कोरोना के इलाज में कारगर हो सकता है नाइट्रिक ऑक्साइड, 2003 में फैली महामारी में रहा असरदार
साल 2003 में फैले सार्स महामारी के वक्त यह काफी असरदार रहा था। सार्स महामारी के वक्त जिन तरीकों से उसे नियंत्रित किया गया था कुछ ऐसा ही कोरोना संक्रमण के लिए जिम्मेदार सार्स कोव-2 वायरस के साथ भी किया जा सकता है।
लंदन, आइएएनएस। कोरोना वायरस के प्रकोप से बेहाल दुनिया में वैज्ञानिक लगातार इसका सटीक इलाज खोज रहे हैं, ताकि लोगों को इस संक्रमण से मुक्ति मिले और जीवन फिर से पहले जैसी हो जाए। अब एक खोज में शोधकर्ताओं ने पाया है कि वर्ष 2003 के सार्स महामारी के वक्त जिन तरीकों से उसे नियंत्रित किया गया था, कुछ ऐसा ही कोरोना संक्रमण के लिए जिम्मेदार सार्स कोव-2 वायरस के साथ भी किया जा सकता है। जर्नल रेडॉक्स बायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ) एंटीवायरल गुणों वाला एक यौगिक (कंपाउंड) है, जो शरीर में ही बनता है।
अध्ययन के लेखक और स्वीडन में उप्साला विश्वविद्यालय के विज्ञानी एके लुंडकविस्ट ने कहा, 'हमारी जानकारी में नाइट्रिक ऑक्साइड एकमात्र पदार्थ है, जो अब तक सार्स-कोव-2 पर सीधा प्रभाव डालता है।' यह बात अलग है कि अब तक कोविड -19 के लिए कोई प्रभावी इलाज नहीं मिल पाया है, इसलिए ट्रायल किए गए उपचारों का मुख्य जोर लक्षणों से राहत देने पर है।
अस्पतालों पर बढ़ रहे बोझ और मृत्यु दर को कर सकता है कम
शोधकर्ताओं का दावा है कि अस्पतालों पर बढ़ रहे मरीजों को बोझ और मृत्यु दर को नाइट्रिक ऑक्साइड के इस्तेमाल से कम किया जा सकता है। हालांकि यह साबित करना संभव नहीं है कि कौन से इलाज ने संक्रमण के पीछे वास्तविक वायरस को प्रभावित किया है। नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर के अलग-अलग हिस्सों को कंट्रोल करने में एक हार्मोन की तरह काम करता है। उदाहरण के लिए यह यह रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसल्स) में तनाव और अंगों के बीच रक्त के संचार को नियंत्रित करता है।फेफड़ों के अचानक काम करना बंद कर देने की स्थिति में इसका इस्तेमाल खून में ऑक्सीजन बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है।
2003 में फैली महामारी के वक्त रहा मददगार
साल 2003 के सार्स महामारी के दौरान इसे सफलता के साथ आजमाया गया था। इसके इस्तेमाल से रोगियों के फेफड़ों में सूजन कम हो गई थी। इससे रोगियों को इस बीमारी से निजात मिली थी। विज्ञानियों का कहना है कि नाइट्रिक ऑक्साइड संक्रमण से बचाव करता है। एंटीबैक्टिरियल और एंटीवायरल, दोनों होने के कारण शोधकर्ताओं की इसमें रुचि होती है। हालांकि कोरोना वायरस संक्रमितों पर इसके कारगर होने का कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिला है। इन सबके बावजूद शोधकर्ताओं का कहना है कि जब तक हमें कोई असरदार वैक्सीन नहीं मिलती हमें उम्मीद है कि इसका इस्तेमाल लाभकारी हो सकता है।