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जलवायु परिवर्तन से बढ़ा हवाई यात्राओं का जोखिम, तीन गुना बिगड़ सकते हैं हालात

जलवायु परिवर्तन का जेट स्ट्रीम पर अनुमान से कहीं ज्यादा असर पड़ने के कारण आने वाले दिनों में हवाई यात्रियों को यात्रा के दौरान कई जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 13 Aug 2019 08:11 AM (IST)Updated: Tue, 13 Aug 2019 09:02 AM (IST)
जलवायु परिवर्तन से बढ़ा हवाई यात्राओं का जोखिम, तीन गुना बिगड़ सकते हैं हालात
जलवायु परिवर्तन से बढ़ा हवाई यात्राओं का जोखिम, तीन गुना बिगड़ सकते हैं हालात

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भविष्य में हवाई (एयरलाइंस) यात्रियों को यात्रा के दौरान कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन का जेट स्ट्रीम यानी जेट धाराओं पर अनुमान से कहीं ज्यादा असर पड़ रहा है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। एक उपग्रह से प्राप्त डाटा का विश्लेषण कर उन्होंने यह पता लगाया है कि 1979 से उत्तरी अटलांटिक के ऊपरी वायुमंडल में जेट स्ट्रीम 15 फीसद तेज गति से चलने लगी हैं, जो भविष्य में और भी तेज हो सकती हैं। इसका सबसे ज्यादा असर एयरलाइंस सेवाओं पर पड़ सकता है।

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क्या हैं जेट स्ट्रीम
जेट स्ट्रीम पृथ्वी सहित कुछ ग्रहों के ऊपरी वायुमंडल में तेजी से बहने वाली हवाएं होती हैं। पृथ्वी पर जेट स्ट्रीम ट्रोपोस्फेयर यानी क्षोभमंडल में पश्चिम से पूर्व ओर घूर्णन करते हुए बहती हैं और दो या दो से अधिक हिस्सों में विभाजित भी हो सकती हैं। सबसे तेज गति की जेट स्ट्रीम समुद्र तल से 9-12 किमी ऊंचाई पर चलने वाली ध्रुवीय जेट हैं और कुछ कमजोर उपोष्णकटिबंधीय जेट 10-16 किमी पर भी बहती हैं। उत्तरी गोलार्ध में ध्रुवीय जेट मध्य अमेरिका, यूरोप और एशिया और उनके मध्यवर्ती महासागरों के ऊपर बहती है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध की ध्रुवीय जेट ज्यादातर अंटार्कटिका के ऊपर बहती है।

तीन गुना ज्यादा गंभीर हो सकती है स्थिति
नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए अध्ययन में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 के बाद हवाई यात्रियों को यात्र के दौरान तीन गुना ज्यादा गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ऊंचाई में हवा की गति ज्यादा होने से उड़ानों पर असर देखने को मिल सकता है। इनका असर इतना तीव्र हो सकता है कि ये हवाई जहाज में बैठे यात्री को सीट से फर्श पर गिरा सकती हैं। उन्होंने कहा कि जो यात्री हवाई जहाज में यात्र करने से कतराते हैं, ऐसी स्थिति उन्हें भयभीत कर सकती है और हर साल इससे सैकड़ों यात्री घायल भी हो सकते हैं।

प्रभावित होगा हवाई जहाजों का परिचालन
अध्ययन में पहली बार पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी के ध्रुवों और भूमध्य रेखा के बीच तापमान भी अंतर साफ तौर पर देखा जा सकता है। साथ ही लगभग 34 हजार फीट की ऊंचाई पर हवाई जहाजों में भी संकट मंडराता नजर आ रहा है। रीडिंग यूनिवर्सिटी से मौसम विज्ञान में पीएचडी करने वाले छात्र साइमन ली ने कहा कि पिछले चार दशकों में आर्कटिक के ऊपर तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है, जबकि समताप मंडल यानी पृथ्वी की सतह से लगभग 12 किलोमीटर ऊपर अपेक्षाकृत ठंडा है। उन्होंने कहा कि सतह का तापमान बदलने से जेट की गति धीमी होगी और ऊंचाई में ताप बदलने से गति बढ़ेगी ऐसे में दोनों के बीच रस्साकशी शुरू हो सकती है और इससे हवाई जहाजों परिचालन प्रभावित हो सकता है। 

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