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वैज्ञानिकों ने बनाई अनोखी मशीन, अब एक हफ्ते तक शरीर के बाहर रखा जा सकेगा जीवित लिवर

वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन बनाई है जिसकी मदद से लिवर को अब शरीर के बाहर एक हफ्ते तक जीवित रखा जा सकेगा। मशीन की खूबियां जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 12:57 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 03:55 PM (IST)
वैज्ञानिकों ने बनाई अनोखी मशीन, अब एक हफ्ते तक शरीर के बाहर रखा जा सकेगा जीवित लिवर
वैज्ञानिकों ने बनाई अनोखी मशीन, अब एक हफ्ते तक शरीर के बाहर रखा जा सकेगा जीवित लिवर

लंदन, पीटीआइ। अमूमन किसी भी अंग को डोनर के शरीर से निकालने के बाद 6 से 12 घंटे के भीतर ट्रांसप्लांट कर दिया जाना चाहिए। लीवर निकालने के 6 घंटे के भीतर और किडनी 12 घंटे के भीतर ट्रांसप्लांट हो जानी चाहिए। मेडिकल साइंस में कहा गया है कि कोई भी अंग जितना जल्दी प्रत्यारोपित होगा, उसके काम करने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन विकसित की है जो इंसानों के लिवर को एक हफ्ते तक शरीर से बाहर जीवित रख सकती है।

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स्विट्जरलैंड में ईटीएच ज्यूरिख ETH Zurich in Switzerland के वैज्ञानिकों की मानें तो इस मशीन से इंसानों के जख्मी लिवर के इलाज में भी आसानी होगी। यह मशीन लिवर को एक हफ्ते तक शरीर के बाहर जिंदा रख सकती है। वैज्ञानिकों की इस खोज से प्रत्‍यारोपण के लिए उपलब्ध इंसानी अंगों की संख्या को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। यही नहीं नई तकनीक की मदद से लिवर कई दिनों तक शरीर के बाहर ठीक से काम कर सकते हैं।  

इस नई मशीन के बारे में जर्नल नेचर बायोकेमेस्‍ट्री  journal Nature Biotechnology बताया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस मशीन की मदद से लिवर की बीमारी या कैंसर से पीड़ित मरीजों की जान बचाने में अभूतपूर्व मदद मिलेगी है। जर्नल में इस मशीन को जटिल परफ्यूजन सिस्‍टम complex perfusion system के तौर पर बताया गया है जो यकृत के कार्यों की तरह काम करती है। 

ईटीएच ज्यूरिख ETH Zurich के शोधकर्ता एवं अध्‍ययन के सह-लेखक पियरे एलें क्लेवें Pierre Alain Clavien ने कहा कि जीव विज्ञानियों और इंजीरियरों के एक समूह ने चार साल तक इस मशीन को विकसित करने में मेहनत की जिसके बाद अनोखे परफ्यूजन सिस्‍टम complex perfusion system को हकीकत में बदला जा सका है। इस सफलता ने प्रतिरोपण में कई नए प्रयोगों की राह आसान कर दी है। यहां सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि जब साल 2015 में इस परियोजना को शुरू किया गया तो वैज्ञानिकों की यही मान्‍यता थी कि लिवर को मशीन पर केवल 12 घंटे तक जीवित रखा जा सकता है।


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