जानें, उस यूजीन की कहानी जिन्हें योग भारत खींचकर लाया और बन गईं 'Indira Devi'
यूजीन पीटरसन या इंदिरा देवी ने भारत के वर्षों पुरानी योग पद्धति को विदेशों में एक नई पहचान दी। रूस में जन्मी यूजीन ने भारत और योग से प्रेम के चलते ही अपना नाम इंदिरा रखा था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। हम लोगों के लिए भेले ही यूजीन पीटरसन का नाम नया और अनसुना हो, लेकिन, योगा के चाहने वालों के यह नाम कोई नया नहीं है। यह वो नाम है जिसमें जिसने शरीर को स्वस्थ रखने की योग पद्धति को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने में मदद की। यूजीन भले ही भारतीय नहीं थीं, लेकिन भारतीयता उनके मन में बसती थी। वह योग को दिल से जीती थीं। आज योग की इसी पुजारिन का जन्मदिन है। उनके इस जन्मदिन पर हमारे लिए उनके बारे जानना भी बेहद जरूरी हो जाता है। सिर्फ इसलिए ही नहीं कि उन्होंने योग को दूसरे देशों में पहुंचाने में हमारी मदद की बल्कि इसलिए भी क्योंकि भारत से हजारों किमी दूर जन्म लेने और भारत से अनभिज्ञ होने के बाद भी उन्होंने इस देश और इसकी वर्षों पुरानी संस्कृति से प्यार किया और उसको जिया भी। भारत से प्यार के चलते ही उन्होंने अपना नाम इंदिरा देवी रखा था।
यूजीन का का जन्म सोवियत रूस के रीगा में 12 मई के दिन 1899 को एक संपन्न परिवार में हुआ था। शुरुआती दौर में उनका दिलचस्पी पढ़ाई के अलावा थियेटर में भी रही। जब रूस में तानाशाह जार के शासन का अंत करने के लिए वहां पर बोलशेविक क्रांति शुरू हुई थी तब यूजीन अपनी मां के साथ बर्लिन चली गई थीं। यूजीन ने अपने सामने रूस की राजनीतिक उथल-पुथल और जर्मनी में हो रहे बदलाव को करीब से देखा था। यही वो दौर था जब उन्होंने भारतीय साहित्य के साथ दूसरी भारतीय किताबों को भी पढ़ना शुरू किया था। इसी दौरान उन्होंने गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर और योगी रामचक्र की किताबों को भी खूब पढ़ा। यहीं से उन्हें वर्षों पुरानी भारतीय योग पद्धति के बारे में भी पता चला। उनके लिए यह जुड़ाव इतना गहरा हो गया कि महज पंद्रह वर्ष की आयु में ही उन्होंने भारत आने का मन बना लिया था। इसका मकसद था भारत जाकर योग सीखना और सिखाना।
1927 में वह अपनी इसी इच्छा के साथ भारत आ गई। किताबों से मिली जानकारी और भारत से जुड़ाव के बाद ही उन्होंने यूजीन से अपना नाम बदलकर इंदिरा देवी रख लिया था। भारत में ही उन्होंने बॉम्बे स्थित चैकोस्लोवाक काउंसलेट में कार्यरत कमर्शियल अटैची से शादी भी की। आपको बता दें कि यूजीन पहली ऐसी विदेशी महिला थीं जो तिरुमलैई कृष्णमाचार्य की योग छात्रा बनी।
मशहूर योग गुरू कृष्णमाचार्य ने भी उन्हें तभी छात्रा के रूप में स्वीकार किया जब मैसूर के महाराज ने खुद उनके लिए अनुरोध किया। 1938 में इंद्रा देवी पहली विदेशी योगी बनी। जितनी भी चुनौतियां गुरू ने उनके लिए रखी वो सब उन्होंने पूरी कीं। जब इंद्रा देवी का भारत छोड़ने का मौका आया तो कृष्णमाचार्य ने खुद उनसे कहा कि वह योग शिक्षक के रूप में काम कर सकती हैं। उन्होंने चीन, अमेरिका, सहित अर्जेंटीना में योग शिक्षा दी। 1939 में उन्होंने चीन के शंघाई में योग की शिक्षा देने के लिए चियांग-के- शेक के घर में स्कूल शुरू किया। चियांग चीन के चर्चित नेता थे और योग के प्रति उनका रुझान काफी अधिक था। यहां पर योग सीखने वालों में चीनी लोगों के अलावा अमेरिकी और रूसी भी थे। यहां पर लोग उन्हें माता जी कहकर बुलाते थे।
1947 में वह अपने पति के निधन के बाद अमेरिका में बस गईं। हॉलीवुड में उन्होंने एक योगा स्टूडियो भी खोला। यहां कई हॉलीवुड हस्तियों ने उनके दिशा-निर्देश में योग सीखा। 1953 में यूजीन ने दोबारा एक जर्मन डॉक्टर से शादी भी की। इसी दौरान उन्हें अमेरिका की नागरिकता भी मिली। यूजीन ने योगा के ऊपर कई किताबें लिखी हैं जिनमें इसकी बारीकियों का जिक्र किया गया है। 1961 में उन्होंने इंदिरा देवी फाउंडेशन की मेक्सिको में स्थापना की। वह सत्य साईं बाबा के काफी करीबी मानी जाती थीं। उनका भी मेक्सिको में योग सिखान का संस्थान है। 1977 में वह इंटरनेशनल ट्रेनिंग सेंटर को बंद कर अपने पति के साथ बेंगलौर में बस गईं। 1984 में वह श्री लंका गईं जहां पर उनके पति का निधन हुआ। 1982 में वह अर्जेंटीना चली गई। 1987 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय योग फेडरेशन का अध्यक्ष बनाया गया। 102 साल की उम्र में साल 2002 में उनकी ब्यूनस आयर्स में मौत हुई। रीगा में पैदा हुई यूजीन उर्फ इंद्रा ने कुछ हिन्दी फिल्मों में भी काम किया था।
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