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जानिए, क्‍यों पाकिस्‍तान में ट्रांसजेडरों के लिए बनाना पड़ा अलग गिरिजाघर

आमतौर पर ट्रांसजेंडर्स समाज से दूर रहते हैं क्‍योंकि लोग उन्‍हें स्‍वीकार नहीं करते हैं। उन्‍हें हीन दृष्टि से देखा जाता है। हालांकि कई ट्रांसजेंडर्स ने बड़े पदों पर पहुंचकर मुकाम हासिल किया है जो अन्‍य के लिए मिसाल है।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 02:51 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 02:51 PM (IST)
जानिए, क्‍यों पाकिस्‍तान में ट्रांसजेडरों के लिए बनाना पड़ा अलग गिरिजाघर
ट्रांसजेंडर्स का कहना है कि दूसरे गिरजाघरों में सुनवाई नहीं होने पर वे अपनी समस्याएं यहां साझा कर सकते हैं

कराची, एपी। ऐसा कहा जाता है कि ईश्‍वर के घर में सभी एक समान होते हैं। लेकिन ट्रांसजेंडर्स को पाकिस्‍तान ईश्‍वर के दर पर भी सुकून नहीं मिलता, लोग उन्‍हें अलग नजरों से देखते हैं। यही वजह है कि वहां ट्रांसजेंडर्स के लिए एक अलग गिरजाघर बनाया गया है। पाकिस्तान में ईसाई ट्रांसजेंडर लोगों को अक्सर सामाजिक बहिष्कार, उपहास और अपमान का सामना करना पड़ता है, लेकिन समुदाय के लोगों का मानना है कि उनके लिये बनाए गए गिरिजाघर में अब उन्हें शांति और सांत्वना मिलेगी। वे ईश्‍वर को और करीब महसूस कर पाएंगे।

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आमतौर पर ट्रांसजेंडर्स समाज से दूर रहते हैं, क्‍योंकि लोग उन्‍हें स्‍वीकार नहीं करते हैं। उन्‍हें हीन दृष्टि से देखा जाता है। हालांकि, कई ट्रांसजेंडर्स ने बड़े पदों पर पहुंचकर मुकाम हासिल किया है, जो अन्‍य के लिए मिसाल है। ट्रांसजेंडर्स का कहना है कि दूसरे गिरजाघरों में सुनवाई नहीं होने पर वे अपनी समस्याएं यहां साझा कर सकते हैं। पाकिस्तान में ‘फर्स्ट चर्च ऑफ यूनक(किन्नर)’ नाम का यह गिरजाघर केवल ट्रांसजेडर ईसाइयों के लिए है। किन्नर शब्द दक्षिणी एशिया में अक्सर महिला ट्रांसजेंडरों के लिए उपयोग किया जाता है और कुछ लोग इसे अपमानजनक मानते हैं।

गिरजाघर की पादरी और सह संस्थापक गजाला शफीक ने कहा कि उन्होंने अपनी बात रखने के लिये यह नाम चुना। बाइबल के अंशों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि किन्नरों पर ईश्वर की कृपा होती है। सभी धर्मों की ट्रांसजेंडर महिलाओं और पुरुषों को रुढ़िवादी पाकिस्तान में अक्सर सार्वजनिक रूप अपमान, यहां तक की हिंसा का सामना करना पड़ता है।

गौरतलब है कि सरकार ने हालांकि, उन्हें आधिकारिक तौर पर थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दे दी है लेकिन अक्सर उनके परिवावाले उन्हें त्याग देते हैं जिसके बाद उन्हें भीख मांगकर, शादियों में नाच कर अपना गुजारा करना पड़ता है। उनको अक्सर यौन शोषण का सामना करना पड़ा है और अंतत: वे यौनकर्मी बन जाते हैं।


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