Move to Jagran APP

Kargil Vijay Diwas: कारगिल जंग में US और चीन से खाली हाथ लौटे थे तत्‍कालीन पाक के PM नवाज शरीफ, बिल क्लिंटन ने दिया था ये जवाब

प्रतिवर्ष 26 जुलाई को देश में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। पाक‍िस्‍तान के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस संघर्ष से अंत तक अंजान थे लेकिन अपनी सत्‍ता को बचाने के लिए वह अमेरिका और चीन से मदद मांगने गए थे।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 03:07 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 08:18 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas: कारगिल जंग में US और चीन से खाली हाथ लौटे थे तत्‍कालीन पाक के PM नवाज शरीफ, बिल क्लिंटन ने दिया था ये जवाब
कारगिल जंग में US से खाली हाथ लौटे थे तत्‍कालीन पाक के PM नवाज शरीफ। फाइल फोटो।

इस्‍लामाबाद, एजेंसी। प्रतिवर्ष 26 जुलाई को देश में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। कारगिल के इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्‍तान की सेना अपना लोहा मनवाया था। इसमें पाकिस्‍तान पराजित हुआ था। भारतीय सेना के इस जीत को जीत को आज 22 वर्ष पूरे हो गए। दोनों देशों के बीच इस युद्ध को पाकिस्‍तान के तत्‍कालीन सेना प्रमुख पवरेश मुशर्रफ अंजाम दिया था। खास बात यह है कि पाक‍िस्‍तान के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस संघर्ष से अंत तक अंजान थे, लेकिन अपनी सत्‍ता को बचाने के लिए वह अमेरिका से मदद मांगने गए थे। हालांकि, अमेरिका के तत्‍कालीन राष्‍ट्रप‍ति बिल क्लिंटन ने उन्‍हें किसी तरह की मदद से इन्‍कार कर दिया था। क्लिंटन ने कहा था कि पाकिस्‍तान को अपनी सेना हटानी होगी। इतना ही नहीं पाक‍िस्‍तान के दोस्‍त चीन ने भी मदद से इन्‍कार कर दिया था।

loksabha election banner

युद्ध के दौरान उनकी यात्रा के दो मकसद

प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि भारत-पाक युद्ध के दौरान शरीफ ने अमेरिका का दौरा किया था। उनकी इस यात्रा का मकसद युद्ध के दौरान कूटनीतिक मदद हासिल करना था। शरीफ ने अमेरिका को भारत के खिलाफ भड़काने का प्रयास किया था। शरीफ अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान क्लिंटन से मुलाकात की थी। जाह‍िर है कि युद्ध के दौरान उनकी यात्रा के दो मकसद थे। पहला इस युद्ध में अमेरिका का रुख जानने की कोशिश कर रहे थे। दूसरे, वह इस अवसर की तलाश में थे कि भारत के खिलाफ अमेरिका को खड़ा किया जा सके।

अमेरिका में कई घंटे राष्‍ट्रपति क्लिंटन के साथ बिताए

इतना ही नहीं शरीफ ने अमेरिका में कई घंटे राष्‍ट्रपति क्लिंटन के साथ बिताए थे। प्रो. पंत ने कहा कि शरीफ चाहते थे कि इस युद्ध में अमेरिका पाक का साथ दे, लेकिन वह अपने मिशन में असफल रहे। उस वक्‍त क्लिंटन ने शरीफ से साफ कह दिया था कि पहले पाकिस्तान को करगिल में पीछे हटना होगा। उसके बाद ही कोई और बातचीत होगी। पहले ही भारतीय सेना के तेवरों से पाकिस्तान लगभग पस्त हो चुका था। अमेरिका के सामने सबसे बड़ा प्रश्न था कि कहीं यह युद्ध परमाणु युद्ध में न बदल जाए।

कारगिल युद्ध में पाकिस्‍तान की यह कूटनीतिक हार थी

पंत ने कहा कि क्लिंटन के इस स्‍टैंड से शरीफ काफी चकित थे। शरीफ की तमाम कोशिशों के बावजूद अमेरिका के रुख में कोई बदलाव नहीं आया। कारगिल युद्ध में पाकिस्‍तान की यह कूटनीतिक हार थी। इस नाकामी के बाद शरीफ और जनरल मुशर्रफ में तनाव बहुत ज्‍यादा था।

चीन से निराश हुआ था पाकिस्‍तान

कारगिल युद्ध में पाकिस्‍तान के गहरे दोस्‍त चीन का भी साथ नहीं मिला। युद्ध के दौरान पाकिस्‍तान ने चीन की किसी भी तरह की मदद नहीं की। उस दौरान शरीफ छह दिनों की बीजिंग यात्रा पर गए थे, लेकिन उन्‍होंने अपनी यात्रा बीच में ही रोक कर पाक वापस लौट आए थे। उस वक्‍त चीन ने अपने बयान में कहा था कि दोनों देशों का आंतरिक मामला है। भारत और पाक को अपने आपसी मतभेदों को खुद सुलझाना चाहिए। यूरोपीय देश भी भारत के पक्ष में थे। उस वक्‍त के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कहना था कि भारत सीजफायर तभी करेगा जब पाकिस्‍तान सेना पीछे हटेगी। वाजपेयी कारगिल युद्ध की जानकारी अमेरिकी राष्‍ट्रपति को फोन पर दे रहे थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.