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पाक इतिहास में जब-जब सेना ने चाहा लोकतंत्र को कुचल हथिया ली सत्ता, 35 साल किया शासन

सीआरएस की रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल में देश की विदेश और सुरक्षा नीतियों पर पाकिस्तानी सेना हावी रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 30 Aug 2019 08:44 AM (IST)Updated: Sat, 31 Aug 2019 07:22 AM (IST)
पाक इतिहास में जब-जब सेना ने चाहा लोकतंत्र को कुचल हथिया ली सत्ता, 35 साल किया शासन
पाक इतिहास में जब-जब सेना ने चाहा लोकतंत्र को कुचल हथिया ली सत्ता, 35 साल किया शासन

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पड़ोसी देश पाकिस्तान में सेना की ही हुकूमत चलती है। साल दर साल आई तमाम प्रमाणिक रिपोर्टों में इस सच्चाई को बताया गया। अब अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की स्वतंत्र अनुसंधान विंग कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल में देश की विदेश और सुरक्षा नीतियों पर पाकिस्तानी सेना हावी रही है।

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इससे पहले इमरान खान की पूर्व पत्नी रेहम खान भी उन्हें सेना की कठपुतली बता चुकी हैं। आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने वाली पाक सेना के इशारों पर सरकारें चलती रही हैं। जिस भी प्रधानमंत्री ने सेना का विरोध किया उनको या तो फांसी दे दी गई या तख्तापलट कर दिया गया। 72 साल के पाकिस्तान के इतिहास में जब-जब मुल्क पर संकट आया। तब-तब सेना ने लोकतंत्र को कुचल कर देश की कमान अपने हाथों में ले ली। फील्ड मार्शल अयूब खान से लेकर याहया खान तक और जियाउल हक से लेकर परवेज मुशर्रफ तक कुल 35 साल तक पाकिस्तानी सेना प्रमुख मुल्क पर राज कर चुके हैं।

खत्म किया लोकतंत्र
लोकतंत्र में नियम-कानून, चुनाव, न्यायपालिका ताकतवर होती है, लेकिन सेना इन सबका अस्तित्व अप्रासंगिक कर दिया। नागरिकों के अधिकारों को ताख पर रखते हुए नौकरशाह के साथ गठजोड़ बनाकर सेना सत्ता की केंद्र बिंदु बन गई। नतीजा ये हुआ की पाकिस्तान में सेना सर्वेसर्वा हो गई।

युद्ध की आग में झोंका देश को
सेना के प्रभाव में पाकिस्तान के भारत के साथ चार युद्ध (1947, 1965, 1971, 1999) हुए। चारों ही युद्धों में पाकिस्तान की बुरी तरह से हार हुई और अंतत: 1971 में पाकिस्तान दो भागों में टूट गया। नया देश बना बांग्लादेश। इस बीच पाकिस्तान में न तो उद्योग धंधे खड़े हो पाए और न ही कृषि पर ध्यान दिया गया। नतीजा ये हुआ कि अमेरिका से मिले खैरात के पैसों से पाकिस्तान में सेना और नौकरशाह वर्ग तो बहुत अमीर हो गया, लेकिन जनता गरीबी से नीचे जीवन जीने को मजबूर हो गई।

धार्मिक कट्टरता की आग में झोंका
जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान को न केवल धार्मिक कट्टरता की आग में झोंक दिया बल्कि कश्मीर को भी सुलगाने का काम किया। अपने शासनकाल में कट्टरता के जो कांटे उन्होंने बोए, वही आज पाकिस्तान के पैरों में चुभ रहे हैं। पाकिस्तान तरक्की की राह से मुड़कर आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़ा। जनरल जिया उल हक ने 1973 में जो संवैधानिक प्रावधान किए थे। उन्होंने यह व्यवस्था की कि कोई भी गैर मुस्लिम व्यक्ति देश का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा। तख्तापलट के बाद जिया उल हक ने राष्ट्रपति पद संभाला तो संविधान को ठुकराते हुए शरिया कानून को लागू किया। आज पाकिस्तान बदहाली के जिस मोड़ पर है, वहां तक पहुंचाने में जिया उल हक की नीतियां जिम्मेदार बताई जाती हैं।

युवाओं को आतंक के रास्ते पर धकेला
बेरोजगार युवकों को फौज ने पैसे का लालच देखकर अफगानिस्तान और भारत के खिलाफ आतंक के रास्ते पर धकेल दिया, जिससे गरीबी, भूखमरी और आतंकवाद को लेकर पूरी दुनिया में पाकिस्तान पहचाना जाने लगा।

अर्थव्यवस्था पर सेना का कब्जा
पाक सेना 20 अरब डॉलर से अधिक की 50 वाणिज्यिक संस्थाओं को चलाती है। इनमें पेट्रोल पंपों से लेकर विशाल औद्योगिक संयंत्रों, बैंकों, बेकरियां, स्कूल, विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं। सेना देश के सभी विनिर्माण का एक-तिहाई और निजी संपत्तियों का सात फीसद तक नियंत्रण करती है।

प्रधानमंत्री को दी फांसी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही जनरल जिया उल को चीफ ऑफ ऑर्मी स्टाफ बनाया था। मगर उसी जनरल ने मौका मिलते ही 5 जुलाई 1977 को न केवल प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट कर सैन्य शासन लागू कर दिया, बल्कि उन्हें जेल भेजकर फांसी पर भी लटका दिया। जिया ने तख्तापलट के पीछे तर्क देते हुए कहा था कि जुल्फिकार अली भुट्टो के कार्यकाल में पाकिस्तान के हालात खराब हो चले थे, लिहाजा सैन्य शासन जरूरी था।

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