पाकिस्तान में लोकतंत्र के लिए धमाकों के बीच मतदान, बह रहा मासूमों का खून
पाकिस्तान में आम चुनाव के लिए हो रहे मतदान के दौरान भी क्वेटा में जोरदार धमाका हुआ, जिसमें 31 लोगों की मौत हो गई। हालांकि यह पाकिस्तान का पुराना इतिहास भी रहा है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान में आम चुनाव की घोषणा के बाद से ही वहां पर धमाकों की आवाजें तेज हो गई हैं। मई से लेकर अब तक हुए इन धमाकों में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इस बीच पाकिस्तान में लोकतंत्र के लिए मतदान भी शुरू हो चुका है, लेकिन आतंकी अपने मंसूबों को भी अंजाम दे रहे हैं। बुधवार को क्वेटा में हुए धमाके में 31 से अधिक लोगों की जान चली गई। लेकिन अभी कितनी और जानें जाएंगी इसका अंदाजा लगा पाना फिलहाल प्रशासन के लिए भी मुश्किल ही दिखाई दे रहा है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि आम चुनाव के दौरान इस तरह के धमाकों की गूंज पाकिस्ता में सुनी जा रही हो, पिछले चुनाव में भी कमोबेश ऐसा ही नजारा दिखाई दिया था।
सबसे खूनी रहा 2013 का चुनाव
आपको जानकर हैरत होगी कि पाकिस्तान के चुनावी इतिहास में वर्ष 2013 का आम चुनाव सबसे अधिक खून से रंगा हुआ था। ऐसा हम नहीं बल्कि पाकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ पीस स्टडी की रिपोर्ट कह रही है। इसके मुताबिक 1 जनवरी से लेकर 15 मई तक पूरे पाकिस्तान में करीब 148 आतंकी हमले हुए। इनमें से अधिकतर हमले अप्रेल और मई में हुए। इन हमलों में नेताओं, कार्यकर्ताओं, चुनाव से जुड़े अधिकारियों, रैलियों को निशाना बनाया गया था। इस दौरान हुए हमलों में 170 लोगों की मौत हुई थी जबकि 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।
बेनेजीर की भी चुनाव में हत्या
आपको याद होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री बेनेजीर भुट्टो की भी वर्ष 2007 में इसी तरह के एक हमले में हत्या कर दी गई थी। वहीं इस बार उनके बेटे बिलावल भुट्टो के भी काफिले पर हमला हो चुका है। यह हमला 2 जुलाई को उस वक्त किया गया था जब बिलावल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के गढ़ ल्यारी में चुनाव प्रचार कर रहे थे। इसी दौरान गुस्से से भरे प्रदर्शनकारियों ने पार्टी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो के काफिले पर हमला कर दिया था। इस घटना में दो लोग घायल हो गये और कई वाहनों को भी नुकसान पहुंचाया गया था। यह प्रदर्शनकारी 'बिलावल वापस जाओ' के नारे भी लगा रहे थे। हालांकि इस दौरान बिलावल को कोई चोट नहीं आई। आपको बता दें कि ल्यारी पीपीपी की पारंपरिक सीट है और बिलावल एनए -247 सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
हर चुनाव में मारे गए 300 से अधिक लोग
इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर के एक शोध में यहां तक कहा गया है कि वर्ष 1988 से लेकर वर्ष 2010 तक के बीच करीब 27555 घटनाएं चुनावी हिंसा से संबंधित हुई थीं। इस शोध के मुताबिक यदि इस दौरान हुए हर आम चुनाव पर नजर डालेंगे तो हर चुनाव में करीब 1100 घटनाएं घटी। इसका एक अर्थ ये भी है कि इस दौरान हुए छह चुनावों में प्रति चुनाव करीब 183 घटनाएं हुईं जिनमें लगभग 380 लोगों की मौत हुई।
इस माह हुए हमलों पर एक नजर
- 25 जुलाई को क्वेटा में हुए धमाके में 15 लोगों की मौत हो गई जबकि कई अन्य घायल हो गए।
- 22 जुलाई को हुए एक आत्मघाती हमले में पीटीआई प्रत्याशी इकरामुल्लाह की मौत हो गई थी जबकि कई अन्य घायल हो गए थे। उन पर यह हमला डेरा इस्माइलखां में किया गया था। वह पीके 99 सीट से मैदान में उतरे थे। पुलिस की मानें तो आतंकियों ने इस हमले में करीब दस किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया था। आपको बता दें कि इकरामुल्लाह खैबर पख्तूनख्वां में कृषि मंत्री भी रहे थे। इससे पहले उनके भाई की भी हत्या इसी तरह से की गई थी। उनके भाई भी वित्त मंत्री के तौर पर यहां की केबिनेट में शामिल थे।
- 14 जुलाई को दो आतंकी हमलों में करीब 132 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 180 लोग घायल हो गए थे। यह हमले बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वां में किए गए थे। इस हमले में बलूचिस्तान आवामी पार्टी के प्रत्याशी नवाबजादा सिराज की भी मौत हो गई थी। उन पर यह हमला क्वेटा से करीब 60 किमी दूर मस्टांग इलाके में किया गया था।
- इससे पहले 10 जुलाई को पेशावर में हुए एक धमाके में एएनपी के प्रत्याशी की मौत हो गई थी, जबकि 34 अन्य लोग घायल हो गए थे।
- चार जुलाई को भी पीटीआई के प्रत्याशी के ऊपर जानलेवा हमला किया गया था। यह हमला पार्टी कार्यालय पर ग्रेनेड से किया गया था। इसमें करीब दस लोग घायल हो गए थे। ये हमला उस वक्त किया गया था जब उत्तरी वजरीस्तान की नेशनल असेंबली की 48 सीट से मैदान में उतरे पीटीआई प्रत्याशी मलिक औरंगजेब खान अपनी पार्टी के चुनावी कार्यालय का उदघाटन कर रहे थे।
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