EU का दोगला बर्ताव: कोरोना वैक्सीन लेने के बाद भी लगा प्रतिबंध, सभी वैक्सीन को बराबर नहीं मानता यूरोपीय संघ
यूरोपीय संघ कोरोना वैक्सीन को लेकर भेदभाव बरत रहा है। यूरोपीय संघ केवल उन्ही लोगों को अपने यहां पर आने की अनुमति दे रहा है जिन्होंने केवल वहां की एजेंसी द्वारा एप्रूव्ड वैक्सीन की खुराक ली हो। इसके लिए उसने डिजीटल सर्टिफिकेट भी शुरू किया है।
लंदन (एपी)। नाइजीरिया में एस्ट्राजेनेका की दो डोज लेने वाले डाक्टर इफेन्यी एनसोफोर और उनकी वाइफ को लगता था कि अब वो यूरोप में अपनी मन चाही जगह पर जाकर इस गर्मी की छुट्टियों का लुत्फ उठा सकेंगे। लेकिन उनकी ये सोच गलत साबित हुई। ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों ने जो वैक्सीन ली है उसको यूरोपीय संघ मान्यता नहीं देता है।
सपना सपना ही रह गया
इन दोनों के साथ ऐसे लाखों लोग हैं जिनका ये सपना सपना ही रह गया है। लाखों की संख्या में लोगों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रयासें से मुहैया करवाई गई कोरोना वैक्सीन की खुराक ली है। इसके बाद भी उनकी यूरोप समेत दूसरे देशों में एंट्री बैन है। इसकी वजह ये है कि ये देश उन देशों में लगाई जा रही भारत और अन्य देशों की बनाई कोरोना वैक्सीन को मान्यता नहीं देते हैं।
अब जाएंगे सिंगापुर या ईस्ट अफ्रीका
इन दोनों का सपना था कि वो फ्रांस में रह रही अपनी दो बेटियों के साथ विश्व प्रसिद्ध एफिल टावर को देखेंगे और आस्ट्रिया समेत सल्जबर्ग की भी सैर करेंगे। एनसोफोर जानती है कि उन्हें भारत की बनाई जा वैक्सीन मिली है उसको विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इमरजेंसी में इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी है और इसको विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स योजना के तहत नाइजीरिया में दिया गया है। वैक्सीन के प्रति सामने आए इस दोगुले रुख के बाद नसोफोर और उनकी पत्नी ने सिंगापुर या पूर्वी अफ्रीका में कहीं गर्मी की छुट्टी मनाने का मन बनाया है।
सीरम इंस्ट्टियूट का हाई स्टेंडर्ड
उनका कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने न सिर्फ वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्ट्टियूट ऑफ इंडिया का दौरा कर इस बात का भरोसा जताया है कि यहां पर वैक्सीन मैन्यूफैक्चरिंग में हाई स्टेंडड्र का ध्यान रखा जाता है। नसोफोर ने यूरोपीय संघ को कोवैक्स के लिए धन मुहैया करने के लिए भी धन्यवाद दिया है। लेकिन वैक्सीन को लेकर किया जा रहे भेदभाव से वो काफी दुखी है। उनका मानना है कि इन वैक्सीन को और अधिक प्रमोट किया जाना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि अफ्रीका पश्चिम की तरह अच्छा नहीं है।
ईयू के बर्ताव से जगेगा अविश्वास
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक के प्रोफेसर इवो व्लाएव का कहना है कि पश्चिमी देशों ने गरीब देशों में दी जा रही वैक्सीन को मान्यता नहीं दी है। ऐसा करने से उन लोगों में वैक्सीन के प्रति अविश्वास और जगता है जो पहले से ही ऐसा सोचते हैं। इसकी वजह से वो सरकार की कही बातों को नजरदांज करते हैं और कोविड नियमों का पालन नहीं करते हैं।
भारत में बनी एस्ट्राजेनेका को भी रेड सिग्नल
एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का यूरोप में ही उत्पादन हो रहा है और यूरोप की ड्रग रेगुलेटरी एजेंसी इसको मान्यता भी दी है। लेकिन इसकी ही भारत में उत्पादित वैक्सीन को अब तक ग्रीन सिग्नल नहीं दिया गया है। यूरोपीय संघ के रेगुलेटर्स का कहना है कि इसके लिए एस्ट्राजेनेका ने इसके क्वालिटी कंट्रोल और इसके प्रोडेक्शन की डिटेल संबंधित जरूरी कागजी कार्रवाई नहीं की है। इसकी वजह से इसको ग्रीन सिग्नल नहीं मिल सका है। लेकिन कुछ कुछ अन्य यूरापीय जानकार इसको यूरोप द्वारा वैक्सीन के साथ किया जा रहा भेदभाव मान रहे हैं। इनका ये भी कहना है कि ये पूरी तरह से अवैज्ञानिक है। इनका ये भी कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फैक्ट्री की जांच करने के बाद ही इसके प्रोडेक्शन की मंजूरी दी है।