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पाकिस्तान सरकार प्रतिबंधित TTP के साथ वार्ता विफल होने पर सेना प्रमुख बाजवा को हुआ गलती का अहसास

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को अफगान तालिबान का स्पष्ट संरक्षण प्राप्त है। तालिबान को शासन के नुकसान से निपटने में मदद करने के लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा निर्धारित पहली कुछ शर्तों में से एक टीटीपी से निपटना भी था।

By Ashisha Singh RajputEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 04:30 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 04:30 PM (IST)
पाकिस्तान सरकार प्रतिबंधित TTP के साथ वार्ता विफल होने पर सेना प्रमुख बाजवा को हुआ गलती का अहसास
सेना प्रमुख बाजवा पाकिस्तान को वाशिंगटन की अच्छी नजरों में रखना चाहते हैं।

इस्लामाबाद, एजेंसी।‌ पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को अपनी गलती का एहसास हो गया है। बता दें कि बाजवा ने अल कायदा प्रमुख अयमान अल जवाहारी की हत्या के रूप में गैरकानूनी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समूह के साथ शांति वार्ता को दबा दिया था। जिन्होंने टीटीपी को सलाह दी थी, उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि इस वार्ता का कोई भविष्य नहीं है।

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अल कायदा प्रमुख अयमान अल जवाहारी

अल कायदा प्रमुख अयमान अल जवाहारी के पाकिस्तान के कट्टरपंथी आतंकी समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के साथ संबंध जुड़े हुए थे। वह अक्सर टीटीपी के वरिष्ठ नेता उमर खालिद खोरासानी को सलाह भी देते थे। अल कायदा प्रमुख जवाहिरी की उपस्थिति टीटीपी को पता होनी चाहिए, जो पाकिस्तान में सक्रिय विभिन्न इस्लामी सशस्त्र आतंकवादी समूहों का एक बड़ा संगठन है।

टीटीपी के साथ विफल वार्ता

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ विफल वार्ता, जिसे आमतौर पर पाकिस्तानी तालिबान के रूप में भी जाना जाता है, लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को पेशावर से बहावलपुर स्थानांतरित करने का एक कारण यह भी है। यह एक ऐसा कदम है, जिसने युद्धविराम के लिए टीटीपी लाने में सेना की विफलता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया।

जनरल हमीद का दावा

इन सबके बीच, जनरल हमीद ने दावा किया है कि तालिबान ने पिछले अगस्त में अमेरिकियों को बाहर निकालने में मदद की थी। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा था कि अमेरिकियों को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिका के खिलाफ विदेशी साजिश के दावों का समर्थन करने में हमीद की भूमिका पर संदेह है।

वहीं दूसरी ओर सेना प्रमुख बाजवा पाकिस्तान को वाशिंगटन की अच्छी नजरों में रखना चाहते हैं। इसके पीछे की वजह है पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली।

अफगान डायस्पोरा ने बताया, 'अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान ने तालिबान की मदद की थी, हालांकि, दोनों अब डूरंड रेखा के साथ एक खूनी झड़प के खतरे के लॉगरहेड्स में हैं।'

आपको मालूम हो कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को अफगान तालिबान का स्पष्ट संरक्षण प्राप्त है। तालिबान को शासन के नुकसान से निपटने में मदद करने के लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा निर्धारित पहली कुछ शर्तों में से एक टीटीपी से निपटना था। लेकिन अफगान तालिबान ने अपना वादा निभाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।


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