दुनिया की परवाह किए बिना रूस ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी निभाई है भारत से दोस्ती
अब यह बात दुनिया समझने लगी है कि कूटनीति के अलावा द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए अनौपचारिक बैठकों को महत्व दिया जाना चाहिए।
[सुशील कुमार सिंह]। अब यह बात दुनिया के देश समझने लगे हैं कि कूटनीति के अलावा द्विपक्षीय रिश्तों को सारगर्भित बनाने के लिए अनौपचारिक बैठकों को महत्व दिया जाना चाहिए इस मामले में भारत अग्रणी है। वैसे देखा जाय तो कूटनीति ने पहले की तुलना में अधिक खुले स्वभाव को भी ग्रहण कर लिया है। बीते चार वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पड़ोसी समेत दुनिया के कई देशों के साथ कुछ इसी प्रकार के संबंध बनाते देखे जा सकते हैं। बीते 21 मई को मोदी द्वारा की गई रूस यात्रा इसी श्रेणी में आती है जो पूर्व में की गई तीन यात्राओं से अलग थी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ खुलकर अनौपचारिक बातचीत का यहां पूरा अवसर था और उसका लाभ भी उन्होंने उठाया। गौरतलब है कि रूस रवाना होने से पहले मोदी ने कहा था कि पुतिन से होने वाली उनकी मुलाकात दोनों देशों के विशेष रणनीतिक रिश्तों को और मजबूत करेगी। मुलाकात को भले ही अनौपचारिक बताया जा रहा हो, पर मोदी ने एक तरह से इसमें भी अपने एजेंडे की झलक दिखाई है।
भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय सहयोग
दोनों नेताओं की मुलाकात यह भी निर्धारित करती है कि आने वाले दिनों में भारत-रूस द्विपक्षीय सहयोग की दशा और दिशा तुलनात्मक कहीं अधिक सशक्त होगी। मुलाकात ने दोनों देशों के रिश्तों को भी नई सच्चाई के साथ रेखांकित किया है, मगर जिस तर्ज पर अमेरिका रूस को घेरने की कोशिश कर रहा है वह रिश्तों के संतुलन के लिहाज से भारत के लिए चुनौती हो सकता है। हालांकि भारत द्विपक्षीय संबंधों को तीसरे देश से तटस्थ रखता आया है। ऐसे में चुनौती जैसी कोई बात उतनी संवेदनशील प्रतीत नहीं होती। बीते सात दशकों से भारत एक गुटनिरपेक्ष देश रहा है और संबंधों को अपनी सीमाओं में रहते हुए तय किया है।
अनौपचारिक वार्ता के लाभ
इसके पहले 27-28 अप्रैल को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ मोदी वुहान शहर में कुछ इसी तर्ज पर अनौपचारिक शिखर सम्मेलन कर चुके हैं। अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का एक लाभ यह होता है कि इसमें संयुक्त वक्तव्य समझौता के बंधनों से स्वतंत्र होने के कारण दो नेता कई मुद्दे पर एक-दूसरे का विचार जान सकते हैं जिनसे भविष्य के संबंधों का पथ चिकना करना संभव हो सकता है। इसके अलावा ऐसे अनौपचारिक बैठकों के बाद प्रेस कांफ्रेंस की मजबूरी भी नहीं जुड़ी होती।
इस वार्ता का एक और तथ्य यह है कि पुतिन ने स्वयं मोदी को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था और वह भी चौथी बार राष्ट्रपति बनने के एक पखवाड़े के भीतर। दरअसल पुतिन मोदी के साथ रूस के भविष्य की अहमियत, अपनी विदेश नीति, दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत से रिश्तों को मजबूती देने पर वार्ता करना चाहते थे।
कूटनीति का बदलता मिजाज
जाहिर है कि भारत के लिए यह कम गौरव का विषय नहीं है कि नैसर्गिक मित्र रूस ने परंपरा को नई सच्चाई के साथ आगे बढ़ाने का काम किया। बीते कुछ वर्षों से दुनिया का कूटनीतिक मिजाज बदला है। जब भारत की प्रगाढ़ता अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय कहीं अधिक हो गई थी। तब यह संबंध कुछ हद तक रूस को भी अखरा था और इसी दौरान रूस संयुक्त सैन्य अभ्यास को लेकर पाक की ओर भी झुक रहा था। हालांकि पूरी दुनिया जानती है कि रूस और भारत की दोस्ती 70 साल पुरानी है। रूस और भारत की मित्रता दोनों देशों के परस्पर सहयोग से आगे बढ़ रही है। रूस के सोची नामक स्थान में इस अनौपचारिक बैठक के दौरान मोदी ने भारत को एससीओ में स्थाई सदस्यता दिलवाने के लिए रूस की भूमिका की भी चर्चा की। साथ ही इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ कॉरिडोर पर और ब्रिक्स के लिए मिलकर काम करने की बात भी कही। इसके अलावा आतंकवाद को लेकर दोनों देशों के समान रवैये की भी चर्चा हुई जिसे दुनिया के लिए खतरा बताते हुए मिलकर लड़ने की बात दोहराई गई।
रूस की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे नेहरू
