव ने कहा कि मनोवैज्ञानिक इस बात पर अध्ययन कर रहे हैं कि एक सदी से हमारी आदतें पीढ़ी दर पीढ़ी कैसे चली आ रही हैं और हमारे सोचने और करने के बीच आदतें किस तरह से प्रभावित करती हैं।
वारविक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इन सब सवालों से पर्दा उठाते हुए एक गणितीय मॉडल बनाया है। उन्होंने बताया कि किस तरह से किसी काम की पुनरावृत्ति हमारी आदत बन जाती है। बशर्ते उस काम का कुछ सकारात्मक फल मिले। जैसे कि जब हम ब्रश करते हैं तो हमारे दांत साफ होते हैं। स्नान करने पर शरीर स्वच्छ और बीमारियां दूर होती हैं। तो इस प्रकार के कार्यों का फल मिलता है और यह हमारी आदत बन जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि आदतें एक प्रकार से हमारे द्वारा किए गए कार्यों का उत्पाद होती हैं।
डिजिटल मॉडल बनाकर समझाया
इस विषय को समझाने के लिए शोधकर्ताओं ने एक डिजिटल मॉडल बनाया। इसमें एक बाक्स में दो लीवर लगे हुए हैं। जिसमें से एक सही आदत को दर्शाता है और दूसरा गलत को। उसी बॉक्स में दो चूहे हैं। सही वाले लीवर को उठाने से कुछ खाने को मिलता है जबकि, गलत वाले से कुछ नहीं। चूहों को कुछ देर तक ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद देखा गया कि चूहे कुछ देर बाद केवल सही वाले लीवर को ही उठाते हैं। लीवर की अदला-बदली करने पर भी चूहे आसानी से सही लीवर तक पहुंच जाते हैं। इसके विपरीत चूहों को जब एक ही लीवर पर रूकने के लिए बहुत देर तक ट्रेंड किया गया तो पाया गया कि लीवर के बदलने पर चूहे गलत लीवर पर बार-बार पहुंच जाते थे।