विशेषज्ञों का दावा, सेना के प्रभाव से पाकिस्तान आज असफल देश है
पाकिस्तानी सेना का जनता द्वारा चुनी गई सरकार पर गहरा प्रभाव है। पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी समूहों के बीच हमेशा गहरे संबंध रहे हैं।
लंदन, यूके (एएनआइ)। लंदन स्थित एक प्रमुख थिंक टैंक डेमोक्रेसी फोरम (टीडीएफ) ने सोमवार को सेंट जेम्स कोर्ट होटल में 'आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का सैन्य: लोकतंत्र पर इसका प्रभाव' नामक शीर्षक पर सेमिनार का आयोजन किया। सेमिनार की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार हंफ्री हॉक्सली ने की और टीडीएफ के अध्यक्ष लॉर्ड ब्रूस ने सेमिनार को संबोधित किया। लॉर्ड्स ब्रूस ने अपनी शुरुआती टिप्पणियों के दौरान कहा कि सेना की भूमिका दुनियाभर में लोकतांत्रिक संस्थानों के निलंबन में लगातार और कभी-कभी कुटिल प्रतिभागी रही है।
लोकतंत्र सूचकांक के अनुसार, सेमिनार में चर्चा के लिए चुने गए चार देशों पाकिस्तान, म्यांमार, तुर्की और मिस्र में से कोई मौजूद नहीं था। 2017 अंतरराष्ट्रीय सर्वे में इन देशों को 10 में 5 से ज्यादा अंक हासिल किए थे। डॉक्टर हुडभॉय, जोहरा और जे जे अहमद ने पाकिस्तान पर अपने संबोधन केंद्रीत रखा। उन्होंने दो मीडिया लेखों का जिक्र करते हुए भाषण शुरू किया। जिसमें कहा गया कि पाकिस्तानी सेना का जनता द्वारा चुनी गई सरकार पर गहरा प्रभाव है।
डॉ. हुडभॉय के मुताबिक, यह शायद ही आश्चर्य की बात है क्योंकि पाकिस्तान सेना ने हमेशा कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला केवल उन लोगों को सौंपा जा सकता है जो इस तरह के विश्वास के 'योग्य' हैं। पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी समूहों के बीच गहरे संबंधों को रेखांकित करने के लिए उन्होंने पूर्व पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ का उदाहरण दिया जिन्होंने जनवरी, 2007 में अमेरिकी दबाव के बाद लश्कर पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जबकि नवंबर 2017 में इन समूहों के साथ सेना के संबंधों को स्वीकार किया और उन्हें 'पाकिस्तान के उत्कृष्ट संस्थान' घोषित किया गया।
हालांकि, डॉ. हुडभॉय का मानना है कि एफएटीएफ के संदेश का असर रावलपिंडी पर पड़ेगा। जिसे पाकिस्तान की वास्तिक शक्ति का दिल माना जाता है। क्योंकि पाकिस्तान की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सेना का बड़ा वित्तीय हित है और इन हितों को ग्रे-लिस्टिंग या ब्लैकलिस्टिंग द्वारा से प्रभावित किया जा सकता है। रॉयटर्स के पूर्व पत्रकार और लेखक माइरा मैक्डोनाल्ड ने भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन युद्ध के बारे में लिखा है - पागलपन की हदें पार हैं। मैकडोनाल्ड ने तर्क दिया कि मैकडोनाल्ड ने तर्क दिया कि भारतीय लोकतंत्र को कूटनीति के साथ मिलकर अपनी सफलता को आगे बढ़ाने में मदद मिली, जबकि पाकिस्तान में सेना का प्रभुत्व ने न केवल लोकतंत्र को कमजोर कर दिया, बल्कि इसे असफल स्थिति में बदलने की धमकी दी।