वैसे दो देशों के संबंध इस बात पर अधिक टिके होते हैं कि उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक उन्नयन के साथ संप्रभुता कितनी अक्षुण्ण है। जाहिर है रूस के साथ इसका ताना-बाना कहीं अधिक सटीक और संतुलित है। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू रूस की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और उसे अंगीकार भी किया। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद शब्द का उल्लेख देखा जा सकता है। और इसी समाजवाद ने भारत को मिश्रित अर्थव्यवस्था का अवसर दिया। हालांकि 1991 में आर्थिक उदारीकरण और बदली दुनिया के मिजाज को देखते हुए भारत ने अपना आर्थिक पथ चिकना किया, परंतु बदला नहीं, जबकि उन दिनों सोवियत संघ जो 1917 से निर्मित हुआ था भंग हो चुका था। समाजवाद के प्रति दुनिया का विश्वास भी डगमगा गया था। बावजूद इसके भारत ने पूंजीवाद के साथ समाजवाद को और लोक के साथ निजी क्षेत्र के संबंध को बनाए रखने में कामयाब रहा। उदारीकरण के 25 वर्ष बीतने के साथ भारत को आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण तथा निजीकरण के साथ वैश्वीकरण की अवधारणा से पूरी तरह पोषित होते देखा जा सकता है।
दोस्ती का सिलसिला
पश्चिम की ओर देखो के साथ-साथ 1990 के दशक में पूरब की ओर देखो नीति का भी परिप्रेक्ष्य भारत ने विकसित किया। मध्य एशिया समेत पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत का संबंध कहीं अधिक संयमित और सुचारू है। दक्षिण एशिया में विकसित माना जाने वाला भारत लगभग सभी महाद्वीपों में संबंधों को लेकर अच्छी दखल रखता है। इन्हीं संबंधों के बीच मॉस्को से चली आ रही दोस्ती बादस्तूर आज भी कायम है। 13 अप्रैल, 1947 को तत्कालीन सोवियत संघ और भारत ने आधिकारिक तौर पर दिल्ली और मॉस्को में मिशन स्थापित करने का फैसला लिया था। दोनों देशों के बीच शुरू हुई दोस्ती का यह सिलसिला आज भी जारी है। यह ऐतिहासिक दोस्ती आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी एक-दूसरे के लिए कहीं अधिक उपजाऊ रहे हैं। भारत आज भी 62 फीसद रक्षा संबंधी खरीद रूस से करता है। हालांकि वह खरीदारी तो अमेरिका से भी करता हैं।
पुतिन कुछ ही सप्ताह बाद नियमित बैठक के लिए भारत आने वाले हैं। जाहिर है परिणामों की झलक बढ़े हुए अनुपात में देखी जा सकेगी। खास यह भी है कि दोनों की बातचीत में ईरान के साथ नाभिकीय समझौते से अमेरिका के अलग होने के बाद की परिस्थितियों, अफगानिस्तान और सीरिया में आतंकवाद, साथ ही रूस द्वारा भारत में लगाई जाने वाली नाभिकीय परियोजनाओं और रक्षा संबंधों को बातचीत में जगह देना एक लाजमी मौके के रूप में देखा जा सकता है।
भारत के लिए जरूरी है रूस
अगले महीने शंघाई सहयोग संगठन और उसके बाद जुलाई में ब्रिक्स सम्मेलन में भी मोदी-पुतिन के साथ चिनफिंग की भी मुलाकात होगी। देखा जाय तो दोनों देशों के रिश्ते शीत युद्ध के दौर में और उसके बाद भी प्रगाढ़ होते गए। पिछले 70 सालों में अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बदल गए। कई देश गृह युद्ध की आग में झुलस गए और कई देशों के बीच रिश्तों में गिरावट आई। मगर भारत और रूस आज तक बिना खटास के मित्रता निभा रहे हैं। भारत के हर मुश्किल में रूस खड़ा रहा है। दुनिया की परवाह किए बिना रूस ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी दोस्ती निभाई है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस ने 22 जून, 1962 को अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल कश्मीर मुद्दे पर भारत के समर्थन में किया था। हालांकि 1961 में 99वें वीटो का इस्तेमाल भी वह भारत के लिए ही किया था जो गोवा के मसले पर था।
इसके अलावा पाकिस्तान के खिलाफ और भारत के पक्ष में रूस वीटो का इस्तेमाल करता रहा, जबकि पड़ोसी चीन ठीक इसके उलट कार्य करता रहा। भारत-रूस के संबंध ऐतिहासिक तौर पर भी निकटता के सिद्धांत से जकड़े हुए हैं, परंतु कई मुद्दों पर संबंध भुनाना अभी बाकी है। एनएसजी से लेकर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता समेत कई बिंदुओं पर रूस भारत के काम तो आ ही सकता है। साथ ही कूटनीतिक संतुलन के मामले में भी रूस का साथ कहीं अधिक उपयोगी है।
अब यह बात दुनिया समझने लगी है कि कूटनीति के अलावा द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए अनौपचारिक बैठकों को महत्व दिया जाना चाहिए। भारत इस मामले में अग्रणी है। वैसे देखा जाय तो कूटनीति ने पहले की तुलना में आज अधिक खुले स्वभाव को भी ग्रहण कर लिया है। गत चार वर्षों में पीएम नरेंद्र मोदी पड़ोसी समेत दुनिया के कई देशों के साथ कुछ इसी प्रकार के संबंध बनाते देखे जा सकते हैं। बीते 21 मई को मोदी द्वारा की गई रूस यात्रा इसी श्रेणी में आती है।
[लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में निदेशक हैं]