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Monkeypox virus का बढ़ रहा खतरा, वैक्‍सीन की डिमांड नहीं हो पा रही पूरी, जानें वजह

मंकीपॉक्‍स वायरस के खतरे के बीच इसके टीके की पर्याप्‍त आपूर्ति में मुश्‍किलें आ रही हैं। यह कोरोनावायरस की तरह भले ही उतना खतरनाक नहीं है लेकिन इस पर काबू पाना भी जरूरी है। वैक्‍सीनेशन इसे रोकने में बहुत असरदार है लेेकिन टीकों का मिलना अभी मुश्‍किल हो गया है।

By Arijita SenEdited By: Published: Fri, 12 Aug 2022 01:29 PM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2022 01:29 PM (IST)
Monkeypox virus का बढ़ रहा खतरा, वैक्‍सीन की डिमांड नहीं हो पा रही पूरी, जानें वजह
मंकीपॉक्‍स केे टीके की आपूर्ति में आई कमी

रीडिंग (यूके), एजेंसी। दुनियाभर में 80 से अधिक देशों में मंकीपॉक्‍स वायरस के मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से कुछ देशों में मंकीपॉक्‍स के नये मामले सामने आ रहे हैं। जबकि मंकीपॉक्‍स कोरोना वायरस की तरह उतना खतरनाक भले ही नहीं है, लेकिन इस पर काबू पाना जरूरी है।

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वैक्‍सीनेशन है सबसे असरदार

वैक्‍सीनेशन इसे रोकने के उपायों में से एक है। लेकिन जैसे-जैसे इसके मामले बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे टीके की मांग भी बढ़ती जा रही है इसलिए इसकी पर्याप्‍त आपूर्ति में मुश्‍किलें आ रही हैं। इसके अलावा, दुनिया भर में वैक्‍सीन की मैन्‍युफैक्‍चरिंग और इसके वितरण की जो प्रक्रिया है वह भी काफी हद तक इस कमी के लिए जिम्‍मेदार है।

इस वक्‍त मंकीपॉक्‍स को रोकने के लिए चेचक के टीके का इस्‍तेमाल किया जा रहा है, वजह मंकीपॉक्‍स का काफी हद तक चेचक से मिलना है।

प्रोडक्‍शन में आई रूकावट

चेचक का टीका 1980 के बाद से इस्‍तेमाल में नहीं है। ऐसे में न ही फार्मास्‍यूटिकल कंपनियां इसे अधिक मात्रा में बनाती हैं और न ही सरकार इन्‍हें खरीदना उचित समझती है क्‍योंकि इसका अब कोई इस्‍तेमाल ही नहीं है। यानि कि अभी जिन टीकों का इस्‍तेमाल हो रहा है उसे कंपनी ने आपातकाल की स्थिति में पहले से ही बनाकर रखा था ताकि अगर चेचक या स्‍मॉलपॉक्‍स के मामले अचानक से सामने आ जाए तो उनका उपयोग किया जा सके।

लाखों टीके के दिए जा चुके ऑर्डर

अभी वैक्‍सीन का स्‍टॉक सीमित है लेकिन मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। हाल ही में 25 लाख टीकों का ऑर्डर दिया गया है। फिलहाल यह बताया जा रहा है कि दुनिया में स्‍मॉलपॉक्‍स वैक्‍सीन बनाने वाली डेनमार्क की इकलौती कंपनी ने यह कह दिया है कि उनके यहां इसे बनाना बंद कर दिया गया है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि इसका प्रभाव दुनिया भर में टीके की आपूर्ति पर देखने को मिलेगा। दूसरी बात यह भी है कि किसी और जगह इसे बनाने का काम उतना भी आसान नहीं है।

कंपनी के सामने आई येे मुश्‍किलें 

वैक्‍सीन बनाने को लेकर एक मुश्‍किल यह भी है कि इसके निर्माण के वक्‍त यह पता लगाना संभव नहीं हो पाता है कि भविष्‍य में भी इनकी जरूरत पड़ेगी या नहीं। कुछ टीके ऐसे हैं जिनकी जरूरत पड़ती रहती है लेकिन किसी बड़ी महामारी के टीके की जरूरत फिर कभी आने वक्‍त में पड़ेगी या नहीं यह बता पाना मुश्‍किल हो जाता है। इसलिए टीके की मांग भले ही अभी अधिक हो लेकिन अधिक से अधिक मात्रा में इसे बनाना उतना भी आसान नहीं है। यही वजह है कि दुनिया भर में वैज्ञानिक किफायती ढंग से बड़े पैमाने पर वैक्‍सीन के उत्‍पादन की दिशा में नई तरीके तलाश रहे हैं।


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