लिवर को सात दिनों तक रखा जीवित, प्रत्यारोपण के क्षेत्र में आएगा बड़ा बदलाव
शोधकर्ताओं के मुताबिक नई तकनीक से लिवर में आई खराबियों को ठीक कर उसे दोबारा क्रियान्वित किया जा सकता है।
लंदन, प्रेट्र। शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मशीन बनाई है जो हमारे लिवर में आई खराबियों की मरम्मत तो कर ही सकती है। साथ ही उसे एक सप्ताह तक शरीर के बाहर भी सुरक्षित और जिंदा रख सकती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में यह मशीन अभूतपूर्व बदलाव ला सकती है, क्योंकि वर्तमान में अंग प्रत्यारोपण के लिए हमारे पास जो सुविधाएं मौजूद हैं, उनमें कुछ घंटों के भीतर एक शरीर से किसी अंग को निकालकर दूसरे शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। ज्यादा देर होने पर इस बात की आशंकाएं बढ़ जाती हैं कि उस अंग की कोशिकाएं मृत हो जाएं। ऐसे में नई मशीन अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में बेहद कारगर सिद्ध हो सकती है।
स्विटजरलैंड की ईटीएच ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, नई तकनीक से लिवर में आई खराबियों को ठीक कर उसे दोबारा क्रियान्वित किया जा सकता है। इससे विभिन्न प्रकार के कैंसरों और लिवर के रोगियों की जान बचाने में मदद मिल सकती है। इस डिवाइस के बारे में नेचर बायोटेक्नोलॉजी में विस्तार से बताया गया है। यह एक कॉप्लैक्स परफ्यूजन सिस्टम है, जिसकी मदद से अंगों को शरीर के अनुकूल काम करने में सहायता मिलती है। परफ्यूजन सिस्टम के जरिये ऊतकों में रक्त प्रभाव को बनाए रखा जाता है।
नई क्रांति लाएगा नया सिस्टम
ईटीएच ज्यूरिख के शोधकर्ता और इस अध्ययन के लिए सह-लेखक पियरे-एलेन क्लेविन ने बताया कि चार साल की मेहनत के बाद अब परफ्यूजन सिस्टम अपने वर्तमान स्वरूप में है। इसकी सफलता के पीछे सर्जन, जीवविज्ञानियों और इंजीनियरों के एक समूह की कड़ी मेहनत है। यह सिस्टम अंग प्रत्यारोपण और कैंसर चिकित्सा के क्षेत्र में नई क्रांति ला सकता है।’
वसा की भी करता है सफाई
उन्होंने बताया कि 2015 में जब हमने इस सिस्टम पर काम करना शुरू किया था उस समय लिवर को मशीन के जरिये केवल 12 घंटों तक ही जीवित रखा जा सकता था। लेकिन अब परफ्यूजन सिस्टम के जरिये लिवर को कम से कम सात दिनों तक जिंदा रखा जा सकता है। इसकी मदद से लिवर में पहले से मौजूद जख्मों की मरम्मत करने के साथसाथ उसमें जमा वसा की सफाई भी की जा सकती है।
दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वालों को मिलेगा लाभ
क्लेविन ने बताया कि इस तकनीक का लाभ दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सर्वाधिक मिल सकता है। क्योंकि कई बार अंगों के परिवहन (एक से दूसरे स्थान ले जाना) में काफी समय लग जाता है। कोई भी अंग एक निश्चित समय तक ही शरीर से बाहर रहकर जिंदा रह सकता है। उसके बाद उसके ऊतकों पर असर पड़ने लगता है। ऐसे में अंग प्रत्यारोपण में देरी होने पर इस बात की संभावनाएं बढ़ जाती हैं कि अंग खराब हो जाए।
भाषा, सबसे बड़ी चुनौती
ईटीएच ज्यूरिख के शोधकर्ता और इस अध्ययन के सह-लेखक फिलिप रुडोल्फ वॉन रोहर ने कहा, हमारी परियोजना के शुरुआती चरण में सबसे बड़ी चुनौती मशीन की एक आम भाषा को खोजने की थी ताकि चिकित्सकों और इंजीनियरों के बीच निर्बाध संचार हो सके। दरअसल, कई बार मशीनों की भाषा को समझने के लिए चिकित्सकों को अलग से कक्षाएं लेनी पड़ती हैं। इस समस्या से बचने के लिए हमने बीच का रास्ता खोजा और नई मशीन तैयार की।
...और बना दिया प्रत्यारोपण के लायक
इस मशीन की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं पाया कि यूरोप के अंग प्रत्यारोपण केंद्रों में जिन लिवरों को डॉक्टरों ने उनकी गुणवत्ता जांच कर उन्हें प्रत्यारोपित करने से मना कर दिया था, उनमें से छह को परफ्यूजन सिस्टम के जरिये फिर से प्रत्यारोपण के लायक बना दिया गया था।