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अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में करें बदलाव, नहीं तो उबलने लगेगी धरती

अगर हम अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में सुधार करें तो ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 07 Jun 2018 12:36 PM (IST)Updated: Thu, 07 Jun 2018 12:58 PM (IST)
अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में करें बदलाव, नहीं तो उबलने लगेगी धरती
अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में करें बदलाव, नहीं तो उबलने लगेगी धरती

लंदन [प्रेट्र]। अगर हम अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में सुधार करें तो ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर सकते हैं। यह दावा जर्नल नेचर एनर्जी में प्रकाशित एक अध्ययन में किया गया है। अध्ययन के मुताबिक यात्रा, घर के भीतर हीटिंग और अन्य उपकरणों के उपयोग में कमी करने से ऐसा करना मुमकिन है। अध्ययन के मुताबिक, धरती को उबलने से बचाना हमारे ही हाथों में है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्यों के तहत हुए 2015 के पेरिस समझौते में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना तय किया है।

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ऊर्जा की मांग में बड़ी वृद्धि नहीं की जा सकती

ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आइआइएसए) के शोधकर्ताओं ने कहा कि वैश्विक पर्यावरण की कीमत पर बेहतर जीवनस्तर के लिए ऊर्जा की मांग में बड़ी वृद्धि नहीं की जा सकती है। अध्ययन यह भी बताता है कि बायोएनर्जी और कार्बन कैप्चर व स्टोरेज (सीसीएस) जैसी अप्रमाणित तकनीक, जो वातावरण से कार्बन डाइआक्साइड को हटाने और खत्म करने में सक्षम हैं, पर निर्भर रहे बिना भी 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य तक कैसे रुका जा सकता है।

हम कम कर सकते हैं ऊर्जा की बढ़ती मांग को

अध्ययन के प्रमुख लेखक अर्नुल्फ ग्रुब्लर ने बताया कि हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि किस तरह नए सामाजिक, व्यावहारिक और तकनीकी नवाचारों की एक शृंखला के साथ ऊर्जा दक्षता और कम कार्बन विकास के लिए मजबूत नीति के जरिये बढ़ती ऊर्जा मांग को हम कम कर सकते हैं।

वैश्विक ऊर्जा प्रणाली में कटौती की जरूरत

आइआइएएसए के चार्ली विल्सन ने कहा कि अब से लेकर 2050 के बीच वैश्विक ऊर्जा प्रणाली में कटौती कर हम जीवाश्म ईंधन से दूर हो सकते हैं। इस दौरान अगर हम नवीनीकरण ऊर्जा में विकास कर सकें तो जलवायु परिवर्तन में इसके प्रभाव को कम सकते हैं।

इस तरह किया अध्ययन

इसके जरिये टीम ने बाजारों में उपलब्ध नई तकनीक की एक विस्तृत शृंखला की जांच की और पाया कि अगर इसे लोगों ने अपनाया तो कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए उन्होंने इलेक्ट्रिक वाहनों के साझा और ऑन-डिमांड बेड़े को लिया और बताया कि इसके इस्तेमाल से 2050 तक परिवहन के लिए वैश्विक ऊर्जा की मांग में किस तरह 60 फीसद तक की कमी की जा सकती है। उनका मानना था कि ऐसा करने से सड़क पर वाहनों की संख्या कम करने में मदद मिलेगी और इस तरह ईंधन की खपत भी कम होगी।

डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण कदम

शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देकर भी इलेक्ट्रानिक डिवाइस के इस्तेमाल में कमी की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर अब ज्यादातर डिजिटल काम मोबाइल फोन से ही मुमकिन हैं। ऐसे में कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट जैसी डिवाइस के प्रति रुचि कम हो रही है। इससे करीब 15 फीसद तक बिजली बचाई जा सकती है। साथ ही नई इमारतों में सौर ऊर्जा की अनिवार्यता करने से भी 2050 तक ऊर्जा की मांग को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा रेड मीट का इस्तेमाल कम करने और समान मात्रा में ऊर्जादायक स्वस्थ आहार का सेवन करने से कृषि से उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है। इसके जरिये 2050 तक इटली और बांग्लादेश के आकार के बराबर वन कवर में वृद्धि हो सकती है।  


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